Writer- नीरज कुमार मिश्रा

इस गांव में प्रबल सिंह और सरस की दोस्ती की कसमें खाई जाती थीं. हालांकि प्रबल सिंह जाति से ठाकुर था और सरस उसी गांव के एक कुम्हार का बेटा. भले ही समाज की नजर में उन की जातियों में फर्क था पर वह फर्क उन दोनों की दोस्ती में बाधा नहीं बन पाया था.

प्रबल सिंह 25 साल का एक सजीला नौजवान था और सरस भी 26 साल के आसपास का ही था. उन दोनों को ही कुश्ती खेलने का बहुत शौक था. प्रबल सिंह के लिए तो गांव का अखाड़ा हमेशा खुला रहता था, पर सरस वहां जाने में थोड़ा हिचकता था, पर यह प्रबल सिंह की दरियादिली थी जो उस ने इस अखाड़े में सरस को प्रवेश दिलवाया था.

प्रबल सिंह और सरस दोनों साथ में कसरत करते और आपस में कुश्ती लड़ते. उस के बाद प्रबल सिंह के घर पर दोनों दोस्त बादाम घोंटते.

गांव के लोग दबी जबान से यह भी कहते थे कि प्रबल सिंह को आने वाले प्रधानी के चुनाव में जीतने के लिए गांव के दलितों को रिझाना है और तभी वह सरस से दोस्ती बढ़ रहा है, ताकि गांव के दलित लोगों के वोट उस को ही मिलें…

आज पड़ोस के गांव में एक विराट दंगल का आयोजन किया गया था. प्रबल सिंह और सरस भी वहां भाग लेने गए थे और साथ में अपने कुछ साथी भी ले गए थे.

वहां पर बड़ा ही जबरदस्त माहौल था. पहले प्रबल सिंह की कुश्ती एक भीमकाय पहलवान से हुई. अखाड़े में घुसते ही प्रबल सिंह ने उस पर ऐसे दांव लगाए कि उस पहलवान को संभलने का मौका ही नहीं मिला और 2 मिनट में ही कुश्ती खत्म हो गई.

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दर्शकों में यह भी कानाफूसी तेज हो गई कि अपनी जीत दर्ज करने के लिए प्रबल सिंह ने दूसरे पहलवान को पैसे खिला दिए होंगे, क्योंकि प्रबल सिंह को किसी भी हालत में हारना नहीं पसंद था.

अब बारी सरस की थी. वह बहुत अच्छी तरह से कुश्ती लड़ रहा था और एक बार तो लगा कि सरस दांव मार ले जाएगा, पर वह हार गया था.

“अरे, जब उस पहलवान की गरदन तुम्हारे हाथ में थी तो एक झटके में ही उसे तोड़ देते… बाकी बाद में जो भी पुलिसथाना होता मैं समझ लेता,” प्रबल सिंह ने मूंछों पर ताव देते हुए कहा, जिस के जवाब में सरस सिर्फ फीकी सी मुसकराहट के साथ चुपचाप ही बैठा रहा.

खामोश रहना ही सरस की बड़ी खासीयत थी. वह जराजरा सी बात पर कभी शोर नहीं मचाता था. मसला चाहे जैसा हो उसे वह हमेशा शांति से हल करने की कोशिश करता था और उस की इसी खासीयत पर प्रबल सिंह की बहन नैना फिदा थी.

सरस का प्रबल सिंह के घर आनाजाना तो था ही… और वैसे भी 2 जवान दिलों को जातपांत से कोई मतलब नहीं होता. सरस और  नैना की नजरें जब भी एकदूसरे से मिलतीं, तो बेचारा सरस ही झेंप कर शर्म से अपनी आंखें झुका लेता, पर प्यार का दीया तो दोनों के मन में रोशन हो ही चुका था.

अभी तक इन दोनों के प्यार की खबर प्रबल सिंह को नहीं थी और यह बात खुलने का डर सरस और नैना को भी रहता था. वे सब के सामने इस बात का ध्यान भी रखते थे और अपने इश्क को दुनिया की नजरों से छिपा कर ही रखते थे.

