लोकतंत्र से गैंगरेप

हाथरस में गैंगरेप की घटना को प्रदेश सरकार के हठ ने देश के सामने ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ सा बना दिया. लड़की की चिता की राख भले ही बुझ गई हो, पर इस से भड़का विरोध ठंडा नहीं पड़ेगा. कोर्ट से ले कर बिहार के चुनाव तक तमाम सवाल भाजपा को सपने में भी डराते रहेंगे.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ‘ठाकुरवाद’ को ले कर पक्षपात करने का आरोप गहरा होता चला जा रहा है. कुलदीप सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद के बाद हाथरस कांड में यह साबित हो गया है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठे रहना भाजपा के लिए नुकसानदायक होगा.

उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक एससी समाज की लड़की के साथ दंबगों द्वारा बाजरे के खेत में सुबहसुबह किया गया गैंगरेप भले की समाज की आंखों के सामने नहीं हुआ, पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने सब की आंखों के सामने लड़की की लाश को जबरन जला कर ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ किया है.

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गैंगरेप की शिकार हाथरस की रहने वाली 20 साल की उस लड़की को गंभीर हालत में 28 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती कराया गया था जहां अगले दिन उस की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश पुलिस ने मौत के इस राज को दफन करने के लिए लड़की की लाश उस के घर वालों को नहीं सौंपने का फैसला किया. पुलिस ने सफदरजंग अस्पताल से ही लड़की की लाश को अपने कब्जे में ले लिया. घर वालों को इस बात का डर पहले से हो रहा था. इस वजह से उन्होंने मीडिया में यह शिकायत करनी शुरू कर दी थी कि उत्तर पुलिस इंसाफ नहीं कर रही है.

उस लड़की के साथ 14 सितंबर को गैंगरेप से ले कर 28 सितंबर तक अस्पताल में जिस तरह से उस के साथ लापरवाही की जा रही थी, उस से लड़की के परिवार वालों को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर भरोसा नहीं रह गया था. यही वजह थी कि वे हाथरस से 200 किलोमीटर दूर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में लड़की को इलाज के लिए ले कर गए. उन को पता था कि अगर हाथरस से 400 किलोमीटर दूर लखनऊ जाएंगे तो वहां उन के हालात को किसी के सामने नहीं आने दिया जाएगा.

दिल्ली में मीडिया की चर्चा में आने के बाद भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूरी तानाशाही की. लाश को ले कर एंबुलैंस सीधे लड़की के गांव के लिए निकल गई. अस्पताल में ही उस के परिवार वालों को लडकी की लाश देखने तक नहीं दी गई. लड़की के परिवार के साथ मीडिया की कुछ गाड़ियों ने एंबुलैंस का पीछा किया.

लड़की के भाई संदीप ने कहा, ‘हम लोगों को चेहरा तक नहीं दिखाया. उलटा भारी पुलिस बल उन्हें रोकने के लिए लगा दिया. पुलिस ने जानवर का रूप ले लिया था और वह दरिंदों के साथ खड़ी हो गई. मां अपनी बेटी की लाश देखना चाहती थी और वह पुलिस से गिड़गिड़ाती रही, पर पुलिस ने मुंह तक नहीं देखने दिया. मां आंचल फैला कर भीख मांगती रही पर पुलिस ने संवेदनहीनता की सारी हदें पार दीं.’

और भी दर्द दिया

हाथरस तक पहुंचने के लिए पुलिस ने पुराने रास्ते का इस्तेमाल किया, जबकि लड़की के परिवार वाले और मीडिया दूसरे रास्ते से गांव पहुंच रहे थे. एंबुलैंस में लाश ले कर पुलिस जब लड़की के घर के सामने से गुजर रही थी तो वहां मौजूद उस के घर वालों ने गाड़ी को बीच में रोक लिया.

लड़की की मां और उस की भाभी गाड़ी के ऊपर ही सिर पीटपीट कर रो रही थीं. मां का कहना था, ‘हम बेटी की अंतिम क्रिया से पहले उस को नहला कर नए कपड़े पहना कर हलदी लगाने की रस्म अदा करने के बाद अंतिम संस्कार करेगे.’

