लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
फज़ल और यास्मीन की शादी को 2 हो चुके थे. लेकिन इस दौरान शायद ही कोई लमहा आया हो जब फज़ल ने यास्मीन से प्यार से बात की हो या उस का हाथ थामा हो. वे तो बिस्तर पर भी दूरियां बनाए रखते. शाम ढले औफिस से घर लौटते, तो उन के चेहरे पर ज़मानेभर का गम और दुनियाभर की बेरुखी छाई होती. गोया पूरी कायनात की चिंता उन के ही सिरमाथे पर हो. डरतेडरते यास्मीन ने कई बार पूछने की कोशिश की क़ि क्या कोई परेशानी है? पर सब फुज़ूल था. वे तो बात ही नहीं करते थे.
यास्मीन आज के ज़माने लड़की ज़रूर थी, पर जब से निकाह हुआ था तब से उस ने अपनेआप को ससुराल के रंग में ही रंग लिया था जैसा उस के सास, ससुर और पति चाहते, वह वैसा ही करती थी. सब तो उस से सामान्य थे, पर उस के शौहर का मिज़ाज़ ही नहीं मिलता था.
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यह बात यास्मीन ने अपनी सब से करीबी सहेली हया से शेयर की. तो हया ने कहा, “यास्मीन, अब तुम शादीशुदा हो कर भी मुझ से ऐसी बच्चों जैसी बातें मत करो. अरे भई, अगर तुम्हारे शौहर तुम से नाराज़ चल रहे हैं तो तुम्हारे पास तो हज़ार अदाएं होनी चाहिए उन को रिझाने की. मसलन, उन की पसंद का डियो लगा कर उन के करीब जा, औफिस में कई बार फोन कर, मुमकिन हो तो एकआध बार वीडियो कौल भी कर सकती है और रात को जब वे आएं तो मुसकराहट से उन को खुश किया कर. और हां, जब रात में वे बिस्तर पर आएं तो...”