प्रबल सिंह को अपने बदन पर तेल लगाने और अपनी इंद्रियों को संतुष्ट करने के अलावा दूसरी और बातों से मतलब ही कहां रहता था. वह लंगोट बांधता तो जरूर था, पर लंगोट का पक्का बिलकुल भी नहीं था. अखाड़े से निकल कर वह इसी गांव में रहने वाली एक लड़की सफेदिया के खयालों में खो जाता था.

सफेदिया गांव के धोबी की लड़की थी. बताते हैं कि सफेदिया का बाप इतने साफ कपड़े धोता था कि गांव के लोगों ने उस की लड़की के पैदा होने पर उस का नाम ही सफेदी  रख दिया था जो धीरेधीरे सफेदिया में बदल गया.

प्रबल सिंह सफेदिया के रूप और जवानी पर बुरी तरह रीझा हुआ था और उसे हर हाल में हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह कई बार कोशिश कर चुका था, पर तेजतर्रार सफेदिया हर बार उस के हाथ से बच कर निकल जाती.

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सरस ने कई बार प्रबल सिंह को समझाया भी था कि यह सब ठीक नहीं है, पर प्रबल सिंह उस से यही कहता, ‘मैं कोई नया काम थोड़े ही कर रहा हूं. यह सब तो मेरे बापदादा करते आए हैं और फिर अगर मैं किसी के रूप और जवानी को सम्मान दे रहा हूं तो इस में बुराई ही क्या है…’

एक दिन की बात है कि सफेदिया कपड़े का गठ्ठर ले कर घाट पर अपने पिता को देने जा रही थी. प्रबल सिंह ने उसे जाते देख लिया था. वह उस का पीछा करने लगा और गांव में जब सफेदिया एक बाग से गुजरी तो प्रबल सिंह ने उसे दबोच लिया और उसे जमीन पर गिरा लिया. उस ने सफेदिया की चोली फाड़ दी.

बेचारी सफेदिया अपने बचाव में हाथों की कैंची बना कर अपने उभारों को ढकने लगी और ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाने लगी.

उस समय सरस पास से ही गुजर रहा था. उसे सफेदिया की पुकार सुनाई दी तो उस से रहा नहीं गया और वह फौरन ही उस की इज्जत बचाने पहुंच गया.

सरस ने सब से पहले तो प्रबल सिंह को ताकत लगा कर सफेदिया के ऊपर से हटाया और सफेदिया को वहां से भाग जाने को कहा.

सरस की इस हरकत से प्रबल सिंह आगबबूला हो गया था, “ये क्या… तुम ने मेरे मुंह से शिकार छीन लिया…”

चीख रहा था प्रबल सिंह. उस का मुंह लाल था और उस के शरीर की सारी नसें तनी जा रही थीं.सरस तुरंत ही हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और प्रबल सिंह से माफी मांगने लगा, “मेरे दोस्त, मुझ से गुस्ताखी हो गई हो तो मुझे माफ कर दो, पर तुम इस गांव के होने वाले प्रधान हो, इन गरीबों पर जुल्म करना तुम्हें शोभा नहीं देता…” समझाते हुए सरस ने कहा, “और फिर सफेदिया की तो जल्दी ही शादी भी होने वाली है.”

“हां तो, सारे गांव की लड़कियों की इज्जत का ठेका तू ने ही तो ले रखा है क्या…” प्रबल सिंह का गुस्सा शांत ही नहीं हो रहा था.

“पूरे गांव की लड़कियों की इज्जत बचाने का न सही, पर अपने दोस्त की साख पर कोई बट्टा न लगने पाए, इस बात का तो ठेका मेरे ही पास है,” प्रबल सिंह के कदमों की तरफ थोड़ा सा झुकते हुए सरस ने कहा.

प्रबल सिंह को गुस्सा तो अब भी आ रहा था, पर अब भला क्या हो सकता था, इसलिए वह सरस की तरफ बिना देखे अपने घर लौट आया. उस के जाने के बाद सरस को कुछ संतोष हुआ कि आज उस ने एक लड़की की इज्जत बचा ली.

