महाराष्ट्र: शरद पवार ने उतारा भाजपा का पानी

कोई नैतिकता, कोई आदर्श, कोई नीति और सिद्धांत नहीं है. जी हां! एक ही दृष्टि मे यह स्पष्ट होता चला गया की महाराष्ट्र में किस तरह मुख्यमंत्री पद और सत्ता के खातिर देश के कर्णधार, आंखो की शरम भी नहीं रखते.

इस संपूर्ण महाखेल मे एक तरह से भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान शीर्षस्थ  मुखिया, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का शरद पवार ने अपनी सधी हुई चालो से देश के सामने पानी उतार दिया है और क्षण-क्षण की खबर रखने वाली मीडिया विशेषता: इलेक्ट्रौनिक मीडिया सब कुछ समझ जानकर के भी सच को बताने से गुरेज करती रही है.

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नि:संदेह सत्तासीन मोदी और शाह को यह शारदीय करंट कभी भुला नहीं जाएगा क्योंकि अब जब अजित पवार उप मुख्यमंत्री की शपथ अधारी गठबंधन मे भी ले रहे हैं तो यह दूध की तरह साफ हो जाता है की शरद पवार की सहमति से ही अजीत पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ खेल खेला था.

भूल गये बहेलिए को !

बचपन में एक कहानी, हम सभी ने पढ़ी है, किस तरह एक बहेलिया पक्षी को फंसाने के लिए दाना देता है और लालच में आकर पक्षी बहेलीए के फंदे में फंस जाता है महाराष्ट्र की राजनीतिक सरजमी में भी विगत दिनों यही कहानी एक दूसरे रूपक मे, देश ने देखी. पक्षी तो पक्षी है, उसे कहां बुद्धि होती है. मगर, हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां और उनके सर्वे सर्वा भी ‘पक्षी’ की भांति जाल में फंस जाएंगे, तो यह शर्म का विषय है. शरद पवार नि:संदेह राजनीतिक शिखर पुरुष है और यह उन्होंने सिध्द भी कर दिया.

इस मराठा क्षत्रप में सही अर्थों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की युति को धोबी पछाड़ मारी है.

शरद पवार जानते थे की अमित शाह बाज नहीं आएंगे और सत्ता सुंदरी से परिणय के पूर्व या बाद में बड़ा  खेल खेलेंगे, इसलिए उन्होंने सधी हुई चाल से भतीजे  अजीत पवार को 54 विधायकों के लेटर के साथ फडणवीस के पास भेजा. जानकार जानते हैं की जैसे बहेलिए ने पक्षी फंसाने दाने फेंके थे और पक्षी फस गए थे देवेंद्र फडणवीस और सत्ता की मद में आकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उस जाल में फस गया. देश ने देखा की कैसे शरद पवार की पॉलिटेक्निकल गेम में फंसकर बड़े-बड़े नेताओं का पानी उतर गया.

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इतिहास में हुआ नाम दर्ज

महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भगत सिंह कोशियारी और देवेंद्र फडणवीस का इस तरह महाराष्ट्र की राजनीति और इतिहास में एक तरह से नाम दर्ज हो गया. यह साफ हो गया कि 5 वर्षों तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस कितने सत्ता के मुरीद हैं की उन्होंने रातों-रात सरकार बनवाने में थोड़ी भी देर नहीं की और जैसी समझदारी की अपेक्षा थी वह नहीं दिखाई.

देश ने पहली बार देखा एक मुख्यमंत्री कैसे 26/11 के शहीदों की शहादत के कार्यक्रम मे अपने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार का इंतजार पलक पावडे बिछा कर कर रहे हैं. सचमुच सत्ता की चाहत इंसान से क्या कुछ नहीं करा सकती. इस तरह महाराष्ट्र के सबसे अल्प समय के मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस का नाम दर्ज हो गया. मगर जिस तरह उनकी भद पिटी वह देश ने होले होले मुस्कुरा कर देखी.

मराठा क्षत्रप शरद भारी पड़े

महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में शरद पवार की धमक लगभग चार दशकों से है. यही कारण है की देश भर में शरद पवार की ठसक देखते बनती है. उन्हें काफी सम्मान भी मिलता है. क्योंकि शरद पवार कब क्या करेंगे कोई नहीं जानता. राजनीति की चौपड़ पर अपनी सधी हुई चाल के कारण वे एक अलग मुकाम रखते हैं.

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सन 78′ में जनता सरकार के दरम्यान 38 वर्षीय शरद पवार ने राजनीति का सधा हुआ  दांव चला था की मुख्यमंत्री बन गए थे. उन्होंने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, जैसी शख्सियतो के साथ राजनीति की क, ख, ग खेली और सोनिया गांधी के रास्ते के पत्थर बन गए थे समय बदला दक्षिणपंथी विचारधारा को रोकने उन्होंने कांग्रेस के साथ नरम रुख अख्तियार किया है और एक अजेय योद्धा के रूप में विराट व्यक्तित्व के साथ मोदी के सामने खड़े हो गए हैं देखिए आने वाले वक्त में क्या वे विपक्ष के सबसे बड़े नेता पसंदीदा विभूति बन कर प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी बनेंगे या फिर…

धान खरीदी के भंवर में छत्तीसगढ़ सरकार!

छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा में आज सिर्फ एक ही मुद्दा है धान खरीदी और किसान का. छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने जो मास्टर स्ट्रोक चला था वह अब धीरे-धीरे कांग्रेस और भूपेश सरकार के लिए बढ़ते सर दर्द और ब्लड प्रेशर का हेतु बन रहा है. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पूर्व धान की खरीदी 2500 रूपये क्विंटल खरीदने और कर्जा मुआफी का वादा किया था. किसानों की कृपा से छत्तीसगढ़ में यह कार्ड चल गया और भूपेश बघेल की सरकार बहुत ताकत के साथ बन गई 67 विधायक चुन लिए गए मगर एक वर्ष बाद जब पुन: खरीफ फसल का समय आया है तो भूपेश सरकार के हाथ पांव फूलने लगे हैं और मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से रियायते चाहते हैं.

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनते ही जो वादा किया था उसे पूरा करने का ऐलान कर दिया किसानों की जेबें भर गई यही नहीं किसानों को किया गया असीमित कर्जा भी उन्होंने भामाशाह की तरह माफ कर दिया जबकि मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ. छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति इन्हीं कारणों से बदतर होती चली गई कर्ज पर कर्ज लेकर भूपेश सरकार एक खतरनाक ‘भंवर’ मे फंसती दिखाई दे रही है. जिसका अंजाम क्या होगा यह मुख्यमंत्री के रूप में एक कुशल रणनीतिक होने के कारण या तो प्रदेश को उबार ले जाएंगे अथवा छत्तीसगढ़ की आने वाले समय में बड़ी दुर्गति होगी यह बताएगा.

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मोदी सरकार से अपेक्षा !

भूपेश बघेल की सरकार किसानों से धान 2500 रूपये क्विंटल में खरीदने को कटिबद्ध है क्योंकि पीछे हटने का मतलब किसानों का रोष और छवि खराब होने की चिंता है .ऐसे में दो ही रास्ते हैं एक छत्तीसगढ़ सरकार शुचिता बरते, सादगी के साथ सिर्फ किसानों के हित साधती रहे और दूसरे दिगर विकास के कामों में ब्रेक लगा दे या फिर केंद्र के समक्ष हाथ पसारे.

भूपेश बघेल की शैली भीख मांगने यानी हाथ पसारने की कभी नहीं रही. भूपेश बघेल को एक आक्रमक छत्तीसगढ़ के चीते के स्वभाव वाला राजनीतिक माना गया है. ऐसे में उनकी सरकार मोदी सरकार के समक्ष हाथ पसारने की जगह सीना तान कर खड़ी हो गई है और केंद्र सरकार से मांग की जा रही है केंद्र को चेतावनी दी जा रही है की धान खरीदी में सहायता करो. छत्तीसगढ़ के एक मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने मोदी सरकार को चेतावनी दी केंद्र धान नहीं खरीदेगी तो हम छत्तीसगढ़ से होने वाले कोयले का परिवहन बंद कर देंगे .इस आक्रमकता  से यह दूध की तरह साफ हो चुका है कि भूपेश सरकार, नरेंद्र दामोदरदास मोदी के समक्ष झुकने को तैयार नहीं बल्कि झुकाने की ख्यामख्याली पाले हुए हैं.

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आज होगा आमना सामना

भूपेश बघेल को 14 जनवरी को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने का समय मिला था. छत्तीसगढ़ सरकार ने पूरी तैयारी कर रखी थी की दिल्ली पहुंचकर राष्ट्रपति से मिल केंद्र सरकार को घेरेगे और प्रदेश की जनता के मध्य यह संदेश प्रसारित होगा की केंद्र छत्तीसगढ़ की उपेक्षा कर रही है. मगर ऐन मौके पर चाल पलट गई. राष्ट्रपति भवन से 13 नवंबर की रात को संदेश आ गया की राष्ट्रपति महोदय से मुलाकात को निरस्त कर दिया गया है.

