Writer- हमीदुल्ला खां 

वह किशोर भी आम किशोरों जैसा ही था. सारे काम वह भी वैसे ही करता था जैसे उस की उम्र के होशियार किशोर करते हैं, लेकिन वह हर काम थोड़ा जरूरत से ज्यादा कर दिया करता था. यदि अन्य किशोर नहाने में 7 से 10 मिनट लगाते तो वह 14 से 20 मिनट लगाता. शाम को स्कूल से आने के बाद 2 घंटे पढ़ने के लिए कहा जाए तो वह 4 घंटे से पहले उठने का नाम नहीं लेता. फुटबौल 1 घंटा खेलने के बजाय वह 2 घंटे तक खेलने का कायल था. मतलब यह कि हर काम जरूरत से ज्यादा किया करता था.

जब वह लिखने बैठता तो पूरी कौपी थोड़ी ही देर में भर डालता. अब खाली कौपियां इतनी ज्यादा तो होती नहीं थीं कि बस, कौपी पर कौपी मिलती जाए और वह उसे भरता चला जाए. आखिर हर चीज की कोई हद होती है, तो फिर वह करता क्या? घर की दीवारों, फर्श, स्कूल की दीवारों, कमरे के परदों, गरज यह कि जो कुछ भी उसे सामने दिखता उसी पर लिखना शुरू कर देता. कभीकभी अगर कोई चीज उसे लिखने के लिए नजर नहीं आती तो वह अपने हाथपैरों पर ही कुछ न कुछ लिखना शुरू कर देता. सब को उस की जो बात सब से बुरी लगती, वह थी कोयले से लिखलिख कर दीवारों को खराब करना. आखिर दीवारों की सफेदी इस तरह खराब होते देख कौन बरदाश्त करेगा, लेकिन वह किशोर क्योंकि पढ़नेलिखने और खेलने में भी होशियार था, इसलिए ये अच्छाइयां दीवारों पर लिखने की उस की बुरी आदत को दबा देती थीं. आप ने यह तो सुना ही होगा कि दूध देने वाले पशु की लात भी सहनी पड़ती है. यही बात उस किशोर के साथ भी थी.

एक दिन वह किशोर वक्त से पहले ही स्कूल पहुंच गया. उस ने सोचा कि कुछ करना चाहिए. वहीं नीचे जमीन पर कोयले के छोटेछोटे टुकड़े पड़े थे. बस, उस ने फौरन नीचे से कोयले का एक छोटा टुकड़ा उठाया और स्कूल की बड़ी दीवार पर एक आदमी का चित्र बनाना शुरू कर दिया. चित्र जैसे ही पूरा हुआ, वह आदमी सचमुच का आदमी बन गया. यह देख वह किशोर डर गया. वह उसे देख कर भागने लगा, लेकिन उस आदमी ने उसे दौड़ कर पकड़ लिया. पकड़ने के साथ ही किशोर के होश उड़ गए, वह बेहोश हो गया. जब उसे होश आया तो उस ने देखा कि वह एक बड़े से सजेधजे कमरे में सुर्ख रंग के मखमली कालीन पर लेटा हुआ है. उस के आसपास उस के जैसे ही कई छोटेछोटे किशोर लेटे हुए हैं. उस ने उठने की कोशिश की मगर उस से उठा नहीं गया. वह बोलना चाहता था, ताकि अपने आसपास लेटे बच्चों से बात कर सके और पूछे कि वे कौन हैं और यहां कैसे आए? उसे ऐसा महसूस हुआ कि वह बोल नहीं सकता है. उस की जबान तालू से इस तरह चिपक गई है कि वह कुछ बोल ही नहीं पा रहा. उस ने इधरउधर नजर दौड़ा कर उस आदमी को देखना चाहा, जिस ने उसे पकड़ लिया था, लेकिन वह उसे कहीं नजर नहीं आया. वह बड़ा परेशान हुआ कि आखिर वह है कहां? वह काफी देर तक इसी तरह लेटा रहा और फिर रोने लगा, लेकिन उसे लगा कि रोते वक्त जो आवाज निकलनी चाहिए थी वह नहीं निकल रही है. उस ने हाथ उठा कर अपने आंसू पोंछने चाहे लेकिन उस का हाथ भी नहीं उठा. वह कराहने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे किस जुर्म में यह सजा दी जा रही है और उस का सारा बदन इस तरह क्यों जकड़ गया है, जबान से आवाज क्यों नहीं निकलती, ये सब क्या हो रहा है?

