रोहरानंद को देख, लंबी-लंबी फलांग भरता, मानौ दौड़ता भागने लगा.रोहरानंद ने पुकारा- "अरे भाई ! रुको ! रुको तो..."

बुद्धिजीवी ने पलट कर देखा और पुनः लंबे-लंबे डग भरता हवा से बातें करने लगा. विवश रोहरानंद पीछे दौडा. सोचा,आज बमुश्किल एक बुद्धिजीवी मिला है, चार बातें कर लूं तो जीवन धन्य हो जाए.

-"भाई साहब ! सुनिए तो..." रोहरानंद ने दौड़ते हुए पास पहुंच मानो गुहार लगाई.

-"क्यों?"बुद्धिजीवी  ने घूर कर देखा

-"कुछ शंका समाधान करना चाहता हूं."

-"मैं अभी शीघ्रता में हूं, फिर कभी मिलना."

-" ऐसा अनर्थ न करें,मेरी बस एक-दो ही शंका, कुशंका है." रोहरानंद ने  लरजते स्वर में कहा.

-"अच्छ, जरा जल्दी पूछो." बुद्धिजीवी ठहर गए.

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-" धन्यवाद !" रोहरानंद ने  इधर उधर देखा और फिर कहा,- "भाई साहब सामने काफी हाउस है, वहीं बैठते हैं न !"

-"ठीक है !"अब बुद्धिजीवी मुस्कुराया. रोहरानंद को लगा चिड़िया फंसने को तैयार है.

दोनों काफी हाउस में प्रविष्ट हुए . कुर्सियों पर बैठ गए. रोहरानंद ने सधे खिलाड़ी की तरह उंगली पकड़ी और कहा," भाई साहब और क्या हाल है ?"

बुद्धिजीवी ने गर्म हवा छोडी-" देश तालिबानी संस्कृति की ओर अग्रसर है ! बेहद दुखी है हम."

रोहरानंद- "तालिबानी अर्थात बर्बर सभ्यता .. नहीं... नहीं हमारा देश तो लोकतंत्र की ताजी हवाओं के झोंके से खुशनुमा है..."

बुद्धिजीवी- "यह सब कहने की बातें हैं. लोकतंत्र तो एक मृगतृष्णा है, हमारा देश अभी बर्बर अवस्था में ही सांसे ले रहा है ."

रोहरानंद ने आश्चर्य से कहा- "भाई साहब ! वह भला कैसे."

बुद्धिजीवी- "इंटेलेक्यूअल पर्सन को आज देशद्रोही ठहराया जा रहा है, इससे बड़ा काला दिन और क्या होगा. जब बुद्धिजीवियों के साथ सरकार ऐसा दमनकारी कृत्य कर रही है फिर आम लोगों के पीड़ा की आप कल्पना भी नहीं कर सकते."

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