दुनिया के किसी भी समाज में अपराध को पूरी तरह रोक पाना तकरीबन नामुमकिन है. लेकिन ऐसा न हो, इसलिए पुलिस के साथसाथ मीडिया वाले भी किसी अपराध की हकीकत बताते हुए लोगों को जागरूक करते रहते हैं, ताकि भविष्य में ऐसे कांड न होने पाएं. पिछले काफी सालों से टैलीविजन पर हत्या जैसे अपराधों की कहानियां ‘क्राइम पैट्रोल’ या ‘सावधान इंडिया’ या फिर दूसरे नामों से दिखाई जाती हैं और ‘मनोहर कहानियां’ या ‘सत्यकथा’ जैसी अपराध खोजी पत्रिकाएं भी देशविदेश में होने वाले अपराधों की जानकारी देती रहती हैं, ताकि लोग अपने आसपास नजरें जमाए रखें कि कहीं कोई बड़े कांड की तैयारी तो नहीं कर रहा है.

इस के बावजूद अगर देश की राजधानी में कोई लड़का अपनी लिवइन पार्टनर की हत्या कर के काफी दिनों तक मासूम होने का ढोंग करता रहे तो समझ लीजिए कि लोगों की भावनाओं के साथसाथ उन की इनसानियत भी दम तोड़ रही है.

दिल्ली के महरौली इलाके में 18 मई, 2022 को ऐसा ही एक दिल दहलाने वाला कांड हुआ था, पर इस का खुलासा कई महीने बाद हुआ. वह भी तब जब दिल्ली पुलिस ने पीडि़ता श्रद्धा के पिता विकास वालकर द्वारा दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत की जांच शुरू की थी.

श्रद्धा की हत्या उस के तथाकथित प्रेमी आफताब ने की थी और इस की जड़ में था उन के बीच का झगड़ा. दिल्ली पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस प्रेमी जोड़े के बीच 18 मई, 2022 को पहली बार झगड़ा नहीं हुआ था, बल्कि वे दोनों पिछले काफी समय से झगड़ा करते आ रहे थे. समाचार एजेंसी एएनआई को सूत्रों ने बताया कि 18 मई को मुंबई से घर का सामान लाने को ले कर आफताब और श्रद्धा के बीच झगड़ा हुआ था. घर का खर्च कौन उठाएगा और सामान कौन लाएगा, इस बात को ले कर भी उन में झगड़े होते थे. इस बात को ले कर आफताब काफी गुस्से में आ गया था.

18 मई, 2022 की रात को तकरीबन 8 बजे दोनों के बीच जम कर झगड़ा शुरू हुआ. झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि आफताब ने श्रद्धा की गला दबा कर हत्या कर दी. उस ने रातभर श्रद्धा की लाश को कमरे में रखा और अगले दिन

चाकू और रैफ्रिजरेटर खरीदने चला गया. पर क्यों?

क्या है पूरा मामला आफताब और श्रद्धा पिछले 3 साल से झगड़ रहे थे. वे आपस में क्यों झगड़ते थे, इस से पहले यह जान लेते हैं कि वे दोनों कौन थे और मुंबई छोड़ कर दिल्ली में क्या कर रहे थे?पेशे से शैफ और फोटोग्राफर तकरीबन 28 साल के आफताब पूनावाला का जन्म मुंबई में हुआ था और वह वहां अपने छोटे भाई अहद, पिता आमिन और मां मुनीरा बेन के साथ वसई उपनगर में बनी यूनिक पार्क हाउसिंग सोसाइटी में रहता था.

मुंबई के एलएस रहेजा कालेज से ग्रेजुएट आफताब पूनावाला इस साल की शुरुआत में श्रद्धा से मिलने के बाद दिल्ली में रहने लगा था.श्रद्धा का पूरा नाम श्रद्धा वाकर था. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के पालघर जिले की रहने वाली थी और मुंबई के मलाड इलाके में एक मल्टीनैशनल कंपनी के एक काल सैंटर में काम करती थी. यहीं से उस की मुलाकात आफताब पूनावाला से हुई थी.

कुछ ही समय में श्रद्धा और आफताब एकदूसरे से बेहद प्यार करने लगे थे और उन्होंने शादी तक का फैसला कर लिया था, लेकिन उन दोनों के परिवार वाले इस रिश्ते से खुश नहीं थे. नतीजतन, उन दोनों ने अपने प्यार की खातिर परिवार और मुंबई छोड़ दी. इस के बाद वे दिल्ली आ गए और महरौली के एक फ्लैट में लिवइन में रहने लगे. पुलिस की पूछताछ में आरोपी आफताब पूनावाला ने अपना गुनाह कबूल करते हुए बताया कि श्रद्धा उस पर लगातार शादी करने का दबाव बना रही थी. वह रोजाना सुबह से ले कर शाम तक बस एक ही बात कहती थी कि शादी कर लो. इसी बात को ले कर उन के बीच आएदिन झगड़ा होता था. पूछताछ में यह भी सामने आया कि आफताब की कई दूसरी लड़कियों से भी दोस्ती थी, जिन को ले कर श्रद्धा को उस पर शक हो रहा था. जब श्रद्धा ने इस बारे में पूछा तो आफताब ने सिरे से खारिज कर दिया.

