नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के मामले में 12,000 से 20,000 करोड़ रुपए के घपले पर सरकारी पंजाब नैशनल बैंक ने सारा दोष एक सीनियर लैवल के अफसर पर डाल दिया है. उसे गिरफ्तार करा कर बैंक के डायरैक्टर व चेयरमैन बच निकले हैं. यही तो सरकारी अफसरों की खासीयत है कि वे आमतौर पर हर तरह के आरोपों से मुक्त रहते हैं. यही प्रशासकीय सेवक अपने को देश का आयरनफ्रेम कहते हैं. इस फ्रेम का हर गर्डर दूसरे पर निर्भर रहता है और दूसरे की सुरक्षा करता है. प्राइवेट बैंकों को यह सुविधा नहीं है और इसीलिए जैसे ही पता चला कि वीडियोकोन कंपनी को 40,000 करोड़ रुपए के कर्ज में जो 3,250 करोड़ रुपए आईसीआईसीआई बैंक ने दिए थे उस में बैंक की चेयरपर्सन चंदा कोचर का अहम रोल था. इन्हीं चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी न्यू पावर रिन्यूएबल्स को वीडियोकोन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूर्त ने मोटा कर्ज दिया था.

केंद्रीय जांच ब्यूरो इस आरोप की जांच कर रहा है और चंदा कोचर से पूछताछ शुरू हो गई है. ऐसी पूछताछ नीरव मोदी को कर्ज देने वाले सरकारी बैंकों के चेयरमैनों से अभी शुरू नहीं हुई है, क्योंकि वे बैंक सरकारी जो हैं. सरकार जो करती है, वह ठीक ही होता है, यह धारणा आज तक जनता में बनी हुई है. लगातार प्रचार के बल पर सरकारी अफसर यह साबित करने में सफल हो गए हैं कि इस देश में भ्रष्टाचार, लूट, बेईमानी या तो नेता करते हैं या व्यापारी. उन्होंने अफसरशाही को इस से मुक्त कर रखा है. लगभग हर कानून में बारबार नियंत्रण सरकारी अफसरों व इंस्पैक्टरों को दिया जाता है, जबकि भ्रष्टाचार की असल जड़ों में खादपानी देने का काम इन्हीं अफसरों के बनाए नियमकानून करते हैं और इन्हें लागू करने वाले यही अफसर इस का लाभ उठाते हैं.

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