कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आम और खास लोग औक्सीजन की कमी के चलते यों मर रहे थे जैसे पानी के बिना मछलियां तड़पतड़प कर दम तोड़ देती हैं. दिल दहला देने वाले नजारे देशभर के लोग शायद ही कभी भूल पाएं कि जेब में पैसा तो था लेकिन सांसें यानी औक्सीजन नहीं मिल रही थी, किसी भी कीमत पर नहीं मिल रही थी. इस से हृदयविदारक दृश्य कोई और हो भी नहीं सकता कि आगरा के एक अस्पताल के बाहर एक पत्नी औक्सीजन की कमी से मरते पति को अपनी सांस के जरिए औक्सीजन देने की कोशिश करती रही लेकिन उसे बचा न पाई.

वहीं, इस वाकए ने भी लोगों की आंखों में आंसू ला दिए कि अपने दोस्त को बचाने के लिए एक युवक 1,300 किलोमीटर दूर तक औक्सीजन सिलैंडर ले गया और अपने बचपन के दोस्त की जान बचा ली. देवेंद्र शर्मा और राजन सक्सेना दोनों झारखंड के बोकारो के रहने वाले हैं, पक्के दोस्त हैं और शहर के सैंट्रल स्कूल में 12वीं तक साथ पढ़े हैं. आगे की पढ़ाई और फिर नौकरी के लिए राजन को गाजियाबाद जाना पड़ा. देवेंद्र भी वहीं उन के साथ एक साल रहे लेकिन पेरैंट्स के निधन के बाद उन्हें वापस बोकारो जाना पड़ा जहां वे एक बीमा कंपनी में नौकरी करने लगे.

कोरोना ने राजन को बख्शा नहीं, एक वक्त ऐसा भी आया कि उन्हें भी औक्सीजन लगाना पड़ा. अस्पतालों की बदहाली और बैड की मारामारी के चलते घबराए राजन के घरवालों ने घर पर ही उन्हें औक्सीजन दी. जैसेतैसे जो एक सिलैंडर मिला था वह खत्म हो चला तो दूसरे सिलैंडर की कोशिश शुरू की लेकिन जल्द ही उन्हें सम झ आ गया कि एक बार भूसे के ढेर में गुमी सूई तो मिल सकती है लेकिन औक्सीजन सिलैंडर नहीं. सो, उन्होंने देवेंद्र को फोन किया.

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