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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

दूध पीतेपीते ही छलछला आई थीं यास्मीन की आंखें. वह सोच रही थी कि उस के शौहर उस का धयान नहीं रखते थे पर वे तो बहुत प्यार करने वाले इंसान निकले. शायद, वह ही गलत थी. वह सोचने लगी, सुना है कि जब मर्द लोग बाहर के काम में परेशान होते हैं तो उस का असर उन की निजी जिंदगी पर भी पड़ता है. हो सकता है फज़ल भी बाहर के काम से परेशान रहे हों, तभी तो वे सही व्यवहार नहीं कर रहे थे. यास्मीन यही सब सोच ही रही थी कि फज़ल ने उस के लबों को चूम लिया. यासमीन शरमा गई और उस ने अपनी पलकें नीची कर लीं. फज़ल ने भी अपनी बांहों का मज़बूत घेरा यास्मीन के गिर्द डाल दिया. और दोनों जवानी के दरिया में बह कर किनारे लगने की कोशिश करने लगे.

उस दिन से 2 दिलों के साथ ही 2 जिस्मों की दूरियां भी कम होने लगीं. यास्मीन को एहसास होने लगा था कि अब फज़ल भी उसे प्यार करने लगे हैं. अब तो आएदिन फज़ल कुछ न कुछ तोहफे देता, घुमाने भी ले जाता और जी भरकर प्यार करता. इन सब बातों के अलावा वह यास्मीन को अपने हाथों से गरम दूध और खजूर खिलाना न भूलता था.

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“पता है यास्मीन, अब मैं चाहता हूं कि जल्दी से तुम एक बच्ची को जन्म दो, जो एकदम  तुम्हारे जैसी प्यारी हो, एकदम तुम्हारे जैसी गोरी. फूल सी नाज़ुक,” फ़ज़ल आजकल अकसर बच्ची की फरमाइश करने लगा था.

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