12 साल की स्वरा शाम में खेलकूद कर वापस आई. दरवाजे की घंटी बजाई तो
सामने किसी अजनबी युवक को देख कर चकित रह गई.

तब तक अंदर से उस की मां सुदीपा बाहर निकली और मुस्कुराते हुए बेटी से
कहा,” बेटे यह तुम्हारी मम्मा के फ्रेंड, अविनाश अंकल हैं . नमस्ते करो
अंकल को.”

“नमस्ते मम्मा के फ्रेंड अंकल ,” कह कर हौले से मुस्कुरा कर वह अपने कमरे
में चली आई और बैठ कर कुछ सोचने लगी. कुछ ही देर में उस का भाई विराज भी
घर लौट आया. विराज स्वरा से दोतीन साल ही बड़ा था.

विराज को देखते ही स्वरा ने सवाल किया,” भैया आप मम्मा के फ्रेंड से मिले?”

“हां मिला, काफी यंग और चार्मिंग हैं. वैसे 2 दिन पहले भी आए थे. उस दिन
तू कहीं गई हुई थी.”

“वह सब छोड़ो भैया. आप तो मुझे यह बताओ कि वह मम्मा के बॉयफ्रेंड हुए न ?”

” यह क्या कह रही है पगली, वह तो बस फ्रेंड है. यह बात अलग है कि आज तक
मम्मा की सहेलियां ही घर आती थीं. पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की है
मम्मा ने.”

” वही तो मैं कह रही हूं कि वह बॉय भी है और मम्मा का फ्रेंड भी. यानी वह
बॉयफ्रेंड ही तो हुए न,” मुस्कुराते हुए स्वरा ने कहा.

” ज्यादा दिमाग मत दौड़ा. अपनी पढ़ाई कर ले,” विराज ने उसे धौल जमाते हुए कहा.

थोड़ी देर में अविनाश चला गया तो सुदीपा की सास अपने कमरे से बाहर आती हुए
थोड़ी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं,” बहू क्या बात है, तेरा यह फ्रेंड अब
अक्सर ही घर आने लगा है.”

“अरे नहीं मम्मी जी वह दूसरी बार ही तो आया था और वह भी ऑफिस के किसी काम
के सिलसिले में ही आया था.”

” मगर बहू तू तो कहती थी कि तेरे ऑफिस में ज्यादातर महिलाएं हैं. अगर
पुरुष हैं भी तो वे अधिक उम्र के हैं. जब कि यह लड़का तो तुझ से भी छोटा
लग रहा था.”

” मम्मी जी हम समान उम्र के ही हैं. अविनाश मुझ से केवल 4 महीने छोटा है.
एक्चुअली हमारे ऑफिस में अविनाश का ट्रांसफर हाल में ही हुआ है. पहले उस
की पोस्टिंग हेड ऑफिस मुंबई में थी. सो इसे प्रैक्टिकल नॉलेज काफी ज्यादा
है. कभी भी कुछ मदद की जरूरत होती है तो यह तुरंत आगे आ जाता है. तभी यह
ऑफिस में बहुत जल्द सब का दोस्त बन गया है. अच्छा मम्मी जी आप बताइए आज
खाने में क्या बनाऊं?”

” जो दिल करे बना ले बहू, पर देख लड़कों को जरूरत से ज्यादा मेलजोल बढ़ाना
सही नहीं होता. तेरे भले के लिए ही कह रही हूं बहू.”

” अरे मम्मी जी आप निश्चिंत रहिए. अविनाश बहुत अच्छा लड़का है,” कह कर
हंसती हुई सुदीपा अंदर चली गई मगर सास का चेहरा बना रहा.

रात में जब सुदीपा का पति अनुराग घर लौटा तो खाने के बाद सास ने अनुराग
को कमरे में बुलाया और धीमी आवाज में उसे अविनाश के बारे में सब कुछ
बताने लगी.

अनुराग ने मां को समझाने की कोशिश की,” मां आज के समय में महिलाओं और
पुरुषों की दोस्ती आम बात है. वैसे भी आप जानती ही हो सुदीपा कितनी
समझदार है. आप टेंशन क्यों लेते हो मां ?”

