जीएसटी, कालेधन को रोकने में असफलता, नोटबंदी, रुपए की गिरती कीमत, बढ़ते दामों, किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं, बढ़ती बेरोजगारी आदि से ध्यान भटकाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने मंदिरमसजिद मामला फिर से उछाल दिया है. 9 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों लोग जमा हुए, मानो यहीं देश की समस्याओं का हल हो जाएगा.

पर इस भीड़ में थे कौन? ज्यादातर खाली बैठेठाले लफंगे, निकम्मे जिन्हें साधुसंत कहा जाता है जो मंदिरों, अंधविश्वासों, झूठी कहानियों, मनगढ़ंत उपचारों, तावीजों, अंगूठियों, यज्ञों, हवनों, रातदिन की पूजाओं, आरतियों जैसे ढकोसलों के बलबूते पागल मेहनतकश लोगों को रातदिन लूटने में लगे रहते हैं. उन के साथ उन के अंधभक्त थे जिन्होंने तर्क को ताक पर रख रखा है.

मंदिर का मामला जिंदा रखा जा रहा है, क्योंकि इसी बहाने सारे देश में लगातार चंदा जमा हो रहा है. मुगलों के 700 सालों के राज का बदला लेने के नाम पर हिंदुओं को उकसाया जा रहा है. पर याद रखिए इन हिंदुओं में पहले सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य थे. अब इन में शूद्रों के संपन्न वर्ग, जिन के पास भूमिसुधारों के कारण जमीनें आ गई हैं, भी शामिल कर लिए गए हैं. कुछ दलित पंडे भी पैदा कर दिए गए हैं, जो सवर्णों की बराबरी पाने के लालच में ‘मंदिर वहीं बनाएंगे, आज ही बनाएंगे’ के नारे भी लगाने लगे हैं.

इस भीड़ में कोई हनुमान बना था, कोई शिव, कोई मंदिर का फोटो लिए घूम रहा था तो कोई कपड़े उतार तपस्वी होने का स्वांग रच रहा था. क्या इन के बलबूते हिंदुओं की इज्जत लौटेगी? क्या इन की बदौलत और मंदिर बना कर, हिंदू उस कलंक को धो पाएंगे जो उन के माथे पर लगा है कि उन्हें विदेशियों ने हर बार मुट्ठीभर लड़ाकों के बलबूते हराया है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...