बौलीवुड और दक्षिण भारत की फिल्में अब सिनेमाघरों के अलावा डिजिटल प्लेटफार्म पर भी खूब रिलीज की जा रही हैं. यह बदलाव भोजपुरी सिनेमा में कब तक आएगा?

भोजपुरी का नया दौर साल 2000 के बाद शुरू हुआ, जबकि बौलीवुड और दक्षिण का सिनेमा पहले से मजबूत रहा है, इसलिए दूसरी इंडस्ट्री ने नई चीजों को जल्दी स्वीकार किया. भोजपुरी सिनेमा भी धीरेधीरे बदलाव की तरफ बढ़ रहा है. वैसे, अब भोजपुरी फिल्में यूट्यूब पर खूब रिलीज की जाने लगी हैं.

ज्यादातर फिल्मों की कहानियां दूसरे की लिखी होती हैं, फिर उस कहानी को अपने मुताबिक ढाल कर एक डायरैक्टर के तौर पर क्याक्या तैयारियां करनी पड़ती हैं?

दूसरे की लिखी कहानियों पर एक डायरैक्टर के तौर पर डायरैक्शन के लिए खुद को तैयार करने के लिए सीन में खुद को ढालना पड़ता है. जो बाद में ऐक्टरों को उन्हीं हालात में ऐक्टिंग करने लिए तैयार कर लेता है.

जब ऐक्टर एक ही सीन के लिए कई बार रीटेक करते हैं, तो क्या आप को गुस्सा आता है?

सीन में कई बार रीटेक होने का मतलब यह नहीं है कि सामने वाले को ऐक्टिंग नहीं आती है, बल्कि वह जितना बेहतर सीन दे पाए, उस के लिए रीटेक करवाना पड़ता है. ऐसे में गुस्सा आने का सवाल ही नहीं है.

कुछ साल पहले तक भोजपुरी सिनेमा में गदराए बदन वाली हीरोइनों को ज्यादा पसंद किया जाता था, पर आज स्लिम और फिट हीरोइनें फिल्मों में ज्यादा नजर आती हैं. यह बदलाव कैसे आया?

दर्शकों का मिजाज समय के हिसाब से बदलता रहता है. भोजपुरी का दर्शक भी अब दूसरी भाषा की फिल्मों की हीरोइनों से भोजपुरी हीरोइनों की तुलना करने लगा है. ऐसे में वह भी स्लिम और फिट हीरोइनों को फिल्मों में देखना चाहता है.

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