” बेटा मेरी बूढ़ी हड्डियों ने इतनी दुनिया देखी है जितनी तू सोच भी नहीं
सकता. स्त्रीपुरुष की दोस्ती यानी घी और आग की दोस्ती. आग पकड़ते समय
नहीं लगता बेटे. मेरा फर्ज था तुझे समझाना सो समझा दिया.”

” डोंट वरी मां ऐसा कुछ नहीं होगा. अच्छा मैं चलता हूं सोने,” अविनाश मां
के पास से तो उठ कर चला आया मगर कहीं न कहीं उन की बातें देर तक उस के
जेहन में घूमती रहीं. वह सुदीपा से बहुत प्यार करता था और उस पर पूरा
यकीन भी था. मगर आज जिस तरह मां शक जाहिर कर रही थीं उस बात को वह पूरी
तरह इग्नोर भी नहीं कर पा रहा था.

रात में जब घर के सारे काम निपटा कर सुदीपा कमरे में आई तो अविनाश ने उसे
छेड़ने के अंदाज में कहा ,” मां कह रही थीं आजकल आप की किसी लड़के से
दोस्ती हो गई है और वह आप के घर भी आता है.”

पति के भाव समझते हुए सुदीपा ने भी उसी लहजे में जवाब दिया,” जी हां आप
ने सही सुना है. वैसे मां तो यह भी कह रही होंगी कि कहीं मुझे उस से
प्यार न हो जाए और मैं आप को चीट न करने लगूं. ”

” हां मां की सोच तो कुछ ऐसी ही है मगर मेरी नहीं. ऑफिस में मुझे भी
महिला सहकर्मियों से बातें करनी होती हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि
मैं कुछ और सोचने लगूं. मैं तो मजाक कर रहा था.”

” आई नो एंड आई लव यू, ” प्यार से सुदीपा ने कहा.

” ओहो चलो इसी बहाने यह लफ्ज़ इतने दिनों बाद सुनने को तो मिल गए,”
अविनाश ने उसे बाहों में भरते हुए कहा.

सुदीपा खिलखिला कर हंस पड़ी. दोनों देर तक प्यार भरी बातें करते रहे.

वक्त इसी तरह गुजरने लगा. अविनाश अक्सर सुदीपा के घर आ जाता. कभीकभी
दोनों बाहर भी निकल जाते. अनुराग को कोई एतराज नहीं था इसलिए सुदीपा भी
इस दोस्ती को एंजॉय कर रही थी. साथ ही ऑफिस के काम भी आसानी से निबट
जाते. सुदीपा ऑफिस के साथ घर भी बहुत अच्छे से संभालती थी. अनुराग को इस
मामले में भी पत्नी से कोई शिकायत नहीं थी.

पर मां अक्सर बेटे को टोकतीं ,”यह सही नहीं है अनुराग. तुझे फिर कह रही
हूं, पत्नी को किसी और के साथ इतना घुलनमलने देना उचित नहीं.”

” मां एक्चुअली सुदीपा ऑफिस के कामों में ही अविनाश की हेल्प लेती है.
दोनों एक ही फील्ड में काम कर रहे हैं और एकदूसरे को अच्छे से समझते हैं.
इसलिए स्वाभाविक है कि काम के साथसाथ थोड़ा समय संग बिता लेते हैं. इस
में कुछ कहना मुझे ठीक नहीं लगता मां और फिर तुम्हारी बहू इतना कमा भी तो
रही है. याद करो मां जब सुदीपा घर पर रहती थी तो कई दफा घर चलाने के लिए
हमारे हाथ तंग हो जाते थे. आखिर बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके इस के
लिए सुदीपा का काम करना भी तो जरूरी है न. फिर जब वह घर संभालने के बाद
काम करने बाहर जा रही है तो हर बात पर टोकाटाकी भी तो अच्छी नहीं लगती
न. ”

” बेटे मैं तेरी बात समझ रही हूं पर तू मेरी बात नहीं समझता. देख थोड़ा
नियंत्रण भी जरूरी है बेटे वरना कहीं तुझे बाद में पछताना न पड़े,” मुंह
बनाते हुए मां ने कहा.