भूपेश बघेल सरकार नरेंद्र मोदी से मिलना चाहती थी मगर प्रधानमंत्री कार्यालय से भी लाल झंडी दिखाई दे रही है ऐसे में भूपेश बघेल स्वयं अपने चुनिंदा मंत्रियों के साथ केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिलकर आग्रह करेंगे की 85 लाख मैट्रिक टन धान खरीद पर केंद्र समर्थन मूल्य प्रदान करें । 32 लाख मैट्रिक धान का एफ सी  आई गोदाम में रखने की अनुमति दी जाए और समर्थन मूल्य पर बोनस पर केंद्र की लगी रोक को थिथिल किया जाए.

राजनीतिक प्रशासनिक चातुर्य की कमी  !

संपूर्ण प्रकरण पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट हो जाता है की भूपेश बघेल सरकार में जहां राजनीतिक चातुर्य की कमी है वहीं प्रशासनिक दक्षता जैसी दिखाई देनी चाहिए वह भी दृष्टिगोचर नहीं हो रही है. किसानों के खातिर तलवार भांजने वाली छत्तीसगढ़ सरकार यह कैसे भूल गई की विधानसभा में 68 सीटों का तोहफा देने वाली जनता और किसानों ने लोकसभा चुनाव में भूपेश बघेल की ऊंची ऊंची हांकने की हवा निकाल दी और बमुश्किल 11 में 9 सीटों पर दावा करने वाली कांग्रेस को 2 सीटें ही मिल पाई.

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किसानों का संपूर्ण कर्जा माफी करना भी भूपेश सरकार के गले का फंदा बन गया. अगरचे मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार से थोड़ा सबक सिखा होता तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल नहीं होती .वहीं केंद्र सरकार को आंख दिखाने की हिमाकत छत्तीसगढ़ सरकार को उल्टी न पड़ जाए. डॉक्टर रमन सिंह पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं,- केंद्र से सम्मान और विनय के साथ आग्रह करने की जगह जैसे भूपेश बघेल दो-दो हाथ करने का बॉडी लैंग्वेज दिखा रहे हैं यह गरिमा के अनुकूल नहीं है.

छत्तीसगढ़ के मंत्री, धान खरीदी के मुद्दे पर केंद्र को झुकाना चाहते हैं और केंद्र सरकार, भूपेश बघेल को धान के मुद्दे पर निपटाना चाहती है.! देखिए इस सोच में कौन कहां गिरता है और कहां उखडता है.

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कांग्रेस में खींचतान

कांग्रेस के कई जिलाध्यक्ष शनिवार, 12 अक्तूबर को खुल कर दिल्ली के प्रभारी पीसी चाको के समर्थन में आ गए. इन जिलाध्यक्षों ने उन नेताओं के खिलाफ ऐक्शन की मांग की है, जिन्होंने पीसी चाको को पद से हटाने की मांग की थी.

इस से पहले शुक्रवार, 11 अक्तूबर को शीला दीक्षित की कैबिनेट में रहे मंगतराम सिंघल, रमाकांत गोस्वामी, किरण वालिया, पूर्व पार्षद जितेंद्र कोचर और रोहित मनचंदा ने पीसी चाको को हटाने की मांग की थी. यह खबर भी आई थी कि शीला दीक्षित के बेटे और सांसद रह चुके संदीप दीक्षित ने शीला दीक्षित की मौत के लिए पीसी चाको को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हीं को चिट्ठी लिखी थी.

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अखिलेश दिखे रंग में

लखनऊ. काफी दिनों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रहे और अपनों में उलझे अखिलेश यादव ने हाल  में सरकारी बंगले में तथाकथित तोड़फोड़ को ले कर चल रही खबरों को उन्हें बदनाम करने की सरकारी साजिश करार देते हुए 13 अक्तूबर को कहा कि हाल के उपचुनावों में मिली हार और विपक्षी दलों के गठबंधन से परेशान भाजपा ने यह हरकत की है.

अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘सरकार मुझे बताए कि मैं कौन सी सरकारी चीज अपने साथ ले गया. मैं ने जो चीजें अपने पैसे से लगवाई थीं, वे मैं ले गया… भाजपा यह इसलिए कर रही है क्योंकि वह गोरखपुर और फूलपुर की हार स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वह यह समझ ले कि इस बेइज्जती के लिए जनता उसे सबक सिखाएगी.’’

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मोदी को घेरा

चेन्नई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समुद्र किनारे कचरा साफ करने वाले एक वीडियो पर रविवार, 13 अक्तूबर को कांग्रेस ने सवाल उठाया कि यहां उन के दौरे से पहले पूरे इलाके को साफ कर दिया था, तो क्या यह ‘नाटक’ था?

दरअसल, नरेंद्र मोदी 11 और 12 अक्तूबर को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अपनी दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्त्ता के लिए चेन्नई से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर तटीय शहर मामल्लापुरम आए थे. 12 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन की सुबह की सैर के दौरान समुद्र तट से प्लास्टिक और दूसरी तरह का कूड़ा बीनते देखा गया था. इस शूट में बहुत से कैमरामैन थे और शायद पहले सुरक्षा वालों ने जांचा था कि कहीं कोई बम तो नहीं है. उन सब ने सफाई की थी, ऐसा समाचार सरकार ने जारी नहीं किया.

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मंत्री पर फेंकी स्याही

पटना. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे 15 अक्तूबर को पटना मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल में डेंगू पीडि़तों का हाल जानने के लिए पहुंचे थे. इसी दौरान एक शख्स ने अचानक उन के ऊपर स्याही फेंक दी और मौके से फरार हो गया.

इस बारे में अश्विनी चौबे ने कहा, ‘‘सारे मीडिया पर स्याही फेंकी गई, उस के छींटे मुझे लगे. यह स्याही जनता पर, लोकतंत्र पर और लोकतंत्र के स्तंभ पर फेंकी गई है. ऐसे लोग निंदनीय हैं, उन की कड़ी बुराई होनी चाहिए.’’

बता दें कि अश्विनी चौबे कई विवादित बयानों को ले कर चर्चा में रहे हैं. पटना में भारी बारिश को उन्होंने हथिया नक्षत्र से जोड़ा था. इस के साथ ही एक पुलिस वाले को भी उन्होंने वरदी उतरवाने की धमकी दी थी.

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राहुल का बयान

सूरत. कांग्रेस नेता राहुल गांधी मानहानि के एक मामले में 10 अक्तूबर को सूरत की मजिस्ट्रेट अदालत में पेश हुए और उन्होंने कहा कि आपराधिक मानहानि के इस मामले में वे कुसूरवार नहीं हैं. यह मामला राहुल गांधी की तथाकथित टिप्पणी ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है’ से जुड़ा है.

सूरत (पश्चिम) से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ यह मामला दर्ज करवाया था. अदालत ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या वे इन आरोपों को स्वीकार करते हैं, तो उन्होंने कहा कि वे बेकुसूर हैं.

याद रहे कि कर्नाटक में 13 अप्रैल को कोलार में अपनी एक प्रचार रैली के दौरान राहुल ने कथित तौर पर कहा था, ‘‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी… आखिर इन सभी का उपनाम मोदी क्यों है? सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है?’’

यह मुकदमा किसी आरोपित मोदी ने दायर नहीं किया और पहली नजर में मामला बनता ही नहीं है.

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उबल गए कमलनाथ

झाबुआ. मध्य प्रदेश? के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 9 अक्तूबर को राज्य की झाबुआ विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के समर्थन में हुए एक रोड शो में हिस्सा लिया था और उस के बाद एक जनसभा को भी संबोधित किया था.

तब कमलनाथ ने कहा था, ‘‘भाजपा ने जो काम 15 सालों में नहीं किए, वे काम कांग्रेस की सरकार 15 महीने में कर दिखाएगी… भाजपा का काम सिर्फ झूठ बोलना है. इन का तो मुंह बहुत चलता है. सिर्फ बोलते जाएंगे, गुमराह करते जाएंगे… कहेंगे कि हिंदू धर्म खतरे में है और आगे कुछ नहीं बताएंगे. यह इन की ध्यान मोड़ने की राजनीति है. वे सचाई से आप का ध्यान मोड़ना चाहते हैं.’’

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पूनिया का प्रलाप

जयपुर. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने ‘भाजपा अल्पसंख्यक मोरचा’ की तरफ से देश के राष्ट्रपति रह चुके डा. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कांग्रेस को कोसते हुए कहा कि मुसलिमों को ले कर कांग्रेस का नजरिया हमेशा सिर्फ वोट बैंक ही रहा है, जबकि भाजपा ‘सब का साथ, सब का विकास’ पर यकीन करती है.

सतीश पूनिया यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने 55 सालों तक लूट और झूठ की ही राजनीति की है, जबकि भाजपा ने अटल बिहारी वापजेयी के काल से ले कर मोदी सरकार-2 तक अल्पसंख्यकों की तरक्की के लिए अनेक काम कर उन का भरोसा मजबूत किया है.

