हम अपने देश की महान संस्कृति का राग आलापते थकते नहीं हैं. हम छाती पीटते रहते हैं कि पश्चिम की गलीसड़ी, अनैतिक संस्कृति से भारतीय पुरातन संस्कृति की महानता नष्ट हो रही है. पर एक ही दिन, 7 सितंबर का समाचारपत्र देखिए तो हमारी संस्कृति की पोल खुल जाती है.

मुख्य समाचार, संस्कृति के दावेदारों गौरक्षकों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश है जिस में अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे हर जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की नियुक्ति करें जो गौरक्षकों के आपराधिक, हिंसात्मक कृत्यों पर नजर रखें जो गौ संस्कृति के नाम पर आम लोगों को पीटने, मारने व वाहन जलाने का तथाकथित सांस्कृतिक अधिकार रखते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने तो केंद्र सरकार से यह तक पूछा है कि उन (संस्कृति के रक्षक) राज्यों का क्या किया जा सकता है जो आदेश न मानें. शायद सुप्रीम कोर्ट को एहसास है कि संस्कृति रक्षकों को सुप्रीम कोर्ट असांस्कृतिक लगता है. सड़क पर गौमाता को ले जाने वालों को मार डालना कौन सी व कैसी संस्कृति है.

दूसरा समाचार है कि हमारी संस्कृति ऐसी है कि सरकार को चिंता हो रही है कि जिस रेल के डब्बों की छतों पर सोलर पैनल लगाए गए हैं उन्हें रास्ते में चोरी न कर लिया जाए. शायद, मारनेपीटने के साथ चोरी करना भी हमारी संस्कृति में शामिल है. यह ट्रेन दिल्ली से चल कर हरियाणा के फारूख नगर तक चलेगी पर रेल अधिकारी महान संस्कृति की निशानी से चिंतित हैं. जिस देश में सरकार की सार्वजनिक संपत्ति सुरक्षित न हो, वह संस्कृति का गुणगान कैसे कर सकता है?

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