आगरा के पक्की सराय एरिया की कालोनी में 2 बैडरूम के छोटेछोटे घर. जिन लोगों के परिवार छोटे होते हैं, उन के लिए तो ऐसे घर सही हैं, लेकिन जिन के परिवार में 8-8 लोग हों, वे भला कैसे गुजारा करें… सब बड़ा घर भी तो नहीं ले सकते. इतनी महंगाई में घर का रोजमर्रा का खर्च चलाएं या बड़ा घर खरीदें?

यही हालत अविनाश की भी है. उस का एक भरापूरा परिवार है, जिस में दादादादी, मांपापा, भैयाभाभी, एक छोटी बहन और वह खुद यानी घर में रहने वाले पूरे 8 जने और बैडरूम हैं 2.

एक रूम पर भैयाभाभी का और दूसरे रूम पर मांपापा का कब्जा था. कौमन हाल में दादादादी और छोटी बहन सोते थे. अब रह गया अविनाश, पर उस के लिए तो जगह ही नहीं बचती थी. मांपापा कहते थे कि वह उन के रूम में आ जाए, पर भला जवान बेटा अपने मांपापा के कमरे कैसे आ सकता था?

खैर, एक दिन अविनाश वहां सोया तो रात को कुछ खुसुरफुसुर की आवाजें सुनाई दीं. उसे लगा कि मांपापा धीरेधीरे कुछ बात कर रहे हैं.

खैर, बात तो कोई भी हो सकती है, प्यार की या परिवार की, लेकिन उस के बाद अविनाश को अपने मांपापा के कमरे में सोना सही नहीं लगा और अगले ही दिन उस ने जीवन मंडी रोड पर बनी अपनी फैक्टरी के मालिक से बात कर ली कि वह भी रात को फैक्टरी में रुक जाया करेगा, ताकि उस का घर से आनेजाने का समय बच जाए और उस बचे हुए समय में वह और ज्यादा मेहनत कर के ज्यादा काम कर सके. मालिक ने हां कर दी.

लेकिन बात कुछ और भी थी. अविनाश फैक्टरी में मेनेजर की पोस्ट पर काम करने वाली अवनी से प्यार करता था, इसीलिए उसे अवनी के बराबर खुद को खड़ा करना था, तभी तो वह अवनी का रिश्ता मांगने की हिम्मत करता.

दरअसल, यह तब की बात है जब अवनी और अविनाश राधा वल्लभ कालेज में एक ही क्लास में पढ़ते थे. चलिए, अब आप को थोड़ा फ्लैशबैक में ले कर चलते हैं.

अवनी एक ठीकठाक अमीर परिवार से थी. थोड़ा हलका सा सांवला रंग, मोटेमोटे नैन, तीखी नाक, लंबी सुराहीदार गरदन, लंबेघने काले बाल, कद 5 फुट, 4 इंच, होंठ पतले जैसे गुलाब की पंखुड़ियां हों, बड़े उभार मर्दों को न्योता देते हुए, कमर ऐसे लचकती कि कहने ही क्या. कुलमिला कर अवनी किसी का भी दिल धड़काने के लिए काफी थी.

जैसे ही अवनी की कार कालेज के अंदर आती तो जवां दिलों की धड़कनें थम जातीं. कोई उस की कार का दरवाजा खोलने दौड़ता, तो कोई जहां होता वहीं बुत बना केवल उसे देखता रहता.

अवनी पर हजारों जवां दिल फिदा थे, मगर वह किसी की तरफ भी ध्यान नहीं देती थी. कार पार्क कर के सीधा अपनी क्लास में और क्लास के बाद कार में बैठ घर की तरफ चल देती थी.

अब जानिए हमारे हीरो अविनाश के बारे में. साफ रंग, कद 5 फुट, 8 इंच, घुंघराले बाल, माथे पर हमेशा एक बालों की लट झूलती रहती, चौड़ा सीना, मजबूत बांहें, चाल राजकुमारों सी, एकदम हीरो. मगर वह एक पुरानी सी स्कूटी पर कालेज आताजाता था. साधारण परिवार का जो था.

कालेज इश्क एक ऐसा अखाड़ा होता है जहां किसी न किसी का किसी न किसी से पेंच लड़ ही जाता है, मगर ये 2 महान हस्तियां ही ऐसी थीं, जिन्हें अभी तक किसी से प्यार नहीं हुआ था.

