शिव सेना के एक सांसद रवींद्र गायकवाड़ ने इंडियन एयरलाइंस की एक उड़ान में वही किया, जो सफेद खादीपोश नेता लोग अकसर बसों और बाजारों में करते हैं. उन्होंने बिजनेस क्लास में बैठना चाहा था, जबकि हवाईजहाज में बिजनेस क्लास ही नहीं था. इस पर वे बिफर गए और तूतूमैंमैं मारपीट पर उतर आई. उन्होंने इंडियन एयरलाइंस के एक अफसर को पकड़ कर कपड़े फाड़ डाले और चप्पल उतार कर उस की पिटाई कर डाली.

बाद में भी उन्हें कोई अफसोस नहीं हुआ. वे यह कहते रहे कि वे कोई भारतीय जनता पार्टी के सांसद थोडे़ ही हैं कि किसी से डर कर दुबक कर रहें. वे टीवी स्क्रीनों पर चमक कर आते रहे. उन के खिलाफ रिपोर्टें तो दर्ज हो गई हैं, पर सवाल उठता है कि हमारे नेता, जो जनता से हाथ जोड़ कर वोट मांगने के आदी हैं, कैसे व क्यों इस तरह बेकाबू हो जाते हैं?

आमतौर पर हिंसा हमारी नसनस में भरी होती है. बचपन से ही आम घरों में मांएं अपने बच्चों को पीटती रहती हैं. हर बच्चा अपने पिता से अपनी मां को पिटते देखता है और मां को भाईबहनों को पीटते. वह अपने भाइयों को पीटने लगता है. जिन घरों में शिक्षा कम होती है, वहां तो हर बात पर मारपीट का सहारा लिया जाता है. बड़े होने पर दोस्तों को दुश्मन बनते देखना और मारपीट पर उतरना हर गलीगांव में देखा जा सकता है. जीवन मारपीट के इर्दगिर्द ही घूमता नजर आता है.

इसी मारपीट की ताकत पर नेतागीरी मिलती है और इसी के बल पर लोग पंच, सरपंच, विधायक, सांसद बनते हैं. दूसरे पक्ष वालों को मारपीट कर चुप कराना जीवन का हिस्सा होता है. इस के बिना नेता रह ही नहीं सकता. हमारे राजाओं और जमींदारों ने ही नहीं, थानेदारों, बाबुओं दुकानदारों, महाजनों, सूदखोरों ने मारपीट को ही धंधे का हिस्सा बना रखा है.

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