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नड्डा का नया शिगूफा

शिमला. भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद जगत प्रकाश नड्डा 9 अक्तूबर को पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के गृह जिले मंडी में गए थे. वहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यह प्यार और अपनापन उन्हें ताकत देता है. अमित शाह की अगुआई में भाजपा भारत की सब से बड़ी पार्टी बनी है और अब वे यह तय करेंगे कि भाजपा दुनिया की सब से बेहतरीन पार्टी बने. पार्टी के पास नए भारत का नजरिया है और वह हिम्मत भरे फैसले लेने से नहीं डरती.

दामोदर राउत का इस्तीफा

भुवनेश्वर. भाजपा के एक बड़े कद के नेता दामोदर राउत ने पार्टी में अपनी अनदेखी के चलते 16 अक्तूबर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वे इसी साल मार्च महीने में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) से निकाले जाने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे. बीजापुर उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों में उन का नाम शामिल नहीं किया गया था, इस बात से वे बड़े दुखी थे.

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बीजापुर उपचुनाव से पहले विधायक रह चुके अशोक कुमार पाणिग्रही भी भाजपा छोड़ चुके थे.

पानी पानी नीतीश, आग लगाती भाजपा

इस वजह से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में काफी अजीबोगरीब हालत पैदा हो गई है. अगले साल बिहार विधानसभा का चुनाव है और नीतीश कुमार पर हमला कर भाजपाई नए राजनीतिक समीकरण गढ़ने की ओर इशारा कर रहे हैं.

भाजपा के अंदरखाने की मानें तो भाजपा आलाकमान इस बार नीतीश कुमार की बैसाखी के बगैर अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का माहौल बना रहा है और इस काम के लिए गिरिराज सिंह जैसे मुंहफट नेताओं को आगे कर रखा है.

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ऐसे में नीतीश कुमार के सामने बड़े अजीब हालात पैदा हो गए हैं. अगर भाजपा उन से दामन छुड़ा लेती है, तो उन के सामने दूसरा सियासी विकल्प क्या होगा? क्या वे दोबारा लालू प्रसाद यादव की लालटेन थामेंगे? कांग्रेस की हालत ऐसी नहीं है कि उस से हाथ मिला कर जद (यू) को कोई फायदा हो सकेगा. हमेशा किसी न किसी के कंधे का सहारा ले कर 15 साल तक सरकार में बने रहने वाले नीतीश कुमार क्या अकेले विधानसभा चुनाव में उतरने की हिम्मत दिखा पाएंगे?

नीतीश कुमार की इसी मजबूरी का फायदा भारतीय जनता पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में उठाना चाहती है. कई मौकों पर कई भाजपा नेता कह चुके

हैं कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग के मुखिया को बदलने की जरूरत है. इस बार भाजपा के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए. इस से जद (यू) के अंदर उबाल पैदा हो गया था.

हालांकि भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यह कह कर मामले को ठंडा कर दिया था कि जब कैप्टन ही अच्छी तरह से कप्तानी कर रहा हो और चौकेछक्के लगा रहा हो तो कैप्टन बदलने की जरूरत नहीं होती है.

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6 अक्तूबर, 2019 को भाजपा की राजनीति कुछ दिलचस्प अंदाज में नजर आई. कुलमिला कर हालत ‘नीतीश से मुहब्बत, नीतीश से ही लड़ाई’ वाली रही. बारिश के पानी में पटना के डूबने के मसले पर भाजपा और जद (यू) के कई नेताओं के बीच जबानी जंग तेज होती गई थी.

एक ओर जहां भाजपा के नेता पटना को डूबने से बचाने के मामले में नीतीश कुमार को पूरी तरह से नाकाम बता रहे थे, वहीं दूसरी ओर ऐसे में एक बार फिर सुशील कुमार मोदी ढाल ले कर नीतीश कुमार के बचाव में उतर पड़े.

उन्होंने आपदा से निबटने के लिए नीतीश कुमार की जम कर तारीफ की और उन के दोबारा जद (यू) अध्यक्ष बनने पर बधाई भी दी.

वहीं भाजपा के कुछ नेता दबी जबान में कहते हैं कि सुशील कुमार मोदी 3 दिनों तक खुद ही राजेंद्र नगर वाले अपने घर में 7-8 फुट से ज्यादा पानी में फंसे रहे. नीतीश कुमार ने उन की कोई खोजखबर तक नहीं ली.

जब भाजपा के कुछ नेताओं ने सुशील कुमार मोदी को ले कर हल्ला मचाया, तब पटना के जिलाधीश लावलश्कर के साथ ट्रैक्टर और जेसीबी ले कर मोदी के घर पहुंचे और डिप्टी सीएम का रैस्क्यू आपरेशन किया.

जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि भाजपा के कुछ नेता मुख्यमंत्री पर राष्ट्रीय जनता दल से ज्यादा तीखा हमला कर रहे हैं. हमारे घटक दल ही विरोधी दल की तरह काम कर रहे हैं. इस से सरकार और गठबंधन दोनों की फजीहत हो रही है.

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मुंबई महानगरपालिका का बजट 70,000 करोड़ रुपए का है और हर साल बारिश के मौसम में पानी जमा होता है. चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलुरु और मध्य प्रदेश में भी भारी पानी जमा हुआ. आपदा के इस माहौल में साथ मिल कर काम करने के बजाय कुछ भाजपा नेता बयानबाजी करने में लगे रहे.

गौरतलब है कि पटना नगरनिगम का इलाका 109 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस की आबादी 17 लाख है. नगरनिगम का सालाना बजट 792 करोड़ रुपए का है और 75 वार्ड हैं.

बारिश का पानी जमा होने को ले कर सत्ताधारी दलों के नेता आपस में उलझे रहे और सचाई यह सामने आई कि पटना के सारे नाले जाम पड़े थे और पटना नगरनिगम नालों के नक्शे की खोज में लगा हुआ था. नालों का नक्शा ही निगम को नहीं मिला, जिस से सफाई को ले कर अफरातफरी का माहौल बना रहा और जनता गले तक पानी में डूबती रही.

दरअसल, पटना नगरनिगम के नालों को बनाने का जिम्मा किसी एक एजेंसी के पास नहीं है. शहरी विकास विभाग, बुडको, नगरनिगम, राज्य जल पर्षद और सांसदविधायक फंड से यह काम कराया जाता रहा है. जिसे जितने का ठेका मिला, उसे बना कर चलता बना. नगरनिगम ने भी उस से नालों की पूरी जानकारी ले कर रिकौर्ड में नहीं रखा.

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भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के नीतीश कुमार पर हमलावर होते ही जद (यू) के कई नेता उन पर तीर दर तीर चलाने लगे. जद (यू) के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि गिरिराज सिंह डीरेल हो गए हैं. वे नीतीश कुमार के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं. अगर जद (यू) नेताओं का मुंह खुल गया, तो गिरिराज सिंह पानीपानी हो जाएंगे.

भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी कहते हैं कि गिरिराज सिंह का राजनीतिक आचरण कभी ठीक नहीं रहा है और वे अंटशंट बयान देने के आदी हैं. उन्हें कोई सीरियसली लेता भी नहीं है.

गिरिराज सिंह कहते हैं कि पटना एक हफ्ते तक पानी में डूबा रहा और नीतीश कुमार के अफसर भाजपा नेताओं का फोन नहीं उठाते थे. पटना के जिलाधीश तक ने फोन रिसीव नहीं किया और न ही कौल बैक किया. इस से यह साफ है कि अफसरों को मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि किस का फोन उठाना?है, किस का नहीं. ताली सरदार को मिली है तो गाली भी सरदार को ही मिलेगी, इस बात को नीतीश कुमार को नहीं भूलना चाहिए.

शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि गिरिराज सिंह के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. उन की चिंता है कि जद (यू) के साथ भाजपा भी सरकार में है. ऐसे में भाजपा को भी जनता के सवालों का जवाब देना होगा.

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गिरिराज सिंह से पूछा गया था कि नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से सत्ता में हैं, तो क्या जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? तो उन का जवाब था कि बिलकुल लेनी चाहिए. इसी बात का बतंगड़ बना दिया गया है और कहा जा रहा है कि राजग टूटने के कगार पर है.

सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार राजग में खींचतान की बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि बिहार में कुदरती आपदा आई है, ऐसे में राजनीतिक आपदा का कयास लगाना बेमानी है. राजग में टूट की बात करने वाले दिन में सपना देख रहे हैं. राजग अटूट है. वैसे भी गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की बयानबाजी का कोई सियासी असर नहीं होता है.

पटना की जनता एक हफ्ते तक पानी में फंसी परेशान रही और नीतीश सरकार के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा अपनी जवाबदेही से बचने की कवायद में लगे रहे. उन की बात सुनेंगे तो हंसी भी आएगी और गुस्सा भी.

मंत्री महोदय बड़ी ही मासूमियत से कहते हैं कि पटना में जलजमाव के लिए पटना नगरनिगम के पहले के कमिश्नर अनुपम कुमार सुमन जबावदेह हैं. वे किसी की बात ही नहीं सुनते थे. मुख्यमंत्री से भी इस की शिकायत कई दफा की गई थी. अनुपम कुमार सुमन की लापरवाही और मनमानी की वजह से ही पटना की बुरी हालत हुई है. विभाग की ओर से अनुपम कुमार सुमन पर कार्यवाही की सिफारिश की जाएगी.

सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि नीतीश कुमार ने जानबूझ कर पटना को पानी में डूबने दिया. वे भाजपा नेताओं को उन की औकात बताना चाहते थे और जनता के सामने उन्हें नीचा दिखाने की साजिश रची गई.

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पटना की 2 लोकसभा सीट और 14 विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा का कब्जा है. पटना शहरी इलाकों में भाजपा का दबदबा होने की वजह से  ही नीतीश कुमार ने इन इलाकों पर ध्यान नहीं दिया. नीतीश कुमार के मन में हमेशा यह चिढ़ रहती है कि पटना की जनता उन की पार्टी को तवज्जुह नहीं देती है. कई भाजपाई नेता दबी जबान में यह कह रहे हैं कि पटना को जानबूझ कर डुबोया गया. मेन नालों को जहांतहां जाम कर के रख दिया गया था. पंप हाउसों की मोटर खराब थी. जब मौसम विभाग ने बारिश को ले कर रेड अलर्ट जारी किया था तो पंप हाउस की मोटर को ठीक क्यों नहीं कराया गया?

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि पटना के ड्रेनेज सिस्टम, पंप हाउस जैसे बुनियादी मसलों पर पहले से पूरी तैयारी होती और मौनीटरिंग का इंतजाम होता तो इतनी बुरी हालत नहीं होती. सांसद अश्विनी चौबे कहते हैं कि पटना की तबाही के लिए लालफीताशाही जिम्मेदार है.

पटना के एक हफ्ते तक बारिश के पानी में डूबने का मामला शांत होता नहीं दिख रहा है. इस मसले को जिंदा रख कर भाजपा मजबूत सियासी फायदा उठाने की कवायद में लगी हुई है. इस साल के आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद से ही भाजपा बिहार में भी ‘एकला चलो रे’ का माहौल बनाने में लगी हुई है.

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पटना में भारी जल जमाव के बाद भाजपा ने खुल कर इस कोशिश को तेज कर दिया है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पटना के डूबने के बाद अब नीतीश कुमार की राजनीति के भी डूबने के आसार हैं?

रावण वध में हुआ राजग की एकता का वध? 

भाजपा और जद (यू)  के बीच तनातनी पूरी तरह से खुल कर तब सामने आ गई, जब 8 अक्तूबर को दशहरे के मौके पर पटना के गांधी मैदान में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम में भाजपा का एक भी नेता नहीं पहुंचा.

14 सालों के राजग के शासन में पहली बार ऐसा हुआ. इस मसले को ले कर जद (यू) खासा नाराज है कि भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री के प्रोटोकौल का उल्लंघन किया है.

जद (यू) के विधान पार्षद रणवीर नंदन कहते हैं कि अगर भाजपा नेताओं के मन कोई छलकपट है, तो वह किसी गलतफहमी में न रहें. विधानसभा चुनाव में जनता उन्हें करारा जवाब देगी.

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भाजपा आपदा के मौके पर भी सियासी फायदा उठाने की जुगत में है, वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि रावण वध कार्यक्रम से ज्यादा जरूरी जलजमाव में फंसी जनता को राहत पहुंचाना था और भाजपा उसी में मसरूफ रही.

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि इस साल जनता की परेशानियों को देखते हुए उन्होंने दशहरा नहीं मनाया और न ही किसी आयोजन में हिस्सा लिया. पटना के सातों शहरी विधानसभा क्षेत्र का विधायक जनता की सेवा का हवाला दे कर कन्नी कटाता रहा.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इस मामले में किसी तरह की राजनीति से इनकार करते हुए कहा है कि भाजपा और जद (यू) के बीच किसी भी तरह का मतभेद नहीं है. राजग अटूट है.

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मोदी को आंख दिखाते, चक्रव्यूह में फंसे भूपेश बघेल!

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्तासीन होने के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. विधानसभा चुनाव के परिणाम स्वरुप मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की कमान संभाल ली और इसके साथ ही शुरू हो गया छत्तीसगढ़ सरकार का केंद्र सरकार के साथ आंख मिचौली का खेल. भूपेश बघेल बारंबार एहसास कराते हैं कि वे प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की परवाह नहीं करते.

मौके मिलते ही  उनके सामने  सीना तान कर खड़े हो जाते हैं. और फिर जब हकीकत का एहसास होता है तो हाथ जोड़ मुस्कुराते हुए गुलाब पेश करते हैं . यही सब कुछ इन दिनों धान खरीदी की महत्वाकांक्षी योजना के संदर्भ में भी दिखाई दे रहा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार यह वादा करके सत्तासीन हुई थी किसानों से 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदी जाएगी.

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इस बिना पर सत्ता पर कांग्रेस भाग्यवश काबिज भी हो गई. मगर इसके चलते छत्तीसगढ़ सरकार की आर्थिक हालत खस्ता हो चुकी है, अब नवंबर में धान खरीदी का आगाज होना था प्रत्येक वर्ष 1 नवंबर अथवा 15 नवंबर से धान खरीदी प्रारंभ हो जाया करती थी. मगर सरकार के संशय के कारण विपरीत स्थितियों के कारण, भूपेश सरकार ने पहली बार धान खरीदी को एक माह आगे बढ़ाते हुए 1 दिसंबर से खरीदी करने का ऐलान किया है. जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की हालत कितनी पतली हो चली है.

भूपेश सरकार अब केंद्र सरकार के समक्ष अनुनय विनय  कर रही है कि प्रभु हमारी रक्षा करो…!

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मंत्री आए सामने! दिखे चिंतातुर…

धान खरीदी के मसले पर आयोजित मंत्रिमंडल की उपसमिति की बैठक में 15 नवंबर से प्रस्तावित धान खरीदी के तय समय को बदल दिया गया. अब धान खरीदी का आगाज़  1 दिसंबर से होगी. इस बार 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.

बैठक के बाद खाद्य  मंत्री अमरजीत भगत और वन मंत्री मो. अकबर ने ने कहा कि, कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से पहले  वादा किया था, सरकार उस वादे को पूरा करेगी. हम 2500 रुपये कीमत के साथ ही किसानों से धान खरीदेंगे. पीडीएस के लिए 25 लाख मीट्रिक टन चावल लगता है और इसके लिए 38 लाख मीट्रिक टन धान की जरूरत होती है. बाकी शेष जो धान खरीदी का लक्ष्य है उसकी खरीदी को लेकर चर्चा हुई है. केंद्र सरकार से हमने आग्रह किया है.

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हमनें केंद्र सरकार से कहा है कि हम पूरा धान खरीदना चाहते हैं, जिस तरह से पूर्व में 24 लाख मीट्रिक टन उसना चावल जमा करने की अनुमति (पूर्ववर्ती  डाक्टर रमन सिंह सरकार को)  मिली थी, उसी तरह से इस बार भी केंद्र हमें अनुमति प्रदान करे. हमें उम्मीद केंद्र सरकार अनुमति मिल जाएगी. हम अपना वादा पूरा करेंगे. खरीदी को लेकर किसी तरह से दिक्कत नहीं आएगी. छत्तीसगढ़ सरकार  के मंत्रियों ने बड़ी चतुराई से धान खरीदी कि लेट  लतीफी को, मौसम पर डाल दिया और कहा

इस बार बेमौसम बारिश से धान के पैदावारी में देरी हुई है. लिहाजा खरीदी की शुरुआती समय-सीमा को आगे बढ़ा दिया गया है. इस बार 1 दिसंबर से धान खरीदी होगी. ताकि खरीदी केंद्रों तक किसान धान लेकर व्यवस्थित रूप से पहुँच सके. खरीदी की तैयारी करने के निर्देश विभाग को दे दिए गए हैं. खरीदी और संग्रहण केंद्रों में व्यापक तैयारी रखी जाएगी. किसानों को परेशानी न हो इस बात का विशेष ध्यान रखने को कहा गया है.

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मुश्किल मे है भूपेश सरकार!

छत्तीसगढ़  सरकार ने धान खरीदी को लेकर मुश्किलों में घिरने के बाद भी किसानों को बड़ा आश्वासन  दिया है. राज्य सरकार ने कहा है कि किसी भी सूरत में राज्य सरकार किसानों के धान खऱीदने से पीछे नहीं हटेगी. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि हर परिस्थिति में किसानों के धान खरीदी जाएगी.

कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने केंद्र से अनुनय विनय करते हुए जो कहा है वह गौरतलब है -” छत्तीसगढ़ के किसान भी भारत के ही किसान हैं. लिहाज़ा केंद्र सरकार को छत्तीसगढ़ के चावल खरीदने चाहिए.” उन्होंने कहा कि “उम्मीद है कि प्रधानमंत्री छत्तीसगढ़ के किसानों को अपना किसान मानेंगे.” चौबे ने कहा कि -“जब राज्य में भाजपाई सरकार थी तब उन्होंने भी 300 रुपये बोनस दिया था.

