अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’

डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’

पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए.

मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा? कैसी है मेरी पत्नी? क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं?’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

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