नफरत का जो माहौल देश में 20-25 सालों में बनाया जा रहा है .इस का मतलब असल में इतिहास के काले धब्बों को धोना नहीं है, अपनी दुकान चमकाना मात्र है. हिंदू धर्म के दुकानदारों को राजाओं की छत्रछाया भारत के काफी बड़े हिस्से में पिछले 1000 साल तक नहीं मिली. हालांकि समाज पर उन का कंट्रोल पूरा रहा और दलितों (अछूतों), पिछड़ों (शूद्रों) और दूसरों जैसे बनियों, किसानों, कारीगरों पर वे धर्म का नाम ले कर अपना दबदबा बनाए रख सके.

अब हिंदूमुसलिम या हिंदूईसाई को ले कर जो नफरत कभी राममंदिर, कभी गौपूजा, कभी आरक्षण, कभी पाकिस्तान से बदला, कभी कश्मीर को ले कर फैलाई जाती है उस में मतलब एक ही रहता है कि धर्म के ठेकेदार बिना काम किए पैसा भी पाते रहें और पावर में भी रहें. इस में कहना पड़ेगा कि वे पूरी तरह सफल रहे हैं और न सिर्फ पिछड़ों, दलितों, दूसरे धर्म वालों, ऊंचों को भी लूटने और उन की औरतों को पूरी तरह गुलाम सा बनाए रख पाए हैं.

हरिद्वार की हिंदू संसद सभा में कालीचरण, बैंगलुरु के सांसद एलएस तेजस्वी सूर्या और बुल्ली बाई वाले विशाल झा और श्वेता सिंह की बातों से असली चोट अगर किसी को लगती है तो वे पिछड़े और दलित हैं, हिंदूमुसलिम का नाम ले कर, वोट पा कर, धर्म के ठेकेदार मंदिरों को बनवा रहे हैं, तीर्थों को ठीक कर रहे हैं, नएनए तीर्थस्थान बनवा रहे हैं, मुफ्त में खानेपीने के अपनी जाति वालों के लिए होटलों का इंतजाम कर रहे हैं, पढ़ाई पर कब्जा कर रहे हैं, नौकरियों और धंधों को पहले की तरह अपनी मुट्ठी में कर रहे हैं.

नफरत का धुआं जब फैलता है तो चारों ओर फैलता है. नफरत के उपले जलाएंगे तो धुआं जलाने वालों के घरों में भी घुसेगा. नफरत की आंधी में दूसरों के घरों को उड़वाने की साजिश में धर्म के दुकानदार भूल गए कि उन के अपने मकान, उन के अपने ऐशगाह के स्थान बनाने तो ये ही आएंगे जो नफरत के शिकार हैं. यह नफरत का कीड़ा केवल मुसलिमों और ईसाइयों को ही नहीं काटेगा, यह खुद ऊंची जातियों में घुस जाएगा.

आज देशभर के घरों में नफरत करना सिखाना पहला काम हो गया है. लोगों को साथ काम करने से पहले सभी से नफरत करना सिखाया जा रहा है. बच्चों को मिड डे मील खाने में दलित औरत का पकाया खाना न खाने का पाठ पढ़ाया जा रहा है. भेदभाव पहले भी था, पर तब सब अपनेअपने दायरे में रहते थे जो खुद गलत था पर तब नफरत न थी, उसे रास्ते के पत्थर व गड्ढे मान कर कुदरत की देन माना जाता था जिसे पिछले जन्मों के कर्मों का फल बता कर समझाया जाता था.

आज भी भेदभाव नफरत की शक्ल में बदल गया है. आज हर पिछड़े व दलित से नफरत हो गई है. किसानों को ले कर न जाने क्याक्या कहा गया है क्योंकि वे गैरजरूरी कानूनों का विरोध कर रहे थे, पर वे नीची जातियों के, वे ऊंची जातियों की नफरत पर सवाल उठाएं, ऐसा कैसे हो सकता है. हर दूसरे धर्म वाले से नफरत सिखाई जा रही है पर इस का मतलब यह भी है कि अपने खुद के सगों के साथ भी नफरती रवैया अपनाने की आदत पड़ना. अब मंदिरों में चढ़ावे के लिए मारपीट आम हो गई है. अब मंदिरों की सी पढ़ाई पढ़ाने वाले स्कूलों में जबरदस्त गुटबाजी शुरू हो गई है. स्वामियों में आपसी ईर्ष्या पैदा हो गई है.

नफरत का मतलब है कि आप पड़ोसी को दुश्मन मानें, दोस्त नहीं. साथ देने वाले को हमलावर मानें, बचाने वाला नहीं. शहरों, गांवों में जो आज अकेलापन दिखता है, वह इसी नफरत का नतीजा है जो हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने फैलाई है पर पिसेंगे सब इस में.

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