लेखक- बृहस्पति कुमार पांडेय

22 फरवरी, 1963 में पटना के वीणा सिनेमाघर में आई इस फिल्म को देखने के लिए बैलगाडि़यों की लंबी लाइनें लगनी शुरू हो गई थीं.

ब्लैक ऐंड ह्वाइट प्रिंट पर आई इस फिल्म को कुमकुम, असीम कुमार, नजीर हुसैन जैसे कलाकारों ने हिट करने में बड़ी मदद की थी. इस फिल्म की कामयाबी की एक वजह इस के गीतों की भी रही थी, क्योंकि इस फिल्म को शैलेंद्र जैसे संगीतकार ने अपनी धुनों से सजाया था, जबकि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर जैसे गायकों ने अपनी आवाज दी थी.

फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ के बाद आई एक और फिल्म ‘नदिया के पार’ भी दर्शकों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब रही थी, लेकिन उस के बाद भोजपुरी में आई फिल्में दर्शकों पर ज्यादातर अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रही थीं.

इस के बाद तकरीबन 20 साल तक भोजपुरी फिल्म जगत पर संकट के बादल छाए रहे थे क्योंकि भोजपुरी फिल्म जगत में फाइनैंसर पैसा लगाने से कतरा रहे थे. इस के चलते भोजपुरी फिल्मों की कहानी के मुताबिक महंगे फिल्मी सैट और टैक्नोलौजी वाले कैमरों का इस्तेमाल तक नहीं हो पाता था. इस से मारधाड़ और ऐक्शन वाले सीन में वह असलियत नहीं आ पाती थी जो दूसरी फिल्म इंडस्ट्री की फिल्मों में नजर आती थी.

लेकिन साल 2004 में भोजपुरी गायक मनोज तिवारी की 30 लाख रुपए के बजट की फिल्म ‘ससुरा बड़ा पइसावाला’ में अव्वल टैक्नोलौजी का इस्तेमाल होने के चलते इस ने 20 करोड़ रुपए की कमाई की थी.

इसी फिल्म से भोजपुरी फिल्मों के सुनहरे समय की शुरुआत हुई. इस के बाद आई भोजपुरी फिल्मों ने टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर बौलीवुड की फिल्मों से टक्कर लेना शुरू कर दिया था.

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