अवनी प्यारमुहब्बत के झमेले में पड़ना नहीं चाहती थी और अविनाश घर के हालात से मजबूर था. जब तक वह पढ़लिख कर कुछ बन न जाए, तब तक किसी लड़की के बारे में उसे सोचना भी नहीं.

लेकिन इश्क कहां छोड़ता है जनाब, यह तो वह आग है जो बिन तेल, बिन दीयाबाती जलती है. आखिर इन दोनों को भी इस आग ने पकड़ लिया.

दरअसल, जहां से अविनाश के घर का रास्ता था, वहीं कहीं रास्ते में ही अवनी का घर भी था और वे दोनों कालेज से अमूमन एक ही समय पर निकलते थे.

एक दिन अचानक रास्ते में अवनी की कार खराब हो गई. उस पर बारिश का मौसम भी बना हुआ था. लाख रोकने पर कोई बस या आटोरिकशा नहीं रुका. इतने में अविनाश, जो अपनी स्कूटी से आ रहा था, उसे देख रुक गया और पूछा, “अवनी, क्या हुआ? आप यहां बीच रास्ते में… गाड़ी में कुछ प्रौब्लम आ गई क्या?”

“हां, मेरी कार अचानक बंद हो गई है और कोई बस या आटोरिकशा भी नहीं  रुक रहा.”

“परेशान न हों. मैं आप को घर छोड़ देता हूं, क्योंकि मौसम भी खराब है. लगता है कि थोड़ी देर में बारिश भी होने वाली है और यहां आसपास कोई कार मेकैनिक भी नहीं है. अगर आप को एतराज न हो तो आप मेरी स्कूटी पर बैठ जाएं.”

अवनी को कोई और रास्ता भी नजर नहीं आ रहा था, इसलिए वह अविनाश के पीछे स्कूटी पर बैठ गई. मगर जैसे ही उस ने अविनाश को पकड़ा, मानो दोनों ने किसी बिजली के तार को छू लिया हो. सनसनी सी बन कर एक लहर दौड़ गई बदन में, उस पर बारिश भी शुरू हो गई थी.

एक तो बारिश से भीगने पर बदन में कंपकंपाहट, उस पर आग और घी का मिलन, ज्वाला तो भड़कनी ही थी. तब से दोनों के दिलों में इश्क ने बसेरा कर लिया था, मगर मूक इश्क ने. न अवनी जबां से कुछ कह सकी, न अविनाश इश्क कुबूल कर सका.

इत्तिफाक देखिए, पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों की नौकरी एक ही जूता फैक्टरी में लग गई. हुआ यों कि अवनी के पापा की जीवन मंडी रोड एक जूता फैक्टरी के मालिक लवेश से अच्छी जानपहचान थी और इस वजह से उन की बेटी अवनी को मैनेजर का पद मिल गया था.

इधर अविनाश को बहुत मेहनत के बाद किसी जानकार की सिफारिश से जीवन मंडी रोड की उसी फैक्टरी में काम मिल गया. उस ने आते ही अवनी को देखा तो हैरान रह गया. एकदूसरे को सामने देख कर दोनों का प्यार दोबारा हिलोरें लेने लगा.

एक दिन अविनाश जब फैक्टरी से छुट्टी के बाद घर जा रहा था, तो रास्ते में देखा कि अवनी कार रोके खड़ी थी.

“मैडम, क्या हुआ? कार खराब हो गई क्या? क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकता हूं?”

इतना सुनते ही अवनी कार से निकली और अविनाश के गले लग कर खूब रोई.

“अरे अवनी, क्या हुआ? सब ठीक तो है न? जल्दी बताओ, मुझे चिंता हो रही है,” अविनाश ने पूछा.

“अविनाश, तुम्हें अगर मेरी जरा भी परवाह होती तो इतने पत्थरदिल न बनते, मेरे प्यार से अनजान न रहते. क्या तुम्हारा मेरा रिश्ता इस एक नौकरी की वजह से इतना बदल गया कि तुम मुझे औफिस के बाहर भी मैडम ही कहो. क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं…”

“नहीं अवनी तुम नहीं, बल्कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं, इसी वजह से मैं तुम से दूर रहता हूं. मैं जानता हूं कि हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं, मगर हमारा मिलन मुमकिन नहीं है. तुम एशोआराम में पली हो और मैं एक मामूली सा इनसान. तुम्हारे परिवार वाले इस रिश्ते के लिए नहीं मानेंगे.”