” ठीक है मां मैं बात करूंगा ,” कह कर अनुराग चुप हो जाता.

एक ही बात बारबार कही जाए तो वह कहीं न कहीं दिमाग पर असर डालती है. ऐसा
ही कुछ अनुराग के साथ भी होने लगा था. जब काम के बहाने सुदीपा और अविनाश
शहर से बाहर जाते तो अनुराग का दिल बेचैन हो उठता. उसे कई दफा लगता कि
सुदीपा को अविनाश के साथ बाहर जाने से रोक ले या डांट लगा दे. मगर वह ऐसा
कर नहीं पाता. आखिर उस की गृहस्थी की गाड़ी यदि सरपट दौड़ रही थी तो उस
के पीछे कहीं न कहीं सुदीपा की मेहनत ही तो थी.

इधर बेटे पर अपनी बातों का असर पड़ता न देख अनुराग के मांबाप ने अपने
पोते और पोती यानी बच्चों को उकसाना शुरू किया. एक दिन दोनों बच्चों को
बैठा कर वह समझाने लगे,” देखो बेटे आप की मम्मा की अविनाश अंकल से दोस्ती
ज्यादा ही बढ़ रही है. क्या आप दोनों को नहीं लगता कि मम्मा आप को या
पापा को अपना पूरा समय देने के बजाय अविनाश अंकल के साथ घूमने चली जाती
है? ”

” दादी जी मम्मा घूमने नहीं बल्कि ऑफिस के काम से ही अविनाश अंकल के साथ
जाती हैं, ” विराज ने विरोध किया.

” भैया को छोड़ो दादी जी पर मुझे भी ऐसा लगता है जैसे मम्मा हमें सच में
इग्नोर करने लगी हैं. जब देखो ये अंकल हमारे घर आ जाते हैं या मम्मा को
ले जाते हैं. यह सही नहीं.”

“हां बेटे मैं इसलिए कह रही हूं कि थोड़ा ध्यान दो. मम्मा को कहो कि अपने
दोस्त के साथ नहीं बल्कि तुम लोगों के साथ समय बिताया करें.”

उस दिन संडे था. बच्चों के कहने पर सुदीपा और अनुराग उन्हें ले कर वाटर
पार्क जाने वाले थे. दोपहर की नींद ले कर जैसे ही दोनों बच्चे तैयार होने
लगे तो मां को न देख कर दादी के पास पहुंचे, “दादी जी मम्मा कहां है दिख
नहीं रही?”

“तुम्हारी मम्मा गई अपने फ्रेंड के साथ.”

“मतलब अविनाश अंकल के साथ?”

“हां ”

” लेकिन उन्हें तो हमारे साथ जाना था. क्या हम से ज्यादा बॉयफ्रेंड
इंपॉर्टेंट हो गया ?” कह कर स्वरा ने मुंह फुला लिया. विराज भी उदास हो
गया.

लोहा गरम देख दादी मां ने हथौड़ा मारने की गरज से कहा, ” यही तो मैं कहती
आ रही हूं इतने समय से कि सुदीपा के लिए अपने बच्चों से ज्यादा
महत्वपूर्ण वह पराया आदमी हो गया है. तुम्हारे बाप को तो कुछ समझ ही नहीं
आता.”

” मां प्लीज ऐसा कुछ नहीं है. कोई जरुरी काम आ गया होगा,” अनुराग ने
सुदीपा के बचाव में कहा.

” पर पापा हमारा दिल रखने से जरूरी और कौन सा काम हो गया भला? ” कह कर
विराज गुस्से में उठा और अपने कमरे में चला गया. उस ने अंदर से दरवाजा
बंद कर लिया.

स्वरा भी चिढ़ कर बोली,” लगता है मम्मा को हम से ज्यादा प्यार उस अविनाश
अंकल से हो गया है.”