पर पुलिस यह बात मानने को तैयार नहीं थी. यही नहीं पुलिस लड़की की भाभी की इस बात को भी सुनने को तैयार नहीं थी कि लड़की के पिता और भाई दिल्ली से आ जाएं तब कोई फैसला हो. पुलिस ने लड़की के घर वालों की बात तो सुनी ही नहीं, बल्कि वह घर वालों को जबरन साथ ले जाना चाहती थी कि किसी तरह से वे उस का अंतिम संस्कार कर दें.

घर वाले जब इस के लिए तैयार नहीं हुए तो पुलिस लाश को ले कर सीधे गांव के बाहर श्मशान ले गई. अभी तक आधी रात का समय बीत रहा था और लड़की के पिता और मीडिया वहां तक नहीं पहुंचे थे. जो लोग पहुंचे थे उन को पुलिस ने गांव के बाहर ही रोक लिया था. गांव के अंदर आने वाली कच्ची सड़क को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था.

गांव में 13 थाने का पुलिस बल और बाकी अफसर तैनात कर दिए गए थे. पूरा गांव एक तरह से छावनी में बदल दिया गया था.

पैट्रोल से जला दी लडकी

हिंदू धर्म के रीतिरिवाजों में किसी  की अंतिम क्रिया से पहले लाश को नहलाया जाता है. इस के बाद उस को नए कपड़े पहना कर चिता पर लिटाया जाता है. चिता को लकड़ी से तैयार किया जाता है. किसी करीबी परिजन जैसे पिता, पति या भाई द्वारा चिता को अग्नि दी जाती है.

हिंदू धर्म में ऐसा कहा जाता है कि अंतिम क्रिया विधिवत करने से मरने वाले की आत्मा को मुक्ति मिलती है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदू धर्म के ब्रांड एंबैसेडर माने जाते हैं. इस के बाद भी योगी की पुलिस ने धर्म, रीतिरिवाज, मानवाधिकार, कानून किसी का भी साथ नही दिया.

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लड़की की लाश को जंगल के बीच रख कर उसे गोबर के उपलों और कुछ लकड़ियों से ढक दिया गया. पैट्रोल और मिट्टी का तेल छिड़क कर रात के तकरीबन ढाई बजे आग लगा दी गई. इस के बाद वहां किसी तरह पहुंचे मीडिया वालों को पुलिस ने यह नहीं बताया कि क्या जल रहा है?

अंतिम संस्कार को ले कर पीड़िता के चाचा और बाबा ने बताया कि जब पुलिस जबरन दाह संस्कार कर रही थी, तब उन्हें वहां जाने नहीं दिया गया. जो भी किया पुलिस ने किया था. जब कुछ देर के लिए पुलिस वहां नहीं थी, तो वे 2-4 उपले डालने के लिए गए थे. तभी पुलिस वालों ने उनकी फोटो खींच ली. अब इसी को पुलिस बता रही है कि परिवार वाले अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे.

कोर्ट ने लिया संज्ञान

लड़की की लाश जलने के साथ ही साथ उस की अस्थियां और चिता की राख तक को समय पर नहीं विसर्जित किया जा सका. बुलगढी गांव के बाहर सड़क किनारे चिता की राख का ढेर, अधजले उपले, बिखरी अस्थियां तीसरे दिन तक पड़ी रहीं. हिंदू रीतिरिवाजों के मुताबिक तीसरे दिन तक इन का विसर्जन हो जाना चाहिये. गुरुवार को अस्थियां विसर्जित नहीं की जाती हैं, पर शुक्रवार शाम तक अस्थियां विसर्जित नहीं की गई थीं. ऐसे में साफ है कि न केवल लड़की के जिंदा रहते उस की बेइज्जती की गई, बल्कि मरने के बाद भी कदमकदम पर उस का अपमान किया गया.

