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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“मैं जानती हूं कि मैं आप के बिना नहीं रह पाऊंगी और मेरा वजूद भी आप के बिना अधूरा है. पर इस घर को भी एक वारिस की ज़रूरत है और वह मैं आप को देने में नाकाम रही हूं. इसलिये मैं चाहती हूं कि आप मुझे तलाक़ दे दें और दूसरा निकाह कर लें.”

“ये कैसी बातें कर रही हो यास्मीन, मैं तो तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा चाहता हूं और फिर मैं तुहारे बिना कैसे जी पाऊंगा,” फज़ल ने कहा.

“नहीं, सब धीरेधीरे हो जाएगा. बस, आप मुझे तलाक़ दें और दूसरा निकाह कर के इस घर को एक वारिस दें. मैं अपनी ज़िंदगी किसी तरह से काट लूंगी,” यास्मीन ने कहा.

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“अरे, तुम समझती नहीं हो, कोर्टकचहरी के चक्कर लगा कर भला हम किसी वकील को बताएंगे कि तुम मां नहीं बन सकती, तो तुम्हारी कितनी बदनामी होगी और न जाने कैसेकैसे सवालात पूछे जाएंगे,” फज़ल ने चिंता जताई.

“नहीं, मैं अपने तलाक़ का आधार आपसी मनमुटाव का होना दिखाऊंगी, न कि मेरा बांझ होना,” एक झटके में यास्मीन ने समस्या का हल बता दिया था.

यास्मीन ने जो कहा, वह कर के भी दिखाया और आननफानन अपने आपसी रिश्तों में उठापटक को आधार दिखा कर तलाक ले लिया और उसी शहर में अपने मायके में रहने चली गई. जिंदगी में अपनेआप को व्यस्त रखने के लिए उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और खाली वक़्त में बच्चों को ट्यूशन भी देने लगी.

इधर, फज़ल के परिवार को वारिस चाहिए था, इसलिए फज़ल ने दूसरा निकाह कर लिया.

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