दूसरे देशों के नागरिक दोगले हैं या नहीं, पर हम अपने दोगलेपन में माहिर हैं. हमारे नेताओं से ले कर घर के सामने सफाई करने वाले तक कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं और उन की नैतिकता, व्यावहारिकता, रिश्तेदारी, राष्ट्रीयता, भक्ति के पैमाने हर मौके पर बदल जाते हैं. सुबह 4 घंटे पूजा करने वाले घर में मांबहन की गालियां दी जाती हैं और बाहर निकलते ही हम लूट में लग जाते हैं. मंच पर सदाचार का भाषण देने वाले मंत्री कमरे में लौट कर लाखों की रिश्वत लेते हैं.

सब से बड़े दोगले तो वे प्रवचनकर्ता हैं जो सोने के सिंहासन पर बैठ कमसिन लड़कियों से पैर दबवाते सेवा व त्याग का गुणगान करते हैं और धन को माटी समान कहते हैं.

इसी गिनती में विदेशों में बसे भारतीय हैं. वे दोगलेपन के स्पष्ट नमूने हैं. उन्हें अपने देश से हजार शिकायतें हैं, पर कोई उन के देश की जरा सी आलोचना कर दे तो सिर फोड़ने की बात करने लगते हैं (फोड़ते नहीं क्योंकि इतना दम नहीं). अमेरिका में हर 7 में से 1 शख्स अमेरिका से बाहर पैदा हुआ है पर उन में भारतीय ही खास हैं जिन का पाकिस्तानी मूल के उसी देश में रहने वाले उसी देश के नागरिक को देख कर खून खौलता है.

वे अपने देश की गंदगी की भरपूर आलोचना करते हैं पर अगर उन के देश के दौरे पर हों तो भारत के उन्हीं राजनीतिबाजों की जीहुजूरी करते हैं जो उन की निगाहों में निकम्मे और भ्रष्ट हैं. हिंदू धर्म के ये ही सब से बड़े धर्मरक्षक हैं जबकि जानते हैं कि धार्मिक रीतिरिवाजों के कारण ही भारत पिछड़ा हुआ है. वर्ष 2007 से 2017 तक लगभग 8 लाख देशभक्त अपना देश भारत छोड़ कर अमेरिका जा चुके हैं और भारत की गंदगी से मुक्ति पा कर अमेरिका में सैकंड रेट रैजीडैंट बन कर खुश हैं.

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