पुलिस ने दावा किया किया कि लड़की का अंतिम संस्कार रात 2 बजे के आसपास परिवार वालों की रजामंदी से पुलिस बल की मौजूदगी में किया गया. पुलिस की इस बात पर किसी को भरोसा नहीं हो पा रहा था. चारों तरफ पुलिस और योगी सरकार की आलोचना शुरू हो गई. यही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रात में लड़की की लाश को जलाने के मामले में मौलिक अधिकारों का मुददा मान कर खुद संज्ञान में लिया. जस्टिस राजन राय और जस्टिस जसप्रीत सिंह ने कहा कि रात के ढाई बजे अंतिम संस्कार बेहद क्रूर और असभ्य तरीके से किया गया. यह कानून और संविधान से चलने वाले देश में कतई स्वीकार्य नही है.

कोर्ट ने सरकार और अफसरों को सुनने के साथ ही साथ लडकी के परिवार को भी सुनने का फैसला किया. पहली बार कोर्ट ने खुद रजिस्टार को आदेश दिया कि वह इस संबंध में पीआईएल दाखिल करे.

तानाशाह बनी सरकार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बरताव कोे जो लोग जानते हैं वे कहते है कि योगी गुस्से में किसी बात की परवाह नहीं करते हैं. नागरिकता कानून विरोध के समय विरोध करने वालों को ‘ठीक से समझाने‘ का संदेश उन्होंने दिया था. अपराधियों से निबटने के लिए उन्हें ‘ठोंक दो’ के अलावा कानपुर कांड में विकास दुबे के घर को गिराना हो, डाक्टर कफील और आजम खां को जेल भेजना हो उन का गुस्सा हर जगह देखने को मिला.

उत्तर प्रदेश के अपराधियों में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के घर को गिराने का मामला ऐसा ही था. हाथरस कांड में भी मुख्यमंत्री पर अपराधियों को बचाने का आरोप लगा. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा कि आरोपी ठाकुर बिरादरी के हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री योगी उन को बचाने के लिए हर गलत काम करने को तैयार हैं.

विरोधी दल ही नहीं भाजपा की नेता उमा भारती ने भी इस बात का विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि इस से पार्टी की छवि खराब हुई है. मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे लड़की के परिवार से मीडिया और विपक्ष के लोगों को मिलने दे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने का प्रयास किया पर उन को रोक दिया गया. बाद में मिलने की मंजूरी दी गई. बसपा नेता मायावती ने बयान दे कर विरोध दर्ज कराते हुए मुख्यमंत्री योगी से अपने पद से इस्तीफा देने को कहा. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरे प्रदेश में धरनाप्रदर्शन किया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआईटी यानी स्पैशल टास्क फोर्स का गठन किया और उस की रिपोर्ट पर पुलिस महकमे के कुछ अफसरों को निलंबित कर दिया. सभी पक्षों के नार्को टेस्ट कराने का भी आदेश दिया. बाद में जांच सीबीआई को सौंपने की बात कही.

इस के बावजूद हाथरस की आग को विपक्ष बुझने नहीं देगा. बिहार चुनाव में इस को मुददा बनाने की तैयारी हो रही है. ऐसे में बिहार में भाजपा की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी योगी सरकार की आलोचना की है. जद(यू) नेता केसी त्यागी ने कहा, ‘क्या देश में दलित वंचितों के साथ दुष्कर्म के मामले में न्याय के लिए प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ेगा हाथरस में जो हुआ वह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए शर्मनाक है. यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए डूब मरने जैसी बात होगी.’

बस लिखापढ़ी करती रही पुलिस

हाथरस जिले से आगरामथुरा नैशनल हाईवे 93 पर 14 किलोमीटर दूर चंदपा कसबा है. यह बेहद छोटा सा कसबा है. यहां के लोग खरीदारी करने हाथरस ही जाते है. चंदपा कसबे से 2 किलोमीटर दूर बूलगढ़ी गांव है. यह भी बेहद गरीब गांव है. यहां पहुंचने के कच्चे रास्ते हैं. इस गांव में विभिन्न जातियों के 300 परिवार रहते हैं. इस गांव में एससी तबके और ठाकुर जाति के परिवार भी रहते हैं.

