नांदेड़ महाराष्ट्र का एक छोटा शहर है, पर बहुत छोटा भी नहीं. यहां रोजाना हवाई सेवा चलती है, क्योंकि 10वें सिख गुरु गोबिंद सिंह का 1708 में यहीं देहांत हुआ था और उन्होंने ही सिख पंथ के नेता की जगह गुरु ग्रंथ को दी थी. 6 लाख की आबादी वाले इस शहर का नाम तब चमका, जब यहां 11 अक्तूबर, 2017 को हुए कारपोरेशन के चुनाव में इतिहास रच डाला.

उम्मीद थी कि यहां भारतीय जनता पार्टी ही जीतेगी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस डेरा जमाए हुए थे और 2012 के चुनाव में 41 सीटें जीत कर राज कर रही कांग्रेस को हराने के लिए कमर कसे हुए थे.

नतीजे चौंकाने वाले निकले. 81 सीटों में से 73 कांग्रेस को मिलीं, भारतीय जनता पार्टी को 6, शिव सेना को एक व शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को बड़ा अंडा मिला. कांग्रेस के अशोक चव्हाण ने राहुल गांधी को तोहफा दे दिया कि भाजपा की हर जगह जीत की कोई गारंटी नहीं.

यह ठीक है इस शहर में मुसलिम व दलित वोटर ज्यादा हैं और 2014 में भी नरेंद्र मोदी की लहर में यह सीट कांग्रेस के पास रही थी, पर उम्मीद थी कि जिस तरह नरेंद्र मोदी का दबदबा बढ़ रहा था उस में कांग्रेस की दाल सिर्फ दलदल बन कर रह जाएगी.

नांदेड़ जीत कर कांग्रेस को नया जोश मिला है कि मेहनत की जाए तो सरकार को पटकनी दी जा सकती है. जरूरत है एक ठीकठाक लीडर की और बड़ी पार्टी की लड़ने की मंशा की.

आज जनता बुरी तरह नोटबंदी, टैक्सबंदी, मांसबंदी, मुंहबंदी, सोचबंदी, शौचबंदी, आधारबंदी से कराह रही है. नारे चाहे यह मुक्त भारत, वह मुक्त भारत के लग रहे हों, देश में असल लहर तो मुक्ति मुक्त भारत की चलाई जा रही है, जिस में मुट्ठीभर दरबारी और भगवाधारी पूरे देश को मुसलिम देशों की तरह धर्म के नाम पर चलाने की कोशिश में लगे हैं. नांदेड़ ने जताया है कि यह कोशिश उलटवार कर सकती है और मुक्ति दिलाने वाले को ताकत से मुक्त कर सकती है.

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