वह भी पैर पटकती अपने कमरे में चली गई. शाम को जब सुदीपा लौटी तो घर में
सब का मूड ऑफ था.

सुदीपा ने बच्चों को समझाने की कोशिश करते हुए कहा,” तुम्हारे अविनाश
अंकल के पैर में गहरी चोट लगी लग गई थी. तभी मैं उन्हें ले कर अस्पताल
गई.”

” मम्मा आज हम कोई बहाना नहीं सुनने वाले. आप ने अपना वादा तोड़ा है और
वह भी अविनाश अंकल की खातिर. हमें कोई बात नहीं करनी ,” कह कर दोनों वहां
से उठ कर चले गए.

स्वरा और विराज मां की अविनाश से इन नज़दीकियों को पसंद नहीं कर रहे थे.
वे अपनी ही मां से कटेकटे से रहने लगे. गर्मी की छुट्टियों के बाद बच्चों
के स्कूल खुल गए और विराज अपने हॉस्टल चला गया.

इधर सुदीपा के सासससुर ने इस दोस्ती का जिक्र उस के मांबाप से भी कर
दिया. सुदीपा के मांबाप भी इस दोस्ती के खिलाफ थे. मां ने सुदीपा को
समझाया तो पिता ने भी अनुराग को सलाह दी कि उसे इस मामले में सुदीपा पर
थोड़ी सख्ती करनी चाहिए और अविनाश के साथ बाहर जाने की इजाजत कतई नहीं
देनी चाहिए.

इस बीच स्वरा की दोस्ती सोसाइटी के एक लड़के सुजय से हो गई. वह स्वरा से
दोचार साल बड़ा था यानी विराज की उम्र का था. वह जूडोकराटे में चैंपियन
और फिटनेस फ्रीक लड़का था. स्वरा उस की बाइक रेसिंग से भी बहुत प्रभावित
थी. वे दोनों एक ही स्कूल में थे. दोनों साथ स्कूल आनेजाने लगे. सुजय
दूसरे लड़कों की तरह नहीं था. वह स्वरा को अच्छी बातें बताता. उसे सेल्फ
डिफेंस की ट्रेनिंग देता और स्कूटी चलाना भी सिखाता. सुजय का साथ स्वरा
को बहुत पसंद आता.

एक दिन स्वरा सुजय को अपने साथ घर ले आई. सुदीपा ने उस की अच्छे से आवभगत
की. सब को सुजय अच्छा लड़का लगा इसलिए किसी ने स्वरा से कोई पूछताछ नहीं
की. अब तो सुजय अक्सर ही घर आने लगा. वह स्वरा की मैथ्स की प्रॉब्लम भी
सॉल्व कर देता और जूडोकराटे भी सिखाता रहता.

एक दिन स्वरा ने सुदीपा से कहा,” मम्मा आप को पता है सुजय डांस भी जानता
है. वह कह रहा था कि मुझे डांस सिखा देगा.”

” यह तो बहुत अच्छा है. तुम दोनों बाहर लॉन में या फिर अपनी कमरे में
डांस की प्रैक्टिस कर सकते हो.”

” मम्मा आप को या घर में किसी को एतराज तो नहीं होगा ?” स्वरा ने पूछा.

” अरे नहीं बेटा. सुजय अच्छा लड़का है. वह तुम्हें अच्छी बातें सिखाता
है. तुम दोनों क्वालिटी टाइम स्पेंड करते हो. फिर हमें ऐतराज क्यों होगा?
बस बेटा यह ध्यान रखना सुजय और तुम फालतू बातों में समय मत लगाना. काम
की बातें सीखो, खेलोकूदो, उस में क्या बुराई है ?”

“ओके थैंक यू मम्मा,” कह कर स्वरा खुशीखुशी चली गई.