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वह अभी यह सोच ही रहा था कि एक अजीब सी गड़गड़ाहट की आवाज उस के कानों में पड़ी. इस आवाज के साथ ही कमरे में मौजूद सारे किशोर खुदबखुद उठ कर खड़े हुए, लेकिन अब भी उन की जबान बंद थी. उस ने देखा कि ठीक सामने कमरे की सफेद दीवार है, जो बिलकुल साफ है. उसे वह आदमी कमरे में आता दिखाई दिया जो उसे वहां ले आया था. उस के एक हाथ में कोयले का एक छोटा सा टुकड़ा था. उस ने कमरे की सफेद दीवार को कोयले से खराब करना शुरू कर दिया. किशोर को यह देख कर बड़ा ताज्जुब हुआ कि वह आदमी भी हूबहू वैसे ही चित्र दीवार पर बना रहा था जैसे वह खुद बनाया करता था. उसे दीवार खराब करने वाला वह आदमी अच्छा नहीं लगा. वह सोचने लगा, ‘इतनी सफेद दीवार को वह क्यों खराब कर रहा है?’ उसे उस आदमी पर बड़ा क्रोध आया. उस की इच्छा हुई कि दौड़ कर जाए और उस के हाथ से कोयले का टुकड़ा छीन ले, लेकिन फिर उसे खयाल आया कि वह खुद भी तो इसी तरह दीवारें, परदे, अलमारियों के शीशे वगैरा खराब करता रहा है. उसे आत्मग्लानि का अनुभव हुआ.

इधर वह आदमी दीवार खराब करता चला जा रहा था. कमरे में खड़े सभी किशोर उसे इस तरह दीवार खराब करते हुए देख रहे थे. एकाएक उस किशोर को न जाने क्या हुआ, न जाने उस में इतनी ताकत कहां से आ गई कि उस ने तेजी से आगे बढ़ कर उस आदमी के हाथ से कोयला छीन लिया और कहा, ‘‘इतनी अच्छी दीवार को आप इस तरह क्यों खराब कर रहे हैं?’’

‘‘लेकिन तुम भी तो अभी तक यही करते रहे हो. जो काम तुम खुद करते रहे हो, उसे करने से दूसरे को क्यों मना करते हो?’’ उस आदमी ने कहा और फिर दीवार खराब करने लग गया. किशोर को उस आदमी की इस बात पर बड़ा गुस्सा आया. उस ने कहा, ‘‘मैं अब कभी दीवारें और दूसरी चीजें खराब नहीं करूंगा. आप भी इसी वक्त इसे बंद कर दें.’’ इतना कहने के साथ ही वह दीवार की तरफ आगे बढ़ा और उस पर कोयले से बनाए चित्रों को अपने हाथ से मिटाने लगा, क्योंकि इस से सफेद दीवार की शोभा जाती रही थी. दीवार पर बने चित्र को हाथ लगाते ही कमरे की दीवार अचानक कुछ अजीब तरह से हिलने लगी, मानो कोई जलजला आ गया हो. वह किशोर बड़े गौर से वहां खड़ा यह सब देखता रहा. उस ने अपने आसपास खड़े बच्चों की तरफ नजर दौड़ाई. उसे सब परिचित चेहरे वहां खड़े हुए नजर आए. वे सभी उस के स्कूल के साथी थे.

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उसे यह देख कर और भी ताज्जुब हुआ कि वह खड़ी दीवार किसी अनजान कमरे की दीवार नहीं, बल्कि उस के अपने स्कूल की ही दीवार है. वह अपनी इस करतूत पर मन ही मन शरमा गया और स्कूल की दीवार पर कोयले से बनाया हुआ चित्र मिटाने लगा. उसे लगा, जैसे दीवार कह रही हो, ‘‘मुझे आप इस तरह न बिगाड़ो.’’ कुछ देर बाद स्कूल की घंटी बजी और वह अपने दूसरे साथियों के साथ अपनी कक्षा में चला गया. यह तो बताने की जरूरत ही नहीं कि उस दिन के बाद उस ने कभी दीवार या फर्श खराब नहीं किया.

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