नौकरियों की कमी आने वाले सालों में एक बहुत बड़ा तूफान ला सकती है. देश में नए जवानों की गिनती तो तेजी से बढ़ रही है, पर नौकरियों की किल्लत भी बढ़ रही है. सरकार पहले लोगों से टैक्स लगा कर मिले पैसे से सरकारी नौकरियां दे कर कुछ को खुश रखती थी, पर अब टैक्स से आने वाला पैसा कम होने लगा है.

रेलवे ने चाहे कहा है कि वह एक लाख नौकरियां देगी, पर यह वादा है काले धन के 15 लाख रुपए खाते में जमा करने की तरह का. रेलों का देश में जो हाल है, उस से लगता नहीं कि नई नौकरियों की गुंजाइश है. वैसे भी जो जवान नौकरियों को लिए खड़े हैं, वे ज्यादातर चाहे पढ़लिख लें, पर कुशल हरगिज नहीं हैं. ज्यादातर नकल मार कर सर्टिफिकेट लिए घूम रहे हैं.

शहरों में पहले छोटेमोटे काम मिल जाते थे, पर लगता है कि जीएसटी की मार की वजह से छोटे कारखाने व छोटे व्यापारियों का काम ठप हो जाएगा और वे जो कम कुशल लोगों को नौकरी दे सकते थे, अब नहीं दे सकेंगे. खेतों में काम के मौके कम हो रहे हैं, क्योंकि वहां टै्रक्टर और मशीनों से काम होने लगा है. फिर वह काम 12 महीनों नहीं चलता. सेना भी अपने सैनिकों को कम करने वाली है.

नए जवान लड़कों की गिनती सरकार के लिए सिर्फ आंकड़ा भर है, क्योंकि सरकार को तो गौरक्षा, संस्कृति, राष्ट्रवाद, धर्म की ज्यादा पड़ी है. सरकार का आधा ध्यान तो टैक्सों को जमा करने के नएनए तरीकों पर लगा है. वह नए धंधे तैयार करने पर सोच ही नहीं रही है.

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