प्रबल सिंह सरस की इस हरकत से इतना नाराज हुआ था कि उस ने सरस से थोड़ी दूरी बनानी शुरू कर दी. हालांकि सरस के मन में प्रबल सिंह के लिए उतना ही स्नेह और इज्जत थी और उस से मिलने के बहाने वह नैना को भी देख लेता था, इसलिए सरस ने अपनी तरफ से दोस्ती में कोई कमी नहीं आने दी.

प्रबल सिंह का एक मुंहलगा चेला था पूरन. उस ने कुछ दिनों पहले ही प्रबल सिंह से कुछ पैसे उधार मांग कर एक मोबाइल फोन खरीदा था, जिस में एक बहुत अच्छा कैमरा भी था.

फिर क्या था, पूरन पूरे गांव में घूमताफिरता और जगहजगह के फोटो अपने मोबाइल फोन में कैद कर लेता और बाद में उन फोटो को किसी कुशल मुखबिर की तरह प्रबल सिंह के सामने पेश करता और बताता कि गांव में आखिर चल क्या रहा है.

एक दिन पूरन गांव में घूम कर फोटो खींच रहा था कि उसे सरस और नैना एकसाथ बैठे हुए दिखे. उन दोनों का एकसाथ यहां पर होना उसे कुछ अटपटा सा लगा, इसलिए उस ने चुपके से उन दोनों की तसवीर मोबाइल फोन में कैद कर ली और डरतेडरते प्रबल सिंह के सामने पेश कर दी.

प्रबल सिंह तिलमिला कर रह गया था. उस की नाक के नीचे यह खेल हो रहा था और उसे भनक तक नहीं लगी. उस के मन में आया कि वह सरस को गोली मार कर तुरंत खत्म कर दे या फिर अखाड़े में आज ही उस की गरदन मरोड़ दे, पर इस तरह उसे मारने में नैना के गलत कदम उठा लेने या फिर बागी होने का खतरा था और फिर प्रधानी का चुनाव भीआने वाला था, इसलिए वह किसी भी पचड़े में पड़ना नहीं चाहता था, पर वह मन ही मन कोई ऐसा रास्ता खोज रहा था, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

एक दिन जब सरस और प्रबल सिंह साथ बैठे हुए थे, तो उन दोनों ने शराब पी और जब सरस को भी नशा चढ़ गया तब प्रबल सिंह ने सरस को नैना और उस की एकसाथ वाली तसवीर दिखाते हुए कहा, “देखो, मैं जानता हूं कि तुम मेरी बहन से प्यार करते हो और तुम दोनों एकदूसरे से शादी भी करना चाहते हो, पर मेरी मरजी के बिना यह मुमकिन नहीं हो सकता, इसलिए तुम्हें मुझे खुश करना होगा.”

प्रबल सिंह जो भी बोल रहा था उसे सरस बड़े ध्यान से सुन रहा था और हैरान भी था कि भला उन के प्यार का पता प्रबल सिंह को कैसे चला गया.

“तुम्हें नैना के साथ जिंदगी गुजारने की कीमत चुकानी होगी और वह कीमत यह होगी कि आज रात जब सब गहरी नींद में सो रहे होंगे, तब तुम सफेदिया को उठा कर मेरे पास लाओगे और अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो मैं तुम से तो कुछ नहीं कहूंगा, पर नैना को जान से खत्म कर दूंगा,” प्रबल सिंह ने कहा तो सरस ने उस का विरोध करते हुए पूछा, “सफेदिया के साथ क्या गलत करोगे तुम?”

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“यह मेरा वादा है कि सफेदिया को हाथ तक न लगाऊंगा, बल्कि बस थोड़ा सा उस का नाचवाच देख कर उसे वापस भेज दूंगा… और तो और  तुम्हारी मदद के लिए मैं पूरन को तुम्हारे साथ भेज भी दूंगा,” प्रबल सिंह ने जबान देते हुए कहा तो सरस के मन को संतोष हुआ.

सरस के सामने वैसे भी प्रबल सिंह की बात मानने के अलावा कोई चारा न था, क्योंकि नैना की जान को उस के अपने ही भाई से खतरा था. सरस ने मन में सोच लिया कि अपने प्यार को बचाने के लिए उसे सफेदिया को उठा कर लाना ही होगा.

