इसी महीने की 30 तारीख को अपने महल्ले के वर्मा साहब रिटायर हो कर गले में अपने भार से ज्यादा भारी फूलों की मालाएं लादे साहब के बगल में पसरे गाड़ी में आए, तो पूरे महल्ले ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. गले में फूलों की मालाएं डाले उस वक्त उन के बगल में उन के साहब उन के पद वाले लग रहे थे, तो वे अपने साहब के पद वाले.

तब उन्होंने अपने गले की मालाएं बड़ी कस कर पकड़ी हुई थीं.वर्मा साहब को उस वक्त चिंता थी तो बस यही कि कहीं उन के साहब उन के गले से माला निकाल कर अपने गले में न डाल लें. जब उन के साहब उन की गले की माला ठीक करने लगते, तो उन्हें लगता जैसे वे उन के गले से माला छीनने की कोशिश कर रहे हों.बहुत शातिर हैं वर्मा साहब के साहब.

सभी के फायदे को यों डकार जाते हैं कि किसी को उस की हवा भी नहीं लगने देते. जितने को हवा लगती है, उतने का साहब हाथ साफ करने के बाद धो भी चुके होते हैं. ये मालाओं का मोह होता ही ऐसा है कमबख्त. जिस के गले में एक बार जैसेकैसे पड़ गईं, उस के बाद उन्हें बचाना बहुत मुश्किल होता है.तब महल्ले वाले वर्मा साहब के गले में उन के भार से ज्यादा भारी मालाएं देख कर इशारों ही इशारों में एकदूसरे से बातें करने लगे,

‘अरे, हम तो वर्मा साहब को यों ही समझते थे कि वे औफिस में क्लास थ्री हैं, पर ये तो इस वक्त साहब के भी बाप लग रहे हैं. हम ने तो सोचा था कि ये रिटायरमैंट वाले दिन भी रोज की तरह पैदल ही घर आएंगे, जैसे रोज आया करते थे,

पर…’महल्ले वाले उन को महल्ले की दाल समझते हों तो समझते रहें, पर वे पकौड़े से कम नहीं, वह भी बेसन वाले नहीं, पनीर वाले. ये तो अपने वर्मा साहब का भला हो कि… जो बाहर को कोई उन के पद जितना ऊंचा मुलाजिम होता,

तो सारे महल्ले को नाकों चने चबवाया करता दिन में 10-10 बार.जैसे ही वर्मा साहब अपने घर के बाहर सड़क पर अपने दफ्तर की गाड़ी से अपनी परवाह किए बिना अपने गले की मालाओं को संभालते उतरे, तो उन की बीवी ने उन की आरती यों उतारी जैसे बलि के बकरे की बलि देने से पहले पुजारी उस की आरती उतारता है.उस के बाद बड़ी देर तक वर्मा साहब के घर में चहलपहल रही.

कुछ देर बाद उन के औफिस वाले खापी कर उन को हाथ जोड़ उन के आगे की बची जिंदगी को शुभकामनाओं में लपेट कर हमदर्दी देते दुम दबाए चलते बने. उस के बाद भी बड़ी देर तक उन के यहां खूब पार्टी उड़ती रही. महल्ले वालों ने डट कर खाया.

उन्होंने भी जो 30 साल तक औफिस में डट कर अपने हिस्से का खाया था, उस में से दिल खोल कर महल्ले वालों को डट कर खिलाया, ताकि औफिस में खाए के पाप को महल्ले वालों के सिर पर भी थोड़ाबहुत डाला जा सके.बड़ी देर तक वर्मा साहब दिल खोल कर अपने औफिस के वे किस्से भी अपने साथ बैठों को कौफी पीते सुनाते रहे, जो उन्होंने बौस के डर के मारे आज तक खुद को भी न सुनाए थे.

मुझे पता था कि कल तक जो ऊंट औफिस में हर काम करवाने वाले को अपने नीचे ले कर ही रखता था, कल से वही ऊंट पहाड़ के नीचे आने वाला नहीं, जब तक जिंदा रहेगा, अब तब तक पहाड़ के नीचे ही रहेगा.आखिरकार जब पार्टी खत्म हुई, तो वर्मा साहब के सब यारदोस्त खापी कर अपनेअपने घर निकल गए, तब उन की बीवी ने उन को समझाते हुए कहा,

‘‘देखोजी, अब ध्यान से सुनो. कान खोल कर सुनो. अब तुम रिटायर पति हो, औफिस वाले पति नहीं…’’‘‘तो क्या हो गया? पति तो हूं न?’’‘‘तो अब हो यह गया कि अपने गले से सारी मालाएं निकाल कर अपनी सामने वाली तसवीर पर डाल दो और यह पकड़ो लिस्ट…’’

‘‘काहे की लिस्ट? तुम्हें पता नहीं कि मैं लिस्ट लेता नहीं, लिस्ट देता रहा हूं…’’‘‘डियर पति, घर के कामों की. लिस्ट देने वाले दिन बीत गए अब. बहुत धमाचौकड़ी कर ली औफिस में.