“लेकिन मैं तो तुम्हें अपना मान चुकी हूं,” यह कहते हुए अवनी ने अविनाश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. उस छुअन की आग से दोनों के तन जल उठे, मगर जल्दी ही वे संभल गए, क्योंकि दोनों को यह भी डर था कहीं कोई देख न ले. पर अगले दिन वे दोनों फैक्टरी से जल्दी छुट्टी ले कर ताजमहल देखने गए.

“हम इस प्यार की अनमिट निशानी के सामने एकदूसरे को अपनाते हैं और कसम खाते हैं कि जीएंगे तो साथसाथ, मरेंगे तो साथसाथ,” अविनाश ने ताजमहल को देखते हुए अवनी से कहा.

दोनों के जवां दिल धड़क रहे थे, मिलन को तड़प रहे थे. अब दूर रहना मुहाल हो रहा था. वे दोनों वहां से बाहर आए और किसी सुनसान जगह की ओर चल दिए. ज्वालामुखी जो अंदर दहक रहा था, वह न जाने उन्हें किस ओर ले जा रहा था, उन्हें खुद इस बात का अंदाजा नहीं था.

एक जगह पर अवनी ने जैसे ही गाड़ी रोकी, अविनाश पिघल पड़ा उस पर मोम के जैसे और लपेट लिया उसे अपने अंदर. अवनी भी अविनाश की बांहों की गिरफ्त में आने को छटपटा रही थी.

बस, एक जलजला काफी था दोनों को इश्क के दरिया में डुबाने के लिए और वे डूब भी गए. एक कुंआरी ने अपना कुंआरापन न्योछावर कर दिया अपने प्यार पर. मन से तो पहले ही उस के सामने बिछी हुई थी, आज तन से भी बिछ गई.

जब सब बह गया तब होश आया. दोनों सोचने लगे कि अब आगे न जाने क्या होगा, क्योंकि यह तो अवनी भी जानती थी कि उस के पिता इस रिश्ते के लिए नहीं मानेंगे.

अविनाश‌ ने अवनी को भरोसा दिलाया कि जब तक वह कुछ बन नहीं जाता है, तब तक वे नहीं मिलेंगे.

अवनी ने अगले ही दिन नौकरी छोड़ दी. अविनाश फैक्टरी में नए से नए डिजाइन के जूते बनाता था और वे काफी पसंद भी किए जाते थे. अब उस ने और ज्यादा लगन और मेहनत से काम करना शुरू कर दिया था.

एक दिन अविनाश रात को फैक्टरी में ही कोई नया डिजाइन सोच रहा था कि उसे हाजत ‌हुई, मगर जैसे ही वह बाहर निकला, तो देखा कि फैक्टरी में चारों ओर धुआं ही धुआं था. उस ने जल्दी से दूसरे कमरे में सोए हुए मजदूर और चौकीदार को आवाज लगाई, पर दरवाजा अंदर से बंद होने की वजह से इतनी जल्दी आग के फैल गई कि उन का बाहर निकलना मुश्किल हो गया.

शोर मचाने पर आसपास के लोग आए और दमकल की गाड़ियां भी बुलाई गईं, मगर अंदर जाना मुश्किल था, इसलिए फैक्टरी की दीवार तोड़ कर ही दमकल की गाड़ियां अंदर जा सकीं. मगर जब तक गाड़ियां अंदर गईं तब तक सबकुछ जल कर राख हो चुका था. उन तीनों की लाशें भी कंकाल के रूप में मिलीं.

अवनी ने यह सुना तो पागल सी हो गई. बहुत इलाज करवाया मगर वह अविनाश को भूल नहीं पाई. उस ने आगरा के पागलखाने में दीवारों पर ‘अविनाशअविनाश’ लिखा हुआ था. पागलखाने की दीवारों में इश्क की तड़प की गूंज सुनाई देती थी. अकसर रातों को अवनी के चीखने की आवाजें आती थीं, “कोई मेरे अविनाश को बचा लो या मुझे भी उसी आग में जला दो…”

 

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