दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुरी तरह खार खाए हुए हैं. मई 2014 में हुए आम चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के बाद कुछ महीनों में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें जीतने वाली पार्टी को 67 के मुकाबले 3 पर खड़ा कर दिया तो भाजपा की नाक शूर्पणखा की तरह कट गई. संविधान के लिखित प्रावधानों की आड़ में अब अरविंद केजरीवाल की सीता (सरकार) को हरने का प्रयास किया जा रहा है.

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कोई चमत्कार नहीं किया लेकिन संविधान ने भी वास्तव में दिल्ली सरकार को बहुत कम अनियंत्रित अधिकार दिए हैं. वहीं जिन अधिकारों को प्रधानमंत्री के निर्देश पर उपराज्यपाल को कभीकभार इस्तेमाल करना चाहिए था, उन्हें रोज हर काम में किया जा रहा है. हर फाइल पर उपराज्यपाल महीनों बैठे रहते हैं और फैसले पर नुक्ताचीनी करते हैं.

नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के साथ उस महापंडित की तरह व्यवहार कर रही है जो हर स्मृति, हर कुंडली, हर रिवाज को खोले बैठा है. मोदी की सरकार केजरीवाल की सरकार के हर फैसले को गलत ठहराने में लगी है, क्योंकि उस का उद्देश्य तो अरविंद केजरीवाल व उन की सरकार को हर जगह अपमानित करने का है. नरेंद्र मोदी सरकार ऐसा हर उस राज्य सरकार के साथ कर रही है जो अपने विज्ञापनों में भगवा रंग का इस्तेमाल नहीं करती और नरेंद्र मोदी का फोटो नहीं लगाती है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री उपराज्यपाल के निवास पर धरने पर बैठें, यह राजकाज की पराकाष्ठा है और खासतौर पर तब जब उन के साथ लगभग कैदियों सा व्यवहार हो रहा हो. कानूनीतौर पर राजभवन का खर्च अरविंद केजरीवाल की सरकार देती है पर उपराज्यपाल अपने संवैधानिक मालिक नरेंद्र मोदी के इशारों पर इस सरकार को परेशान करने का काम कर रहे हैं.

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