डाक्टरों को अंजु के दिमाग का औपरेशन इमरजैंसी में करना पड़ा है. पड़ोसी और रिश्तेदारों को मिला कर कम से कम 20 लोग अस्पताल में आए हैं. सब को औपरेशन के बाद अंजु के होश में आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार है. अस्पताल के हाल में आंखें बंद कर के मैं एक कुरसी पर बैठी तो अंजु से जुड़ी अतीत की बहुत सी घटनाएं मुझे बरबस याद आने लगीं.

पिछले 40 सालों में सुखदुख में साथ निभाने के कारण हमारी दोस्ती की नींव बहुत मजबूत हो गई है. मेरे सुखदुख में वह हमेशा मेरे साथ खड़ी हुई है. बस, एक विषय ऐसा है जिसे ले कर हमारे बीच हमेशा से बहस चलती आई है. मैं हमेशा उस को समझाती रही हूं कि अपने जीवन को आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित बना कर रखना, हम औरतों के लिए खासकर बहुत जरूरी है.

उस ने हमेशा मुसकराते हुए लापरवाही से जवाब दिया, ‘पैसा अपनी जगह महत्त्वपूर्ण है, पर आपसी संबंधों में प्यार की मिठास की कीमत पर उसे किसी मशीन की तरह इकट्ठा करते चले जाना नासमझी है, सीमा.’

‘अगर तू नहीं बदली तो एक दिन जरूर पछताएगी.’

‘और तू नहीं बदली तो एक दिन बहुत अकेली पड़ जाएगी.’

न मैं अपने को बदल सकी न वह. मैं ने अपनी सोच के हिसाब से जिंदगी जी और उस ने अपनी.

इस में कोई शक नहीं कि मैं हद दर्जे की कंजूस हूं. अपने पति की कमाई की पाईपाई को जोड़ती आई हूं. मैं ने युवावस्था में ही यह तय कर लिया था कि जिंदगी में मैं छोटेबड़े खर्चों के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत कभी नहीं आने दूंगी.

मेरा बड़ा भाई शेखर शादी के साल भर बाद ही घर से अलग हो गया था. ससुराल वालों से उस की अच्छी पटने लगी तो वह हम तीनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूल ही गया था.

उच्च रक्तचाप के मरीज पापा को हार्ट अटैक का खतरा बना तो डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने पर जोर डालने लगे थे. भाई ने बिजनेस ठीक न चलने के नाम पर आर्थिक सहायता करने से हाथ खींच लिया था. तब मेरी शादी के लिए जमा पैसों से पापा के हृदय का औपरेशन कराना पड़ा था.

औपरेशन के बाद पापा 2 साल और जिंदा रहे. वे शायद और जी जाते पर बेटे के हाथों मिले धोखे व जवान बेटी की शादी की चिंता ने उन के दिल की धड़कन को कुछ जल्दी ही बंद कर दिया.

उन दिनों अंजु ने बहुत मजबूत सहारा बन कर मेरा साथ दिया था. यह सच है कि अगर उस ने मेरा मनोबल ऊंचा न रखा होता तो मैं जरूर खुद शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार पड़ जाती.

फिर मां को पैंशन मिलने लगी थी. पापा के इलाज के खर्चे खत्म हो गए तो मैं अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा जनूनी अंदाज में जोड़ने लगी.

बिना दहेज के अच्छा घरवर मुझ जैसी लड़की को नहीं मिल सकता था. रिश्तेदारों ने मेरे लिए जो बिरादरी का लड़का ढूंढ़ा वह प्राइवेट कंपनी में साधारण सी नौकरी करता था.

मेरी शादी के 4 महीने बाद अंजु की शादी मनोज से हुई जो सरकारी नौकरी करता था. हम दोनों के 4 साल के अंदर 2-2 बेटे आगेपीछे हुए. मेरी दोनों डिलीवरी सरकारी अस्पताल में हुईं और उस की नर्सिंग होम में. अंजू और मनोज को मनोरंजन व दिखावे के लिए पैसा खर्च करने से परहेज नहीं था, पर मैं ने राजेश को अपने रंग में रंग कर पैसा बचाने की आदत डलवा दी थी.

बच्चों की देखभाल में वक्त बहुत तेजी से गुजरा. अंजु ने फ्लैट खरीदा जिस की किस्तों ने उन को वर्षों तक आर्थिक तंगी से उबरने नहीं दिया.

मैं ने अपने जोड़े पैसों से मकान को दोमंजिला बना कर ऊपरी मंजिल किराए पर दे दी. इस से हमारी आमदनी बढ़ गई. हर महीने रुपए अंजु के पैसों की तरह किस्त में न जा कर बैंक खाते में जाने लगे.

मेरा बड़ा बेटा समीर बीकौम के बाद एमबीए कर के नौकरी करने लगा. छोटा बेटा सुमित पढ़ाई में ज्यादा होशियार नहीं था सो उसे हम ने किराने की दुकान करा दी.

