पहली बार जब वह मेरे घर आया था, तब मैं दिल्ली के रोहिणी इलाके में रहती थी. मैं नीचे वाले कमरे में बैठी टैलीविजन देख रही थी. वह मेरे भतीजे विवेक के साथ आया था. उसी की उम्र का रहा होगा शायद.  मेरा भतीजा भी मुझ से ज्यादा छोटा नहीं था, क्योंकि वह मेरी बड़ी जेठानी का बेटा था और उम्र में 4-5 साल ही छोटा था. वह उस का दोस्त था, शायद उस से 2-3 साल बड़ा होगा और मुझ से शायद एकाध साल छोटा. उस के हाथ में एक छोटा ब्रीफकेस था और कंधे पर एक बैग लटक रहा था. उस ने मेरी जेठानी को ‘नमस्ते’ किया और फिर मेरी तरफ देख कर मुसकराया. इस से पहले हम ने एकदूसरे को एक बार देखा था, मेरी दीदी के देवर की शादी में. तब मैं उस का नाम भी नहीं जानती थी.

‘‘नमस्ते भाभी,’’ उस ने मेरी तरफ देख कर कहा. वह हलके से मुसकरा भी रहा था. ‘‘नमस्ते…’’ मैं ने भी हलकी हंसी के साथ जवाब दिया.  तब विवेक ने बताया, ‘‘यह मेरा दोस्त अमित है और कुछ महीनों के लिए यहीं रहेगा.’’ चूंकि उस का हम से दूर का रिश्ता भी था, वह थोड़ा घबराया हुआ भी लग रहा था. कमरे 3 ही थे हमारे घर में. नीचे वाले कमरे में जेठानीजी रहती थीं, ऊपर वाले कमरे में मैं और उस के ऊपर वाला कमरा किराए पर दे रखा था. ‘‘विवेक, इन्हें ऊपर वाले कमरे में ले जाइए,’’ मैं ने अपने भतीजे से कहा. विवेक मेरा भतीजा कम देवर ज्यादा लगता था. वह मुड़ कर दरवाजे से बाहर निकला.

दोनों ऊपर वाले कमरे में चले गए. मैं 5 मिनट बाद सीरियल खत्म होते ही ऊपर आई. वह मेरे बिस्तर पर लेटा हुआ था. विवेक नहीं दिखा. मेरी आहट पा कर वह उठ कर बैठ गया. मैं ने उस से पानी के लिए पूछा, पर उस ने इनकार कर दिया. ‘‘आप अंकिता के भाई हैं न?’’ मैं ने उस से पूछा. मैं अंकिता को जानती थी. कुछ ही साल पहले उस की शादी मेरी दीदी के देवर से हुई थी. वह मेरी दीदी की देवरानी थी और इस रिश्ते से वह मुझे ‘दीदी’ कह सकता था, लेकिन उस ने नहीं कहा. उस ने ‘हां’ में जवाब दिया. ‘‘मैं खाना लगा देती हूं, आप खा लीजिए.’’ उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

मैं खाना उस के सामने परोस आई और किचन के काम में लग गई. किचन उस रूम के ठीक सामने ही थी. उस की 1-2 बार उठतीगिरती नजर मुझ से मिली. वह चुपचाप खाना खा रहा था. उस ने कुछ दोबारा मांगा नहीं. वैसे, मैं ने उस से 2 बार पूछा था कि कुछ और लीजिएगा, लेकिन उस ने इनकार कर दिया. वह खाना खा कर प्लेट उठा कर मेरी तरफ आने लगा.

मैं ने उस के हाथ से प्लेट ले ली. इस बीच भी वह कुछ नहीं बोला. वह बहुत कम बोलता था. अभी नया था, इसलिए शायद थोड़ा हिचक रहा था. इसी बीच दीदी यानी मेरी जेठानी ने आवाज दी कि नीचे मेरी बेटी रो रही थी. मैं नीचे चली गई और अपनी बेटी को दूध पिलाने लगी.  शाम के 5 बजने वाले थे. मैं ऊपर चाय बनाने के लिए आई. देखा तब भी वहीं बिस्तर पर बैठा कोई किताब के पन्ने उलट रहा था. ‘‘चाय पीजिएगा?’’ मैं ने पूछा. ‘‘हां…’’ उस ने कहा. मैं चाय बनाने लगी.

वह वैसे ही अपनी किताब में उलझा रहा.  ‘‘मैं नीचे दीदी को पहले चाय दे कर आती हूं, तब आप को चाय देती हूं. तब तक आप यह चाय देखिए, उबल कर गिर न जाए…’’ ‘‘ठीक है,’’ कहते हुए वह उठ कर चूल्हे के पास आ गया. मैं चाय ले कर नीचे चली आई.  चाय दे कर मैं तेज कदमों से चढ़ती हुई ऊपर आई. वह वहीं खड़ा था और चाय को उबलते हुए देख रहा था. ‘‘आप बैठिए, मैं अभी चाय छान कर लाती हूं.’’ वह वापस कमरे में चला गया. ‘‘पानी भी लेंगे क्या?’’ मैं ने पूछा. ‘‘हां…’’ वह इतना ही बोला. मैं पानी उस के सामने ड्रैसिंग टेबल पर रख आई और आ कर चाय छानने लगी.

चाय 2 कप में निकाल कर मैं उस के पास आई.  चाय का कप मैं ने उस के हाथों में पकड़ाया. मेरा हाथ उस से छू गया. पहली बार यही स्पर्श हुआ था मेरे और उस के बीच. उस ने मेरी तरफ देखा. मैं अपना कप ले कर वहीं बगल में बैठ गई. उस की नजरें कप में गड़ी हुई थीं.

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