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14 सितंबर की सुबह 9 बजे के करीब गांव में रहने वाले ओम प्रकाश की बेटी 20 साला मनीषा अपनी मां रमा देवी और भाई सत्येंद्र के साथ घास काटने खेतों में गई थी. घास का एक बोझ ले कर लड़की का भाई उसे रखने घर चला आया था और मां और बेटी वहीं खेतों में घास काटने लगीं.

कुछ देर में मां ने बेटी के चिल्लाने की आवाज सुनी तो बेटे को आवाज देती लड़की की तरफ गई. तब मां ने देखा कि बेटी खेत में अंदर की तरफ बेहोश पड़ी थी. उस के गले और शरीर पर चोट के निशान थे.

मां ने आवाज लगाई तो गांवघर के लोग वहां आ गए. पुलिस को सूचना दी गई. घायल बेटी को घर पर रखने के कुछ देर बाद चंदपा थाने ले आए.

मनीषा के भाई सत्येंद्र ने लिखित तहरीर में पुलिस को बताया कि मनीषा और मां घास काट करे थे तभी गांव का ही रहने वाला संदीप वहां आया और मनीषा को खींच कर खेत में ले गया. उस का गला दबा कर हत्या करने की कोशिश की गई. मनीषा ने शोर मचाया तो मां और भाई को आता देख आरोपी संदीप भाग गया.

पुलिस ने इसी तहरीर पर आरोपी संदीप पुत्र गुड्डू के खिलाफ धारा 307 और एसएसीएसटी ऐक्ट में मुकदमा कायम कर लिया. कोतवाली चंदपा के प्रभारी दारोगा डीके वर्मा ने तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर के आरोपी की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस की सूचना पा कर सीओ सिटी राम शब्द मौका ए वारदात पर पहुंचे और मनीषा की खराब हालत देख कर उसे इलाज के लिए हाथरस के जिला अस्पताल भेज दिया. इन दोनों पक्षों के बीच पहले भी रंजिश हो चुकी थी. मुकदमा कायम था और मामला कोर्ट में दाखिल था. ऐसे में पुलिस ने मामले की विवचेना शुरू कर दी.

19 सितंबर को पुलिस ने आरोपी संदीप को पकड़ा और सीओ सिटी ने जांच के बाद मुकदमे में छेड़खानी की धारा 354 को बढ़ा भी दिया. 20 सितंबर  को सीओ सादाबाद के रूप में ब्रह्म सिंह ने चार्ज लिया. सीओ सिटी की जगह अब वे मुकदमे की विवेचना देखने लगे.

22 सितंबर को ब्रह्म सिंह ने लड़की से बातचीत के आधार पर मुकदमे में धारा 376 डी को बढ़ाया. लडकी ने 22 तारीख को दिए अपने बयान में आरोपी संदीप के साथ कुछ और लोगों का नाम लिया था और गैंगरेप की बात कही थी.

गैंगरेप के आरोप में पुलिस ने इसी गांव के 3 और आरोपियों लवकुश पुत्र रामवीर, रवि पुत्र अतर सिंह, रामकुमार पुत्र राकेश का नाम भी मुकदमे में शामिल कर लिया. पुलिस ने 23 सितंबर को लवकुश को पकड लिया. 25 सितंबर को रवि और 26 सितंबर को रामकुमार को पकड़ लिया. मुख्य आरोपी संदीप को पहले की पकड़ लिया गया था.

मामले में ढिलाई बरतने के आरोप में कोतवाली निरीक्षक चंदपा को लाइन हाजिर कर दिया गया था. 28 सितंबर को लड़की को बेहद नाजुक हालत में अलीगढ़ मैडिकल कालेज से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेज दिया गया. 29 सितंबर को दिल्ली में लड़की की मौत हो गई. मौत के बाद लड़की की लाश के साथ जो हुआ वह किसी तरह के गैंगरेप से कम नहीं था.