अंजु के दोनों बेटे भी कुछ खास नहीं पढ़े. बड़े राहुल ने साधारण से कालेज से एमबीए किया और उसे ठीकठाक नौकरी मिल गई. छोटा दवा बनाने वाली कंपनी में एमआर बन गया था.

अपनी कंजूसी की आदत के चलते मेरी अपने दोनों बेटों से अकसर बहस और झड़प हो जाती थी. घर के सारे खर्चे अपनी कमाई में से करना उन्हें नाजायज बोझ सा लगता था.

‘आप हर जगह और हर किसी के सामने रुपयों व खर्चों का रोना रो कर हमें शर्मिंदा करवाने पर क्यों तुली रहती है? अंजु मौसी और मनोज अंकल ने अपनी शादी की 25वीं सालगिरह गोआ जा कर मनाई थी. उन के पास खास पैसा नहीं है पर वे ऐश कर रहे हैं. आप के पास पैसा बहुत है पर आप सिर्फ रुपए गिनने का मजा लेती हैं. अब उस नासमझी को त्याग कर जिंदगी के भी कुछ मजे ले लो, मां,’ वे अकसर मुझे अपनी आदत बदलने के लिए समझाते रहते थे.

‘मैं अभी अपनी जमापूंजी उड़ा लूं और बाद में तुम्हारे सामने हाथ फैलाऊं, ऐसी नासमझी करना मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’ मैं ने कभी उन की बातों पर ध्यान न दे कर कह देती.

‘पता नहीं आप को क्यों एतबार नहीं होता कि हम आप के सुखदुख में काम आएंगे,’ वे नाराज हो उठते.

‘मैं ने दुनिया की रीत देखी है. बूढ़े हो गए मांबाप बेटों को बोझ लगने लगते हैं और उन की खूब दुर्गति होती है. मुझे अपनी वैसी दुर्गति नहीं करानी,’ यों मेरा सच्ची बात उन के मुंह पर कह देना उन दोनों को कभी अच्छा नहीं लगता था.

समीर की शादी अच्छे घर में हो गई पर दहेज में कुछ नहीं आया. उस ने प्रेम विवाह किया था. मैं ने स्वयं भी शादी में हाथ खींच कर पैसा खर्च किया.

बहू नौकरी करती थी. मैं ने घर के कामों के लिए आया रखने के लिए शादी के कुछ दिनों बाद ही शोर मचा दिया पर वे माने नहीं. सारा झगड़ा आया की पगार को ले कर हुआ क्योंकि वे उसे अपनी कमाई से नहीं देना चाहते थे.

इस बात को ले कर घर में झगड़े बढ़े तो समीर ने घर से अलग होने का फैसला कर लिया था. उस के ससुराल वालों ने 2 दिन में अपने घर के पास किराए का मकान भी ढूंढ़ दिया.

मेरे बहूबेटे के अलग होने के 4 महीने बाद ही अंजु ने अपने बड़े बेटे नीरज की शादी की थी. उस की बहू भी नौकरी करती थी. अंजु की तरह वह अच्छे स्वभाव की निकली. मैं उस के घर जाती तो वह मेरी बहुत खातिर करती. अपनी सास के बराबर का मान- सम्मान मुझे देती थी.

अपने छोटे बेटे सुमित की शादी करते ही मैं ने उस की रसोई अलग कर दी थी. मैं नहीं चाहती थी कि घर के खर्चों को ले कर मुझे उस को भी घर से जाने को कहना पड़े.

अंजु ने कुछ महीने बाद अपने छोटे बेटे नवीन की शादी की. मुझे यह सोच कर हैरानी होती है कि वे सब 3 कमरों के फ्लैट में इकट्ठे कैसे रह रहे हैं.

कल अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाते हुए अंजु का पांव एक बच्चे द्वारा फेंके गए केले के छिलके पर पड़ जाने से फिसला और वह धड़ाम से गिरी थी. लकड़ी के मजबूत सोफे से सिर में गहरी चोट आई. कुछ घंटों बाद उसे बेहोशी सी आने लगी तो हम सब कुछ उसे ले कर अस्पताल भागे.

जांच से पता लगा कि गहरी चोट लगने से सिर के अंदर खून बहा है और उस की जान बचाने के लिए फौरन इमरजैंसी औपरेशन करना पड़ेगा.

मैं अतीत की यादों से तब बाहर निकली जब डाक्टर तनेजा ने हमारे पास आ कर बताया, ‘‘अंजु को औपरेशन के बाद होश आ गया है. अब ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

इस खबर को सुन कर हर किसी के दिल मेें खुशी की तेज लहर दौड़ गई थी. अंजु के दोनों बेटों व बहुओं की बात तो छोड़ो, मुझे तो यह देख कर बहुत हैरानी हुई कि मेरे दोनों बेटेबहुएं भी मेरी छाती से लग कर बच्चों की तरह रोए थे.

अंजु की हालत में लगातार सुधार हुआ और वह कुछ दिन बाद ही आईसीयू से वार्ड में आ गई थी.