अब सुजय हर संडे स्वरा के घर आ जाता और दोनों डांस प्रैक्टिस करते. समय
इसी तरह बीतता रहा. एक दिन सुदीपा और अनुराग किसी काम से बाहर गए हुए थे.
घर में स्वरा दादीदादी के साथ अकेली थी. किसी काम से सुजय घर आया तो
स्वरा उस से मैथ्स की प्रॉब्लम सॉल्व कराने लगी. इसी बीच अचानक स्वरा को
दादी के कराहने और बाथरूम में गिरने की आवाज सुनाई दी.

स्वरा और सुजय दौड़ कर बाथरूम पहुंचे तो देखा दादी फर्श पर बेहोश पड़ी है.
स्वरा के दादा ऊंचा सुनते थे. उन के पैरों में भी तकलीफ रहती थी. वह अपने
कमरे में सोए पड़े थे. स्वरा घबरा कर रोने लगी तब सुजय ने उसे चुप कराया
और जल्दी से एंबुलेंस वाले को फोन किया. स्वरा ने अपने मम्मी डैडी को भी
हर बात बता दी. इस बीच सुजय जल्दी से दादी को ले कर पास के अस्पताल भागा.
उस ने पहले ही अपने घर से रुपए मंगा लिए थे. अस्पताल पहुँच कर उस ने बहुत
समझदारी के साथ दादी को एडमिट करा दिया और प्राथमिक इलाज शुरू कराया. उन
को हार्ट अटैक आया था. अब तक स्वरा के मांबाप भी हॉस्पिटल पहुंच गए थे.

डॉक्टर ने सुदीपा और अनुराग से सुजय की तारीफ करते हुए कहा,” इस लड़के ने
जिस फुर्ती और समझदारी से आप की मां को हॉस्पिटल पहुंचाया वह काबिलेतारीफ
है. अगर ज्यादा देर हो जाती तो समस्या बढ़ सकती थी और जान को भी खतरा हो
सकता था. ”

सुदीपा ने बढ़ कर सुजय को गले से लगा लिया. अनुराग और उस के पिता ने भी
नम आंखों से सुजय का धन्यवाद कहा. सब समझ रहे थे कि बाहर का एक लड़का आज
उन के परिवार के लिए कितना बड़ा काम कर गया. हालात सुधरने पर स्वरा की
दादी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

घर लौटने पर दादी ने सुजय का हाथ पकड़ कर गदगद स्वर में कहा,” आज मुझे
पता चला कि दोस्ती का रिश्ता इतना खूबसूरत होता है. तुम ने मेरी जान बचा
कर इस बात का एहसास दिला दिया बेटे की दोस्ती का मतलब क्या है.”

“यह तो मेरा फर्ज था दादी जी, ” सुजय ने हंस कर कहा.

तब दादी ने सुदीपा की तरफ देख कर ग्लानि भरे स्वर में कहा,” मुझे माफ कर
दे बहू. दोस्ती तो दोस्ती होती है, बच्चों की हो या बड़ों की. तेरी और
अविनाश की दोस्ती पर शक कर के हम ने बहुत बड़ी भूल कर दी. आज मैं समझ
सकती हूं कि तुम दोनों की दोस्ती कितनी प्यारी होगी. आज तक मैं समझ ही
नहीं पाई थी. ”

सुदीपा बढ़ कर सास के गले लगती हुई बोली,” मम्मी जी आप बड़ी हैं. आप को मुझ
से माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं. आप अविनाश को जानती नहीं थीं इसलिए आप
के मन में सवाल उठ रहे थे. यह बहुत स्वाभाविक था. पर मैं उसे पहचानती हूं
इसलिए बिना कुछ छुपाए उस रिश्ते को आप के सामने ले कर आई थी. ”

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सुदीपा ने दरवाजा खोला तो सामने हाथों में फल
और गुलदस्ता लिए अविनाश खड़ा था. घबराए हुए स्वर में उस ने पूछा,” मैं ने
सुना है कि अम्मां जी की तबीयत खराब हो गई है. अब कैसी हैं वह? ”

” बस तुम्हें ही याद कर रही थीं,” हंसते हुए सुदीपा ने कहा और हाथ पकड़
कर उसे अंदर ले आई.

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