देर रात जब पूरा गांव नींद के आगोश में था तब शराब पीया हुआ सरस दबे पैर सफेदिया के घर में जा कूदा और सफेदिया के कमरे में घुस गया ,जबकि पूरन उस का बाहर ही इंतजार करने लगा.

सफेदिया बेसुध हो कर सो रही थी.नशे में चूर सरस ने जैसे ही सफेदिया के मुंह पर हाथ लगाया तो उस ने चीखने की कोशिश की, पर उस की चीख घुट सी गई थी.

सरस ने सफेदिया को कंधे पर उठा लिया और बाहर की ओर ले जाने लगा. इधर पूरन ने घर के अंदर जानबूझ कर एक कोने में रखे हुए बरतन गिरा दिए, जिस से घर के बाकी लोग जाग गए और उन्होंने सरस और सफेदिया को इस हालत में देखा तो शोर मचाने लगे. आसपड़ोस और बाकी लोगों की मदद से सरस को पकड़ लिया गया और एक रस्सी से बांध दिया.

चूंकि मामला प्रबल सिंह के दोस्त का था, इसलिए कुछ लोग रस्सी में जकड़े हुए सरस को पहले प्रबल सिंह के पास ले गए.

प्रबल सिंह ने इंसाफ और अबला की इज्जतआबरू की दुहाई दी और कहा कि गांव की हर बेटी और बहन की इज्जत की रखवाली करना हम सब का फर्ज है और इस फरेब के अपराध की सजा देने के लिए गांव की पंचायत है, इसलिए कल सुबह 10 बजे गांव की पंचयात ही सरस की जिंदगी का फैसला करेगी.

पूरे गांव में सरस की इस नीच हरकत पर सब थूथू कर रहे थे. कुछ लोग हैरान थे कि सरस जैसा लड़का ऐसी हरकत नहीं कर सकता… न जाने वह ऐसा क्यों कर बैठा?

अगले दिन ठीक 10 बजे पंचायत बैठी. प्रबल सिंह भी नैना और अपने चेलों के साथ वहां खड़ा हुआ था और मन ही मन मुसकरा रहा था.

सब से पहले सफेदिया ने अपनी बात कही, “जब मैं रात को अपने घर में सो रही थी तब सरस ने मेरे साथ गलत काम किया और मेरा अपहरण करने की कोशिश की. अगर मेरे घर वाले मुझे नहीं बचाते तो यह मुझे पता नहीं कहां उठा कर ले जाने वाला था.”

सफेदिया की इस बात पर सरस की आंखें हैरत से फैल गई थीं. सफेदिया इतना बड़ा झूठ आखिर क्यों बोल रही है…

इस के बाद सरस को बोलने का मौका मिला तो उसने कह, “सफेदिया झूठ बोल रही है. मैं ने तो इसे छुआ भी नहीं है.”

सरस की यह बात सुन कर पंचायत के एक सदस्य ने कहा, “अगर तुम ने इसे छुआ भी नहीं तो इतनी रात गए सफेदिया से राखी बंधवाने गए थे क्या?”

सरस के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. वह तो बस प्रबल सिंह की तरफ देख कर रह गया था.

सरपंच ने अपना फैसला सुनाया, “गांव की बहनबेटियों के साथ इस तरह की हरकत पर माफी नहीं दी जा सकती और सरस ने गांव की लड़की को गंदा किया है, इसलिए हमारे गांव के नियम के मुताबिक अब सरस को सफेदिया के साथ ब्याह रचाना पड़ेगा. आप में से किसी को एतराज हो तो वह अपनी बात कह सकता है.”

सरपंच का फैसला सुन कर वहां सन्नाटा छा गया था, बस नैना की सिसकी की आवाज सभी सुन सकते थे, जो अपने भाई प्रबल सिंह के सीने से लग गई थी.

फैसला तो पंचायत का था, पर उस के फैसले पर प्रबल सिंह की छाप साफतौर पर देखी जा सकती थी. सरस और सफेदिया की शादी तय कर दी गई थी.

प्रबल सिंह नैना को ले कर मुसकराता हुआ अपने घर की तरफ चल दिया था. उस ने सांप भी मार दिया था और लाठी भी नहीं टूटी थी.

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