18 मई, 2022 की रात भी दोनों के बीच इन्हीं सब बातों को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस के बाद आफताब ने श्रद्धा की बेरहमी से हत्या कर दी. श्रद्धा को मारने वाले आफताब की हैवानियत से इनकार नहीं किया जा सकता है. उस ने उस लड़की को मौत के घाट उतार दिया, जिस से वह प्यार करता था और उस के साथ एक ही घर में रहता था. पर ऐसा क्यों होता है कि कोई इनसान किसी के साथ जानवर जैसा बरताव करने पर उतारू हो जाता है?

क्या श्रद्धा ने शादी की बात कह कर इतनी बड़ी गलती कर दी थी कि उसे अपनी ही जान से हाथ धोना पड़ा? आफताब जैसे लोगों की यह कैसी फितरत होती है कि वे कोल्ड ब्लडेड मर्डर को अंजाम दे देते हैं और किसी को खबर तक नहीं लगती? सब से बड़ा सवाल यह कि ऐसे मामलों में लव जिहाद का एंगल कैसे जुड़ जाता है लव जिहाद का हौआ उन्हीं मामलों में उछाला जाता है, जहां लड़का मुसलिम और लड़की हिंदू होती है, पर यहां तो शादी ही नहीं हुई थी. आफताब ने एक दिल दहला देने वाला कांड सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि वह मुसलिम था, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती है.

जब आफताब ने श्रद्धा का कत्ल किया था, तब वह नशे में था. अब अगर पुलिस को शक है कि आफताब सीरियल किलर हो सकता है, तो लव जिहाद का बुलबुला वैसे ही फूट जाता है.इस हत्याकांड ने साल 2010 की उसी खौफनाक कहानी को याद दिला दिया है, जिस में श्रद्धा की तरह ही एक और औरत की हत्या की गई थी. तब 36 साल की अनुपमा गुलाटी की उस के पति राजेश गुलाटी ने उत्तराखंड के देहरादून में हत्या कर दी थी.हत्यारे राजेश ने अनुपमा को मारने के बाद उस के शरीर के 70 टुकड़े करने के लिए बिजली से चलने वाले कटर का इस्तेमाल किया था. वहां तो लव जिहाद की कोई गुंजाइश नहीं थी, जबकि कांड बहुत बड़ा था.

अगर कोई अपना जानवर सरीखा हो कर जुल्म करे तो यकीनन हमें ही उसे पहचानने में कोई कमी रह गई है. श्रद्धा को जरूर अंदाजा रहा होगा कि आफताब जब आपा खो बैठता है, तो वह किस हद तक जा सकता है. इस के बावजूद वह उस के दिमाग को पढ़ नहीं पाई. दरअसल, आफताब पूनावाला या राजेश गुलाटी जैसे लोग स्वभाव से गुस्सैल होते हैं, जो सामने वाले की छोटी से छोटी बात को दिल से लगा लेते हैं. फिर वे सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करते हैं और जब उन्हें ‘न’ सुनने को मिलती है, तो वे इसे बरदाश्त नहीं कर पाते हैं.

साल 1995 के दिल्ली में हुए जेसिका लाल हत्याकांड में आरोपी मनु शर्मा को जेसिका की ‘न’ ही चुभ गई थी कि एक बारमेड कैसे उसे ड्रिंक देने से मना कर सकती है और मनु शर्मा ने जेसिका पर गोली दागने में देर नहीं की. आफताब ने श्रद्धा की लाश के टुकड़े करने में झिझक महसूस नहीं की. तो क्या वह चाकू का इस तरह इस्तेमाल करने का आदी था? ऐसा हो सकता है, क्योंकि गला घोंट कर मारने के बाद फुतूर सिर से उतरने के बाद वह घबरा सकता था, पर उस ने ऐसा नहीं किया और श्रद्धा की लाश के टुकड़ेटुकड़े करने में कोई दया नहीं दिखाई.