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तब केंद्र ने चावल भी खरीदे थे.” उन्होंने कहा-”  बोनस छत्तीसगढ़ की सरकार दे रही है. लिहाज़ा उसे( केंद्र को) चावल खरीदना चाहिए.” सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नवीन परिस्थितियों में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ने

बोनस देने की सूरत में छत्तीसगढ़ से चावल खरीदने से मना कर दिया है. पिछले साल सरकार ने करीब 81 लाख मीट्रिक टन चावल किसानों से खऱीदा था. जिसमें से मिलिंग के बाद 24 लाख मीट्रिक टन चावल केंद्र ने अपने पूल में जमा किया था. इस बार केंद्र सरकार ने किसानों को बोनस देने की सूरत में चावल लेने से मना कर दिया है. जिसे लेकर राज्य सरकार लगातार कोशिश कर रही है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तीन बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख चुके हैं. राज्यपाल अनुसुइया उईके छत्तीसगढ़ के राजभवन में केंद्र सरकार की प्रतिनिधि है,भूपेश  सरकार ने अनुरोध कर के राज्यपाल से भी केंद्र को,भूपेश सरकार के पक्ष में धान खरीदी का पत्र लिखवा कर अपनी पीठ ठोंक ली है.

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ना खाते बन रहा ना उगलते!

हालात छत्तीसगढ़ में निरंतर विषम बनते जा रहे हैं, एक तरफ भूपेश सरकार केंद्र सरकार को आंख दिखाने से नहीं चूकती,  दूसरी तरफ भरपूर मदद भी चाहती है. परिणाम स्वरूप केंद्र की मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ को तवज्जो देना बंद कर दिया है. इन्हीं परिस्थितियों के कारण छत्तीसगढ़ के विकास को मानो  ब्रेक लग गया है. हालात निरंतर शोचनीय होते चले जा रहे हैं. एक डौक्टर रमन का छत्तीसगढ़ था, जहां हर विभाग में विकास तीव्र  गति से दौड़ रहा था.

रुपए पैसों की कभी कमी नहीं हुआ करती थी मगर भूपेश सरकार में जहां सड़कें गड्ढों में बदल गई हैं वही गोठान शुभारंभ और छुट्टी वाला बाबा बनकर भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की गली कूचे में भटक कर रह गए हैं.अब धान खरीदी का ही मसला लें, भूपेश सरकार मानो एक चक्रव्यू में फंस चुकी है. धान खरीदी के मसले पर सत्ता में वापसी के बाद केंद्र सरकार की मदद नहीं मिलने से भूपेश सरकार पसीना पसीना है. केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान और प्रधानमंत्री मोदी तक धान खरीदी के लिए सहयोग की कामना के साथ भूपेश बघेल सरकार सरेंडर है. मगर जिस मिट्टी के बने हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,उससे यह प्रतीत होता है कि वह छत्तीसगढ़ सरकार की कोई मदद करने के मूड में नहीं है.

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क्या इस खुलासे के बाद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं?

विरोधियों के निशाने पर रहने वाले केजरीवाल ने यों तो दिल्ली में कई साहसिक घोषणाएं की हैं और उसे लागू भी कराया है. स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली और पानी की मुफ्त योजनाओं को लागू कर वाहवाही बटोरने वाली केजरीवाल सरकार अब अपने ही स्वास्थ्य मंत्री द्वारा जारी एक रिपोर्ट में घिरती नजर आ रही है.
दरअसल, मुख्य विपक्षी पार्टी के एक विधायक ने केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री से एक रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी. इस रिपोर्ट के अनुसार जो हकीकत सामने आया है वह काफी चौंकाने वाला है.

सिर्फ घोषणा ही बन कर रह गई

दरअसल, 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के वाद केजरीवाल ने घोषणा की थी कि दिल्ली के अस्पतालों में बेड की क्षमता 10 हजार से बढा कर 20 हजार करेंगे. मगर रिपोर्ट के अनुसार केजरीवाल सरकार इस लक्ष्य को पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रही है.
दिल्ली विधानसभा में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सत्ता में आने से पहले दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में 10,969 स्वीकृत बेड थे जबकि 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में 11,353 बेड ही सरकारी अस्पतालों में हैं. यानी इस दौरान महज 394 बेड ही सरकार बढा पाई.

वैंटिलेटर्स भी पर्याप्त नहीं

एक सवाल का जवाब देते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने दिल्ली में वैंटिलेटर की वर्तमान स्थिति पर भी स्थिति साफ की और कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में 440 वैंटिलेटर्स हैं जिन में से मात्र 396 वैंटिलेटर्स ही ऐक्टिव हैं. आश्चर्य की बात तो यह कि पूरी दिल्ली में सिर्फ लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में ही एमआरआई की सुविधा है.

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घिरती नजर आ रही है सरकार

दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के इस खुलासे से दिल्ली सरकार खुद ही घिरती नजर आ रही है.
प्रमुख विपक्षी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की स्वास्थ्य योजनाओं को जनता के साथ छलावा बताया और कहा कि जिस सरकार की महात्वाकांक्षी योजना स्वास्थ्य सेवाओं को ले कर थी और जिन्होंने स्वास्थ्य सेवा को ले कर बङीबङी घोषणाएं की थीं, उस का पोल खुद सरकार के मंत्री ने खोल दी हैं.

नए प्रोजैक्ट की रफ्तार भी बेहद धीमी

उधर, दिल्ली सरकार द्वारा 3 नए सरकारी अस्पतालों के निर्माण की वर्तमान स्थिति पर भी सरकार ने जो रिपोर्ट दी है वह भी काफी निराशाजनक है. दिल्ली सरकार ने जानकारी दी कि दिल्ली में 3 नए सरकारी अस्पतालों के प्रोजैक्ट पर काम चल रहा है.
जबकि हकीकत तो यह है कि अंबेडकर नगर अस्पताल का निर्माण कार्य फरवरी, 2019 में होना था, जिस का लक्ष्य अब नवंबर, 2019 रखा गया है.
बुराङी अस्पताल प्रोजैक्ट पूरा होने का समय मार्च, 2019 था जो नवंबर, 2019 कर दिया गया है.
इंदिरा गांधी अस्पताल का प्रोजैक्ट तो इतना सुस्त है कि इसे मार्च 2019 में ही पूरा होना था, जिसे बढा कर मार्च, 2020 कर दिया गया है.
जाहिर है, इस मुद्दे को ले कर अब विपक्षी पार्टियां केजरीवाल सरकार को घेरने का काम करेगी जिस का जवाब खुद दिल्ली सरकार को देना भी भारी पङेगा.

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वाहवाही बटोर चुकी है सरकार

मगर सचाई यह भी है कि कुछ योजनाओं को लागू कर दिल्ली सरकार ने न सिर्फ दिल्ली में बल्कि विदेशों में भी वाहवाही बटोर चुकी है. सरकार की महात्वाकांक्षी योजनाएं मोहल्ला क्लीनिक और महिलाओं को मुफ्त मैट्रो में यात्रा कराने को ले कर सरकार की प्रशंसा पहले ही की जा चुकी है.

 

ममता की ओर झुकते नीतीश?

इस बीच ऐसी अटकलें भी तेज हुई थीं कि नीतीश कुमार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार की बहुत ज्यादा बुराई करने को ले कर अजय आलोक से नाराज थे.

अजय आलोक ने पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख वशिष्ठ नारायण सिंह को संबोधित करते हुए अपने इस्तीफे में लिखा था, ‘मैं आप को पत्र लिख कर यह सूचित कर रहा हूं कि मैं पार्टी प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि मैं पार्टी के लिए अच्छा काम नहीं कर रहा हूं. मैं यह अवसर देने के लिए आप का और पार्टी का धन्यवाद करता हूं लेकिन कृपया मेरा इस्तीफा स्वीकार करें.’

बता दें कि अपने एक ट्वीट में अजय आलोक ने पहले भी जद (यू) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की कंपनी के ममता बनर्जी के लिए चुनाव प्रचार की कमान संभालने पर सवाल उठाए थे.

अजय आलोक पटना के मशहूर डाक्टर गोपाल प्रसाद सिन्हा के बेटे हैं. आलोक अपने कालेज के दिनों से राजनीति में सक्रिय थे. उन्होंने साल 2012 में जद (यू) को जौइन किया था.

सांसद के घर कुर्की का आदेश

वाराणसी. इन लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की घोसी लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के नेता अतुल राय सांसद बने थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान एक छात्रा ने उन पर यह कहते हुए रेप का आरोप लगाया था कि अतुल ने उसे अपनी पत्नी से मिलाने के लिए अपने आवास पर बुलाया था और इस के बाद रेप किया था.

उस पीडि़ता का कहना है कि अतुल राय ने उसे जान से मारने की धमकी भी दी, जबकि अतुल राय का कहना है कि वह छात्रा उन के औफिस आ कर चुनाव लड़ने के नाम पर चंदा लेती थी और चुनाव में उम्मीदवार बनने के बाद उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई.

छात्रा के आरोप के बाद न्यायिक मैजिस्ट्रेट ने अतुल राय की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए थे. वे जमानत के लिए हाईकोर्ट तक गए, लेकिन उन्हें जमानत नहीं मिली, तो वे फरार हो गए जिस के चलते 14 जून को पुलिसप्रशासन ने उन के घर पर कुर्की का नोटिस लगा दिया.