एक शाम हम घर के सभी लोग मौजूद थे जब अंजु ने अचानक अपने बड़े बेटे नीरज से पूछा, ‘‘मुझे नर्स ने आज दिन में बताया कि अब तक 3-4 लाख का खर्चा मेरे इलाज पर हो चुका होगा. तुम लोगों ने कहां से इंतजाम किया इतने रुपयों का?’’

‘‘इलाज कराने को तेरी बहुओं ने खुशीखुशी अपने जेवर बेच दिए हैं,’’ मेरा यह जवाब सुन कर अंजु हैरान नजर आने लगी थी.

‘‘सच कह रही है तू, सीमा?’’

‘‘बिलकुल सच, पर अब तू बेकार की बातों में मत उलझ और जल्दी से ठीक हो कर अपने घर पहुंच. सारा महल्ला बड़ी बेसब्री से तेरी वापसी का इंतजार कर रहा है.’’

अंजु अचानक उदास सी हो कर बोली, ‘‘सीमा, तू ठीक कहा करती थी कि हर इंसान को इमरजैंसी के लिए धन जोड़ कर जरूर रखना चाहिए. मैं ने तेरी सलाह ध्यान से सुनी होती तो मेरे इलाज के लिए मेरी बहुओं को अपने जेवर तो न बेचने पड़ते.’’

‘‘चल, मेरी बात देर से ही सही पर तेरी समझ में तो आई. पर तू बहुओं के जेवरों के जाने की फिक्र न कर. वे फिर बन जाएंगे.’’

अचानक समीर ने बीच में बोल कर अपनी मां को सच बता दिया, ‘‘मां, जेवर बेचने की बात झूठी है. औपरेशन का सारा खर्चा सीमा मौसी ने उठाया है.’’

‘‘तुझे मेरी कसम सीमा, जो सच है वह मुझे बता दे,’’ अंजु ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में प्रार्थना की.

‘‘सच तो यह है कि तेरी बहुएं अपने जेवर बेचने को तैयार थीं. महल्ले के सारे लोग मिल कर तेरा इलाज कराने को तैयार हो गए थे. तू कल्पना भी नहीं कर सकती कि हम सब को तुझ से कितना प्यार है. मैं ने खर्च इसलिए किया क्योंकि मेरातेरा रिश्ता सब से पुराना है. अब तू खर्चे की फिक्र छोड़ कर अपना सारा ध्यान ठीक होने में लगा दे, मेरी प्यारी सहेली,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से चूम लिया था.

‘‘तेरा यह एहसान मैं जिंदगी में कैसे उतार पाऊंगी?’’ अंजु की आंखों से आंसू बहने लगे.

‘‘वह एहसान तू ने पहले ही उतार दिया है.’’ मैं ने कहा.

‘‘वह कैसे?’’ अंजु चौंक पड़ी.

‘‘मुझे समझदार बना कर,’’ मैं बहुत भावुक हो उठी, ‘‘तू ठीक कहती थी कि पैसे जोड़ कर तिजोरी भरने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है आपसी संबंधों में प्यार की मिठास. अरे, मेरी जो बहुएं मुझे बुखार में पानी का एक गिलास देने को बोझ मानती हैं, मैं ने उन्हें तेरी खैरियत के लिए छोटी बच्चियों की तरह रोते देखा था.

‘‘अगर तेरी जगह मेरी जिंदगी खतरे में पड़ी होती तो शायद ही कोई मेरे लिए दिल से रोता. अब मैं तेरी तरह अपनों के दिल में जगह बनाना चाहती हूं. मेरी इच्छा है कि जब मेरा दुनिया से जाने का वक्त आए तो तेरे अलावा कोई और भी हो जो मेरे लिए सच्चे आंसू बहाए. मुझे तेरे जैसा बनना है, अंजु.’’

‘‘और मैं अब तेरे जैसी समझदार बनूंगी, सीमा. बेकार के खर्चे करना बिलकुल बंद कर दूंगी.’’

‘‘अब इस नई बहस को शुरू करने के बजाय हम दोनों संतुलन बना कर जीना सीखेंगी.’’

‘‘यह भी सही है क्योंकि अति तो हर चीज की खराब होती है. तो तू मुझे बचत करना सिखाना, मेरी कंजूस सहेली.’’

‘‘और तू मुझे अपनों के दिल जीतने की कला सिखाना, मेरी सोने के दिल वाली प्यारी सहेली,’’ हमारी नोकझोंक सुन कर सब हंसने लगे थे.

मैं ने गरदन घुमा कर देखा तो पाया कि मेरी दोनों बहुओं व बेटों की पलकें भी नम हो रही थीं. मैं ने आज पहली बार उन चारों की आंखें में अपने लिए प्रेम व आदरसम्मान के सच्चे भाव देखे, तो हाथ फैला कर उन्हें बारीबारी से अपनी छाती से लगाने से खुद को रोक नहीं पाई थी.

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