फेसबुक ने भारतीय चुनाव आयोग को भरोसा दिलाया है कि अगले चुनावों से पहले वह फेक यानी झूठी खबरों को रोकने की पूरी कोशिश करेगा. इस तरह के छद्म समाचार को फेसबुक एक खास एल्ग्रोथिम के जरिए अपनेआप रोक देगा, उन्हें फौरवर्ड नहीं होने देगा. सोशल मीडिया के दूसरे अहम माध्यम व्हाट्सऐप ने भी इसी तरह का भरोसा दिलाया है.

फेक न्यूज यानी झूठी खबरें या कहें अफवाहें दुनियाभर की चिंता का विषय बन गई हैं. विचारों की स्वतंत्रता पर हमेशा ही झूठी खबरें या झूठे तथ्य देने पर अंकुश रहा है. जो स्वतंत्रता के हामी हैं उन्होंने भी कभी दुर्भावनाभरी बातों को प्रसारित करने का समर्थन नहीं किया.

पहले छपाई की सुविधा आसानी से उपलब्ध नहीं थी. फेक न्यूज केवल अफवाहों के जरिए कानों से कानों तक पहुंचाई जा सकती थी. उस समय छपी सामग्री जिम्मेदार लोगों के हाथों में रहती थी. हर कोई प्रैस या छापाखाना स्थापित कर फेक न्यूज वाला अपना अखबार नहीं निकाल सकता था.

अब तो घर में बैठ कर ही पटियाला या प्लानीपट्टम में हुई मारपीट का वीडियो बनाया जा सकता है. लेटिन अमेरिकी फिल्मों के दृश्यों को कई बार आसानी से मार्फिंग और फोटोशौप के जरिए उन्हें भारतीय पृष्ठभूमि में बदल कर मुसलिमों द्वारा हिंदुओं पर किए जा रहे अत्याचार के रूप में दर्शाया जा सकता है.

जो लोग सदियों से पौराणिक झूठी खबरों पर विश्वास कर रहे हैं, जिन में प्रधानमंत्री से ले कर अधिकांश मंत्री शामिल हैं, वे इस तरह की फेक न्यूज पर विश्वास कर लेते हैं. तर्क शब्द तो उन की भाषा में है ही नहीं. वे तो विश्वास करते हैं कि मेढकमेढकी की शादी करा कर बारिश कराई जा सकती है या सर्जरी से हाथी का सिर आदमी पर लगाया जा सकता है और फिर उसे चूहे पर सवारी कराई जा सकती है.

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