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बिजली के बहाने भिड़ंत

भोपाल. मध्य प्रदेश में बिजली की कटौती को ले कर विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के एक नेता का सोशल मीडिया पर लंगर डाल कर बिजली गुल करने वाले लड़कों की भरती का इश्तिहार सामने आने से कांग्रेस और उस में तकरार और ज्यादा बढ़ गई.

दरअसल, दमोह जिले के मीडिया प्रभारी मनीष तिवारी ने 12 जून को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला था, ‘विज्ञापन-बिजली गोल कराने वाले लड़कों की आवश्यकता है. नोट-लंगर डालने में ऐक्सपर्ट हों. संपर्क करें बीजेपी दमोह.’

इस मसले पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने कहा, ‘प्रदेश में भाजपा के लोग बिजली गुल कराने की एक बड़ी साजिश चला रहे हैं. बिजली गुल कराने के लिए टीम लगाई जा रही है.’

 राजस्थान कांग्रेस में रार

जयपुर. राजस्थान में सत्ता का सुख भोग रही कांग्रेस पार्टी में खेमेबंदी अब खुल कर सामने आ रही है. इस खेमेबाजी की एक तरफ वहां के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं, तो दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट.

दरअसल, दौसा जिले के भंडाना इलाके में मंगलवार, 11 जून को सचिन पायलट के पिता व केंद्रीय मंत्री रह चुके राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर कराई गई एक प्रार्थना सभा में सरकार के 15 मंत्रियों समेत 62 विधायक पहुंचे थे, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं आए थे. उन्होंने ट्विटर के जरीए राजेश पायलट को श्रद्धांजलि दी थी.

इस के ठीक एक दिन बाद जब अशोक गहलोत जयपुर में एमएसएमई के एक पोर्टल की शुरुआत कर रहे थे तो कई बड़े मंत्री जयपुर में होने के बावजूद वहां नहीं गए थे.

कैप्टन ने कन्नी काटी

चंडीगढ़. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में शनिवार, 15 जून को हुई नीति आयोग की बैठक में भाग लेने नहीं गए.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के बैठक में शामिल न होने की वजह उन का बीमार होना बताई गई, जबकि वे पूरा एक हफ्ता हिमाचल प्रदेश में अपने फार्महाउस पर छुट्टियां बिता कर पंजाब लौटे थे.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह देश के ऐसे दूसरे मुख्यमंत्री थे जो इस खास बैठक में शामिल होने नहीं गए.

गरमाई धरने की सियासत

बैंगलुरु. जेएसडब्लू जमीन सौदे में धांधली का आरोप लगाते हुए कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री रह चुके बीएस येदियुरप्पा और दूसरे नेताओं ने 14 जून को बैंगलुरु में पूरी रात धरनाप्रदर्शन किया जिस से एचडी कुमारस्वामी की राज्य सरकार कठघरे में आ गई.

यह मामला जेएसडब्लू स्टील कंपनी की बेल्लारी में 3,667 एकड़ जमीन की बिक्री का है. भाजपा ने आरोप लगाया कि जेएसडब्लू को सस्ती दर पर जमीन अलौट करने का फैसला सरकार ने जानबूझ कर किया है. ऐसा कर के सरकार अपनी झोली भरने का काम करना चाहती है, क्योंकि उसे राज्य में अपनी सरकार गिरने का डर है.

केजरीवाल ने उठाया मुद्दा

नई दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 15 जून को नीति आयोग की बैठक में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में उन्होंने कहा, ‘दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए जिस का वादा सालों से किया जा रहा है लेकिन लगातार केंद्र सरकारें इनकार करती रही हैं.’

आम आदमी पार्टी ने हालिया लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का मुद्दा उठाया था. उस का कहना है कि केंद्र की दखलअंदाजी की वजह से वह अपनी योजनाओं को असरदार तरीके से लागू करने में कामयाब नहीं हो पा रही?है.

 मूर्ति पर हुई गिरफ्तारी

हैदराबाद. मंगलवार, 17 जून को कांग्रेस के सांसद रह चुके 2 बड़े नेताओं वी. हनुमंथा राव, हर्ष कुमार और उन के समर्थकों को तब गिरफ्तार कर लिया गया जब वे शहर के पंजागुट्टा चौराहे पर भीमराव अंबेडकर की मूर्ति लगाने की कोशिश कर रहे थे.

दरअसल, अप्रैल महीने में ग्रेटर हैदराबाद  नगरनिगम ने ‘अंबेडकर जयंती’ से एक दिन पहले ‘जय भीम सोसाइटी’ द्वारा अंबेडकर की मूर्ति को स्थापित किए जाने के बाद उस जगह से हटा दिया था. बाद में वह मूर्ति टूटीफूटी हालत में कूड़े में मिली थी, जिस का दलित संगठनों ने कड़ा विरोध जताया और इस के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की.

ग्रेटर हैदराबाद नगरनिगम के अधिकारियों ने कहा कि मूर्ति को बिना इजाजत लिए लगाया गया था, इसलिए हटा दिया गया.

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नेता के सामने पी लिया जहर

मुंबई. 15 जून को महाराष्ट्र के ऊर्जा राज्यमंत्री एमएम येरावर के सामने एक किसान ने जहर पी कर जान देने की कोशिश की. दरअसल, बुलढाणा में एक कार्यक्रम के दौरान ऊर्जा राज्यमंत्री मंच पर मौजूद थे, तभी ईश्वर खारटे नाम के एक किसान ने वहां सब के सामने कीटनाशक पी कर जान देने की कोशिश की.

अस्पताल ले जाए गए ईश्वर खारटे का आरोप है कि उस के दादा ने साल 1980 में बिजी के कनैक्शन के लिए अर्जी लगाई थी पर उन्हें अब तक कनैक्शन नहीं मिला है, जबकि संबंधित अधिकारी का कहना है कि ईश्वर खारटे ने बकाया जमा नहीं किया है, इसलिए उन्हें कनैक्शन नहीं मिला है.              द्य

 

आम लोगों की सरकार से उम्मीदें

आम लोगों को एक सरकार से बहुत उम्मीदें होती हैं चाहे हर 5 साल बाद पता चले कि सरकार उम्मीदों पर पूरी नहीं उतरी. सरकार चलाने वालों के वादे असल में पंडेपुजारियों की तरह होते हैं कि हमें दान दो, सुख मिलेगा. हमें वोट दो, पैसा बरसेगा. अब के तो जैसे हम लोगों ने पंडेपुजारियों को ही संसद में चुन कर भेजा है.

यह तब पक्का हो गया जब संसद सदस्यों ने लोकसभा में शपथ ली. भाजपा सांसद कभी गुरुओं का नाम लेते, कभी ‘भारत माता की जय’ का नारा बोलते, तो कभी ‘वंदे मातरम’ और ‘जय श्रीराम’ एकसुर में चिल्लाते रहे. यह सीन एक धीरगंभीर लोकसभा का नहीं, एक प्रवचन सुनने के लिए जमा हुई भीड़ का सा लगने लगा था.

भाजपा की यह जीत धर्म के दुकानदारों, धर्म की देन जातिवाद के रखवालों, हिंदू राष्ट्र की सपनीली जिंदगी की उम्मीदें लगाए थोड़े से लोगों की अगुआई वाली पार्टी के अंधे समर्थकों को चाहे अच्छी लगे, पर यह देश में एक गहरी खाई खोद रही हो, तो पता नहीं. जिन्हें हिंदू धर्मग्रंथों का पता है वे तो जानते हैं कि हम किस कंकड़ भरे रास्ते पर चल रहे हैं जहां झंडा उठाने वाले और जयजयकार करने वाले तो हैं, पर काम करने वाले कम हैं. ज्यादातर धर्मग्रंथ, हर धर्म के, चमत्कारों की झूठी कहानियों से भरे हैं. ये कहानियां सुनने में अच्छी लगती हैं पर जब इन को जीवन पर थोपा जाता है तो सिर्फ भेदभाव, डर, हिंसा, लूट, बलात्कार मिलता है. सदियों से दुनियाभर में अगर लोगों को सताया गया है तो धर्म के नाम पर बहुत ज्यादा यह राजा की अपनी तानाशाही की वजह से बहुत कम था.

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पिछले 65 सालों में कांग्रेस का राज भी धर्म का राज था पर ऐसा जिस में हर धर्म को छूट थी कि अपने लोगों को मूर्ख बना कर लूटो. अब यह छूट एक धर्म केवल अपने लिए रखना चाह रहा है और संसद के पहले 2 दिनों में ही यह बात साफ हो रही थी.

दुनिया के सारे संविधानों की तरह हमारा संविधान भी धर्म का हक देता है पर सभी जगह संविधान बनाने वाले भूल गए हैं कि धर्म का दुश्मन नंबर एक जनता का ही बनाया गया संविधान है. यह तो पिछले 300 सालों की पढ़ाई व नई सोच का कमाल है कि दुनिया के लगभग हर देश में एक जनप्रतिनिधि सभा द्वारा बनाया गया संविधान धर्म के भगवान के दिए कहलाए जाने वाले सामाजिक कानून के ऊपर छा गया है. अब भारत में कम से कम यह कोशिश की जा रही है कि हजारों साल पुराना धर्म का आदेश नए संविधान के ऊपर मढ़ दिया जाए. सांसदों का शपथ लेने का पहला काम तो यही दर्शाता है.

उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी अपने वादों को याद रखेगी जो विकास और विश्वास के हैं न कि उन नारों के जो संसद में सुनाई दिए गए.

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जातिवादी सोच का नतीजा है सपा बसपा की हार

लेखक- बापू राऊत

लगता था कि यह गठबंधन भारतीय जनता पार्टी को हरा देगा. इस के पीछे की कहानी भी सटीक और गणनात्मक थी. वह थी गोरखपुर और फूलपुर में हुए लोकसभा के उपचुनावों में इस गठबंधन के उम्मीदवारों की जीत.

ये दोनों जगहें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के गढ़ के तौर पर जानी जाती थीं. गठबंधन के जमीनी, सामाजिक और जातीय आंकड़ों का पलड़ा भाजपा से कहीं ज्यादा भारी था लेकिन लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपाबसपा गठबंधन के जीतने की समाजशास्त्रियों व चुनावी पंडितों की सोच जमीन पर ही रह गई.

आंकड़ों की जांचपड़ताल से पता चलता है कि कांग्रेस से गठबंधन न होने से सपाबसपा को 10 सीटों पर नुकसान हुआ. भाजपा का वोट फीसदी साल 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 42.3 फीसदी से बढ़ कर 50.7 फीसदी हुआ और उसे 62 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि सपाबसपा का सामूहिक प्रदर्शन खराब रहा.

साल 2019 में सपाबसपा ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, उन में सपा का वोट शेयर 38.4 फीसदी और बसपा का 40.8 फीसदी था जो कुल वोट शेयर 39.6 फीसदी है.

10 सीटों के साथ बसपा का स्ट्राइक रेट 26.3 फीसदी है, जबकि 5 सीटों के साथ सपा का स्ट्राइक रेट 13.5 फीसदी है. इस से साफ होता है कि समाजवादी पार्टी के वोटरों ने गठबंधन का साथ नहीं निभाया.

चुनाव से पहले जैसे ही सपाबसपा का गठबंधन घोषित हुआ था, वैसे ही भाजपा ने छोटी जातियों पर डोरे डालने शुरू कर दिए थे. उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग में 79 उपजातियां हैं. भाजपा ने यादव जातियों को छोड़ कर कुर्मी (4.5 फीसदी), लोध (2.1 फीसदी), निषाद (2.4 फीसदी), गुर्जर (2 फीसदी), तेली (2 फीसदी), कुम्हार (2 फीसदी), नाई

(1.5 फीसदी), सैनी (1.5 फीसदी), कहार (1.5 फीसदी), काछी (1.5 फीसदी) को सत्ता में भागीदारी के सपने दिखाए. नतीजतन, इन पिछड़ों के भाजपा को 26 से 27 फीसदी वोट मिले. उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों का वोट शेयर 22 से 23 फीसदी है. अनुसूचित जातियों में 65 उपजातियां हैं. यहां पर भी भाजपा ने जाटव को छोड़ कर गैरजाटव पासी (3.2 फीसदी), खटीक (1 फीसदी), धोबी (1.4 फीसदी), कोरी (1.3 फीसदी), बाल्मीकि (1 फीसदी) समुदाय को साथ लिया.

इन जातियों के 9 से 10 फीसदी वोट भाजपा को गए. इस तरह अनुसूचित जाति और पिछड़ों के कुल 37 फीसदी वोट भाजपा को मिले.

ऐसा क्या हुआ कि सपा केवल 5 सीटों और बसपा महज 10 सीटों तक ही सिमट कर रह गईं? 78 फीसदी वाला यह गठबंधन आखिर क्यों हारा? बहुजनवाद की सोच क्यों नहीं चली?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कह दिया, कि अंकगणित की जगह कैमिस्ट्री ने काम किया. सच में, क्या मोदीजी की जीत कैमिस्ट्री से हुई है या गठबंधन की हार जातिवादी सोच से?

इस कैमिस्ट्री की वजह कुछ इस तरह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह मंजे हुए रणनीतिकार हैं. साम, दाम, दंड, भेद, लालच और भावुकता में वे माहिर हैं.

नरेंद्र मोदी की नीति को विरोधी पार्टियां समझ नहीं सकीं. वे अपने गणितीय आंकड़ों में ही मशगूल रहीं. मोदीशाह की जोड़ी ने चुनावी प्रचार में धर्म, हिंदुत्व और मंदिर की राजनीति की. अनुसूचित जाति का हिस्सा रहे वाराणसी के संत रैदासजी के मंदिर में लंगर के लिए नरेंद्र मोदी बैठ गए थे. उन्होंने ‘समरसता भोज’ नाम से अनुसूचित जाति व पिछड़ों के घर भोज के लिए अपने नेताओं को कहा था.

मोदी भले ही दोषियों पर कार्यवाही न करें, लेकिन दलितों की हत्या पर भावुक हो कर रो देते हैं. वे मुसलिमों की लिंचिंग पर चुप रहते हैं. यह हिंदुओं के लिए एक सीधा मैसेज होता?है. वे खुद को गरीब बताते हैं. उन्होंने कुंभ मेले में सफाई मुलाजिमों के पैर धो कर बाल्मीकि समाज को अपनेपन का मैसेज दे दिया.

अमित शाह ने बहराइच में राजभर जाति के राजा सोहेलदेव की मूर्ति का अनावरण किया. उन्होंने सोहेलदेव को हिंदू रक्षक कह कर सोमनाथ मंदिर तोड़ने आए मुसलिम शासकों को हराने का दावा किया. यह कह कर अमित शाह ने पिछड़ों के वोट बैंक को गोलबंद करने का काम किया.

भाजपा ने गैरयादव समुदाय को समाजवादी पार्टी से और गैरजाटव समुदाय को बहुजन समाज पार्टी से तोड़ने की रणनीति बनाई.

भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य द्वारा अनुसूचित जाति और पिछड़ों के 150 सम्मेलन कराए. चुनाव के समय लंदन में नीरव मोदी को अरैस्ट किया गया. भाजपा ने इस का भी फायदा उठाया. बालाकोट में हुई सैनिकी कार्यवाही को हिंदू राष्ट्रवाद से जोड़ा. इन सारे मुद्दों ने नरेंद्र मोदी को जीत दिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी.

भाजपा की जीत में हमेशा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण संघ और दुर्गा वाहिनी जैसे संगठनों का हाथ रहा है. इन संगठनों के कार्यकर्ता कैडर बेस होते हैं और जिस का कैडर मजबूत होता है, उस पार्टी को चुनावों में हराना मुश्किल है. यह भविष्य में भाजपा विरोधियों के लिए बड़ी चुनौती है.

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में कोई कैडर बेस कार्यकर्ता और सामाजिक संगठन नहीं है. समय आने पर गांधी परिवार को छोड़ सभी कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं क्योंकि कांग्रेसी नेताओं के लिए विचारधारा नहीं, बल्कि सत्ता अहम होती है.

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ विभिन्न सामाजिक संस्थानों का कैडर बनाया था. वे फकीर के तौर पर थे, इसीलिए बहुजन समाज उन की छाया बन गया था, लेकिन मायावती द्वारा बसपा को संभालते ही कैडर को खत्म किया गया. राज्यों में जनाधार वाले नेताओं को पदों से हटा दिया गया.

मायावती पर पिछड़ी जाति के नेताओं की अनदेखी करने और ऊंची जाति को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है. केवल रिजर्व सीटों पर दलितों को टिकट दिया जाता है. बसपा में भाईभतीजावाद का आरोप अकसर लगता रहा है. इन सब का असर चुनावी नतीजों पर होना मुमकिन क्यों नहीं है?

मायावती द्वारा खुद को प्रधानमंत्री पद की दावेदार घोषित करना भी इस गठबंधन की हार की वजह बन गया.

भारत की जातिवादी सोच इतनी मजबूत है कि वह आसानी से किसी भी दलित को प्रधानमंत्री बनने नहीं देगी. मायावती प्रधानमंत्री न बनें, इसीलिए यादवों और गैरयादवों ने भाजपा को वोट दिया. इस के साफ संकेत मिलते हैं. संघीय संस्थाओं ने इस का प्रचार भी किया. मायावती के प्रधानमंत्री बनने के डर से यादवों ने समाजवादी पार्टी को भी वोट नहीं दिए.

यही फर्क है अमेरिका और भारत की जनता में. वहां भी जनता बराक ओबामा को अपना राष्ट्रपति बना सकती?है, लेकिन भारत की जनता आज भी ऊंचनीच के दलदल में धंसी हुई

है. भारत की पुरानी जातिवादी सामाजिक संरचना आज भी टस से मस नहीं हुई  है. आने वाले समय में वह और ज्यादा मजबूत बनेगी.

आज भारत का भविष्य अंधेरों से टकरा रहा है. पता नहीं, उजालों के जलते दीए कब बंद कर दिए जाएंगे.