अब से तुम्हारा औफिस यह होगा और ड्यूटी टाइम 11 से 4 नहीं, बल्कि सुबह 5 बजे से रात को 10 बजे तक रहेगा. जिस दिन काम ज्यादा हुआ, उस दिन रात के 12 भी बज सकते हैं.’’

‘‘मतलब कि ओवर टाइम?’’ वर्मा साहब को काटो तो खून नहीं.‘‘जी हां, ओवर टाइम. पर उस की न छुट्टी, न अलग से पैमेंट. अब तुम्हें कल से ये सारे काम करने हैं. लिस्ट गले में डाल लो, ताकि याद करने में आसानी रहे.’’बीवी ने उन्हें 2 फुट लंबी घर के कामों की लिस्ट थमाई,

तो उन्हें उन के पैर के नीचे से उन्हीं के नाम की रजिस्ट्री हुई जमीन सरकती लगी.‘‘कुछ देर आराम कर लो. दोस्तों से गपें मार कर थक गए होंगे. 30 साल तक बहुत करवा ली सब से अपनी सेवा, अब कल से तुम मेरी सेवा करोगे. पता नहीं फिर अगले जन्म में मुझे तुम से अपनी सेवा करवाने का मौका मिले या न मिले,’’ वर्मा साहब की बीवी ने कहा और सोने चली गई.

तब वर्मा साहब कभी अपने हाथ में बीवी द्वारा थमाई गई कामों की लिस्ट देखते, तो कभी अपनी तसवीर पर अपने गले से उतार कर चढ़ाई गई फूलों की मालाएं. जब उन का रोना निकल आया, तो वे अपनेआप से बोले, ‘‘जरा इन फूलों की खुशबू तो खत्म होने देती,’’

पर उन के सिवा उन की सुनने वाला वहां था ही कौन, जो ऐसा होने देता.सुबह ज्यों ही वर्मा साहब की बीवी ने बांग दी तो वे उछल कर नहीं, छल कर जागे.

फटाफट घर के कामों की लिस्ट देखी. सब से ऊपर वाला काम बीवी के बांग देते ही होना था, सो बेचारे अधजगे ही करने लगे.10 बजे के आसपास मैं ने भी सोचा, ‘चलो, वर्मा साहब के दर्शन कर लेते हैं. बेचारे औफिस जाने को फड़फड़ा रहे होंगे…’मैं उन के घर गया उन की रिटायरमैंट के बाद की जिंदगी का लाइव देखने. उस वक्त वे कमरे में झाड़ू लगा रहे थे. उन्होंने मुझे देखा, तो वे झाड़ू कोने की ओर फेंकते हुए ठिठके तो मैं ने उन से हंसते हुए कहा,

‘‘शरमाओ मत वर्मा साहब. यही होना है अब तो जब तक जिंदा हैं. इसी बहाने अब थोड़ीबहुत एक्सरसाइज भी हो जाया करेगी… और रिटायरमैंट के बाद हर मर्द को देरसवेर कुशल गृहिणी होना ही पड़ता है.’’‘‘पर यार…’’ वे कोने से झाड़ू उठा कर मुझे पकड़ाने की कोशिश करने लगे, तो मैं ने कहा,

‘‘मैं अपने घर में कर के आ गया हूं वर्मा साहब. सोचा, अब आप का भी हालचाल पूछ आऊं. इस बहाने मुझे जरा आराम भी मिल जाएगा. उस के बाद तो…’’‘‘रिटायरमैंट के बाद क्या यह सब के साथ होता है यार?’’ वर्मा साहब ने रुंधे गले पूछा, तो मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, अपने महल्ले में तो तकरीबन हर क्लास वन से ले कर क्लास फोर रिटायरी के साथ यही हो रहा है…’’‘‘मतलब…?’’‘‘सब समझ जाओगे वर्मा साहब. 2-4 दिन और ठहरो,’’ मैं ने कहा, तो उन्होंने चैन की इतनी लंबी सांस ली कि उस वक्त वे मेरे नाक की सारी हवा भी खींच ले गए जालिम कहीं के

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