चूंकि श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं है, तो उसे ही पीडि़ता समझा जाएगा, पर आफताब पूनावाला जैसे अपराधी दिमाग के लोग खुद को पीडि़त समझते हैं और पीड़ा देने वाले को सजा देना अपना हक समझते हैं. गला दबा कर मारने के बाद भी आफताब को संतुष्टि नहीं मिली थी. वह श्रद्धा की लाश को भी सजा देना चाहता था, ताकि खुद के अहम को संतुष्टि मिले. अगर दूसरी तरफ श्रद्धा आफताब पर शादी करने का जोर दे रही थी, तो इस में कोई गलत बात नहीं थी. लेकिन उन के रोजरोज के झगड़ों के बावजूद श्रद्धा आफताब की बदनीयती नहीं समझ पाई तो यही उस की सब से बड़ी गलती थी.

श्रद्धा ने अपने मांबाप की नहीं सुनी और आफताब के साथ बिना शादी किए एकसाथ रहने लगी, यहां तक तो सब ठीक था, पर उसे आफताब के गुस्सैल स्वभाव को समझ जाना चाहिए था. वह उस से तुरंत अलग हो जाती. अगर मांबाप के घर नहीं जाती तो भी कोई बात नहीं थी. वह अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए अकेली रह सकती थी. उसे पीजी में तो जगह मिल ही जाती, जहां उस की जान बची रह सकती थी. पर वह ऐसा न करने की गलती कर बैठी.

ऐसे मामलों में गलती तो उन पड़ोसियों की भी होती है, जो ऐसे झगड़ों की जड़ में जाने के बजाय कन्नी काट लेते हैं. इस मामले में पड़ोसी जानते थे कि आफताब और श्रद्धा झगड़ते थे, पर उन्हें भी इतना बड़ा अपराध होने की भनक तक नहीं लग पाई. आफताब ने श्रद्धा का सिर काट कर उसे रैफ्रिजरेटर में रखा और जिस्म के कई टुकड़े कर दिए थे. हत्या के 5 महीने बाद उस ने उन्हें ठिकाने लगाना शुरू किया, पर मजाल है कि पड़ोसी यह हत्याकांड सूंघ पाए. आफताब लाश काटते समय पानी का नल चला देता था, ताकि खून नाली में बह जाए. उस पर पानी के बिल के 300 रुपए पैंडिंग थे, पर मकान मालिक को जरा भी शक नहीं हुआ.

दिक्कत यह है कि शहरों में लोग धीरेधीरे सामाजिक सरोकारों को भूलते जा रहे हैं. कोई आप के पड़ोस में आया तो यह कह कर नाकभौं सिकोड़ लेते हैं कि बड़ा अजीब है, ‘नमस्ते’ तक नहीं की. पर क्या हम खुद कोई पहल करते हैं? पड़ोस में जब भी कोई आता है, तो उसे चायपानी पूछ कर अच्छे पड़ोसी होने का संकेत दे सकते हैं, फिर यह उस पर है कि वह अपना मेलजोल बढ़ाता है या नहीं. इस से एकदूसरे को कुछ हद तक समझने में मदद मिल जाती है.

इस सब के बावजूद आफताब पूनावाला जैसे अपराधी का दिमाग पढ़ना मुश्किल होता है, पर श्रद्धा को अगर यह पता लगने लगा था कि आफताब उस पर हावी होने की नाजायज कोशिश करने लगा है, तो उसे सतर्क हो जाना चाहिए था. उसे कतई आफताब की उंगलियों पर नहीं नाचना चाहिए था और किसी को अपने इस बिगड़ते रिश्ते के बारे में बता देना चाहिए था.लेकिन जिस देश में बड़ी आसानी से निठारी कांड हो जाता हो या जहां आज तक आरुषी हत्याकांड के हत्यारे के बारे में पता नहीं चल पाया हो, वहां आम लोगों की समाज के प्रति जागरूकता की असलियत की पोल खुल जाती है.

पहले लोग आसपड़ोस में आंखें खुली रख कर जिम्मेदार नागरिक होने के संकेत दे देते थे, पर अब तो मकान मालिक को किराएदार से किराया लेने के अलावा कोई सरोकार नहीं होता है. पड़ोसी भी बंद कमरों से आती झगड़े की आवाजों को नजरअंदाज कर देते हैं और जब कोई बड़ा कांड हो जाता है, तो ऐसे चौंकते हैं, जैसे उन्हें कुछ मालूम ही नहीं था.आफताब पूनावाला जैसे लोग समाज का वे अटूट हिस्सा हैं, जो कहीं भी हो सकते हैं और अपने आसपड़ोस में बड़े अच्छे होने की ऐक्टिंग करते हैं, इसीलिए उन्हें कांड होने से पहले समझ लेना बड़ा मुश्किल होता है, पर यह नामुमकिन भी नहीं है.अगर हम सतर्क रहें, क्योंकि हर बड़े अपराध की दस्तक बहुत पहले होने लगती है, अगर उसे सुन लिया जाए तो. लेकिन हमारे इसी बहरेपन का फायदा अपराधी उठाते हैं.

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