मोतीलाल वोरा बनाम रणछोड़दास गांधी!

छत्तीसगढ़ के निवासी राज्यसभा सदस्य 91 वर्षीय मोतीलाल वोरा को राहुल गांधी के अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफे के पश्चात अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है. इस राजनीतिक घटनाक्रम के पश्चात जहां उनके गृह राज्य छत्तीसगढ़ में मिठाइयां बटी. वहीं गृह जिला दुर्ग में समर्थकों ने मिठाई बांटी और फटाखे फोड़ कर खुशी जाहिर की . नि:संदेह छत्तीसगढ़ का सम्मान मोतीलाल वोरा ने बढ़ा दिया साथ ही यह संदेश भी की राजनीति जैसे उठापटक के क्षेत्र में निष्ठा, समर्पण भी कोई चीज होती है और कभी-कभी यह आत्मासमर्पण आपको शिखर तक पहुंचा सकता है और यही हुआ भी.

मोतीलाल वोरा कांग्रेस के लंबे समय से कोषाध्यक्ष रहे हैं. सोनिया गांधी के प्रति उनकी निष्ठा असंदिग्ध है. यही कारण है कि नेशनल हेराल्ड मामले में भी वोरा सोनिया गांधी के साथ आरोपी हैं.

17 वी लोकसभा में कांग्रेस जिस तरह बुरी तरह चारों खाने चित्त हो गई उससे कांग्रेस भीतर तक हिल गई है.अध्यक्ष के नाते स्वंयम राहुल गांधी ने यह कल्पना नहीं की थी कि आक्रमक तेवर, राफेल मुद्दा, चौकीदार चोर है के प्रभावी नारों के पश्चात, गांव से लेकर शहर तक नरेंद्र मोदी के प्रति नाराजगी के बावजूद ‘कांग्रेस’ लुढ़क जाएगी. और नरेंद्र मोदी पुनः भारी बहुमत से संसद पहुंच जाएंगे,यही कारण है कि राहुल गांधी 25 मई 2019 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उखड़ गए और कहा मैं इस्तीफा देता हूं .

चार सप्ताह, हो गए पांच !

राहुल गांधी ने 25 मई को इस्तीफा की घोषणा कर कहा था की आप अपना नया ‘अध्यक्ष’ चुन लीजिए. मजे की बात यह की फिर एक माह यानी चार सप्ताह का समय एक तरह से अल्टीमेटम अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को उन्होंने दिया और कहा इस वफ्के के भीतर, आप  अपना नया अध्यक्ष ढूंढ ले. मगर कांग्रेस सोती रही . कांग्रेस यह मानने को तैयार ही नहीं कि राहुल गांधी त्यागपत्र दे चुके हैं या दे देंगे या फिर हम आगे की सुधि लें .

…मोह में फंसी कांग्रेस को राहुल और प्रियंका गांधी के अलावा कुछ नजर ही नहीं आ रहा . शायद इसलिए कहावत बनी है सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही दिखाई देता है .

चार सप्ताह तक कांग्रेस सुषुप्तावस्था में रही. इस दरम्यान राहुल सदैव की भांति अपना काम करते रहे और एंग्री यंग मैन की भांति बीच बीच में गुर्राते रहे . अशोक गहलोत से लेकर कमलनाथ तक पर तंज कसा . छत्तीसगढ़ में मोहन मरकाम को अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. मगर सभी खामोश

टकटकी लगाकर उनकी ओर विनम्रता से देखते रहे . ऐसा करते करते 5 सप्ताह बीत गए कांग्रेसी मुख्यमंत्री, नेता, कार्यकर्ता अपील करते रहे मगर राहुल गांधी को शायद नहीं पसीजना था सो नहीं पसीजे. या फिर कहें राजनीतिक अपरिपक्वता के चलते गलतियां करते चले जा रहे हैं.

बुजुर्गवार ! मोतीलाल वोरा क्या करेंगे !

सोनिया गांधी राहुल गांधी ने एक माह तक चिंतन किया . अशोक गहलोत, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट से लेकर सुशील कुमार शिंदे आदि नामों पर बारंबार चिंतन किया कि आखिर किस के कंधे पर ‘कांग्रेस’ की तोप को रखा जाए कौन है ऐसा समर्पित, निष्ठावान. सभी पर तीक्ष्ण दृष्टि डाली गई. मगर कहते हैं न दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है यहां भी यही कुछ घटित हुआ. देश को मालूम है की सोनिया गांधी ने प्रणव मुखर्जी पर बहुत भरोसा किया उन्हें बड़े बड़े पद दिए  द्वितीय नंबर पर सदैव रहे मगर सिर्फ नहीं बनाया तो प्रधानमंत्री. आज प्रणव मुखर्जी नरेंद्र मोदी की गोद में जाकर बैठ गए हैं .उनकी प्रशंसा कर रहे हैं आर एस एस के बुलावे पर दौड़े चले जाते हैं .यह घटनाक्रम सोनिया राहुल गांधी को सालता है. और सचेत भी करता है. इसलिए प्रणव मुखर्जी सृदृश्य दूसरी गलती गांधी परिवार अब नहीं करना चाहता.

यही कारण है कि ठोक बजाकर कांग्रेस पार्टी के सबसे बुजुर्गवार, समर्पित शख्स मोतीलाल वोरा को राहुल गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया है.अब मोतीलाल वोरा के कंधे पर रखकर राहुल गांधी बंदूक चलाएंगे यह तय है . सवाल है आगे क्या चुनाव कराया जाएगा या फिर कार्यसमिति एक मतेन किसी शख्स को ‘अध्यक्ष’ बनाएगी.

क्या राहुल “कांग्रेस” का देश का हित चाहते हैं ?

संपूर्ण घटनाक्रम का एक ही प्रति प्रश्न है क्या राहुल गांधी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 86 वे अध्यक्ष के रूप में जाते-जाते भी कांग्रेस का हित चाहते हैं या फिर कोई अदृश्य हित है जो गांधी परिवार से जुड़ा हुआ है.

लोकसभा समर मैं पूरी तरह हार के बाद राहुल गांधी और कांग्रेस की आंखे खुल गई है.यह परिवार अब यह समझ और मान रहा  है कि नरेंद्र मोदी   टीम के सामने उनकी एक भी नहीं चलने वाली और कांग्रेस पार्टी दिनोंदिन और मरणासन्न होने वाली है.

नरेंद्र मोदी की नीतियां, हाव भाव, देश के समक्ष विराट स्वरूप ग्रहण कर चुका है . ऐसा मानकर राहुल गांधी परिवार के कदम ठिठक गए हैं .ऐसे में उनके पास तुरुप का पत्ता सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी में निर्वाचन का है चुनाव का है. लोकतंत्र में लोकतांत्रिक पद्धति ही ऊर्जा का स्रोत होती है मगर कांग्रेस सिर्फ दरी उठाने वालों की पार्टी बन कर रह गई है योग्य सुयोग्य कार्यकर्ता मन मार कर दरी उठाए जा रहे हैं. अब ऐसे हालात में गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी का हित इसी में है कि चुनाव का ऐलान कर दिया जाता निष्पक्ष चुनाव से नए चेहरे स्वमेव सामने आ जाते.अभी तो अपनी ढपली अपना राग वाले हालात ही बने हुए हैं.

वोरा है या बोरा है

मोतीलाल वोरा नि:संदेह एक वरिष्ठतम कांग्रेस नेता है. 91वर्ष की उम्र में भी सक्रिय हैं. मगर सवाल यह है कि क्या 91 वर्ष के शख्स के पास नवीन ऊर्जा, दृष्टि हो सकती है क्या वह अंतरिम अध्यक्ष रहते हुए ऐसा कोई कमाल कर सकते हैं की कांग्रेस आज मरणासन्न खटिया पर पड़ी कराह रही है के शरीर में नवीन रक्त का संचार कर दे.

साफ-साफ कहा जा सकता है यह राहुल गांधी की एक और बहुत बड़ी चूक है.बुजुर्गवार वोरा जब अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री राजीव गांधी की कृपा दृष्टि से बनाए गए थे तब प्रदेश में उनके नाम चुटकुला प्रचलित था कि “आप वोरा हैं या बोरा है !”  बोरा अर्थात बारदाना जिसमें गेहूं, चावल, शक्कर डालकर एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया जाता है.

मूलतः धौलपुर राजस्थान के निवासी मोतीलाल वोरा छत्तीसगढ़ के दुर्ग के रहवासी हैं सन 72 में पहली दफे विधायक बने अर्जुन सिंह कैबिनेट में शिक्षा मंत्री फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, राज्यपाल रहते हुए आप पार्टी के कोषाध्यक्ष भी रहे. कांग्रेस समय के साथ चलने में असमर्थ हो चुकी है. बारंबार गलतियां कर रही है.जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिल रहा है. यह तय है कि राहुल गांधी राजनीति का मैदान छोड़कर नहीं जा रहे हैं जब आप को राजनीति करनी है, भारत की सेवा करनी है तो यह कौन सा तरीका है भाई… पलायन का.

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