पिसते दलित परिवार

ठाकुर बिरादरी में 2 गुट हैं. इन की आपसी लड़ाई में दलित परिवार पिसते रहते हैं. 1996 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी. बाल्मीकि समाज के लोगों से ठाकुर परिवार का झगड़ा हुआ था. झगड़े की वजह गांव के बाहर कूड़ा डालने की जगह थी. एससी परिवार का कहना था कि उन की जगह पर कूड़ा डाला जा रहा है. इस को ले कर दोनों ही परिवारों में झगड़ा हुआ था, जिस में एससी परिवार के लोगों ने दलित ऐक्ट, मारपीट और सिर फोड़ने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में ठाकुर परिवार को जेल जाना पड़ा था. इनब्के बीच साल 2006 में आपसी मारपीट का मुकदमा लिखा गया था. कुछ समय के बाद इन के बीच आपसी समझौता भी हुआ, पर आपस में दुश्मनी बनी रही.

जब भी ये लोग आपस में सुलह की बात करते थे ठाकुर बिरादरी का ही दूसरा पक्ष किसी न किसी बहाने मामले को उलझा देता था. कुछ समय से लड़की और आरोपी संदीप के परिवार के बीच की 19 साल की दुश्मनी कम होने लगी थी. परिवार के लोग आपस में भले ही नहीं बोलते थे, पर संदीप और लड़की में बातचीत होने लगी थी. यह बात उन दोनों के परिवार वालों को पसंद नहीं थी. घटना के कुछ दिन पहले लड़की के परिवार वालों ने इस बात की शिकायत भी की थी, जिस से संदीप के पिता ने अपने लड़के की पिटाई भी की थी. ऐसे में आपसी विवाद में एक एससी परिवार तबाह हो गया.

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बलात्कार का सच

उत्तर प्रदेश पुलिस इस बात का दावा कर रही है कि लड़की के साथ बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई. कानून के जानकार कहते हैं कि पुलिस के दावे से कोई बचाव नहीं होगा. लड़की का बयान ही अंतिम माना जाएगा. 14 सितंबर को लड़की के साथ बलात्कार हुआ, मैडिकल नहीं हुआ. लड़की के अंदर के अंगों से छेड़छाड़ हुई.

कानून कहता है कि रेप साबित करने के लिए केवल 4 दिन का ही समय होता है. स्पर्म केवल 4 दिन तक ही अंग पर दिखते हैं. नाजुक अंगों पर नाखून के निशान, आधा नंगा या पूरा नंगा पाया जाना भी रेप माना जाता है. रेप की पुष्टि के लिए स्पर्म मिलना अनिवार्य नहीं होता है.

किसी महिला के नाजुक अंग पर पूरी तरह से या बिलकुल न के बराबर मर्द के अंग का स्पर्श भी बलात्कार माना जाता है. 14 दिन के बाद रेप के सुबूत नहीं मिलते, लेकिन अंगों पर चोट के निशान मिल जाते हैं. अस्पताल में एडमिट होने के समय अंगों से बहने वाला खून भी सुबूत होता है. उस समय यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई कि यह क्यों हो रहा है. ऐसे में रेप की पुष्टि कानून की नजर में कोई बड़ा मसला नहीं है. ऐसे हालात ही सुबूत के तौर पर पेश हो सकते हैं.

जेल से बाहर आने के बाद एस आर दारापुरी का बयान, “मुझे शारीरिक नहीं मानसिक प्रताड़ना मिली”

1972 बैच के आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी 32 पुलिस की सर्विस से साल 2003 में आईजी के पद से रिटायर हुये. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरानगर कालोनी में रहते है. पुलिस से रिटायर होने के बाद एसआर दारापुरी ने सोशल एक्टिविस्ट और राजनीतिक पार्टी के जरिये जनता की सेवा का काम करना शुरू किया. उनकी पहचान दलित चिंतक के रूप में भी है.

इसके अलावा पुलिस के द्वारा एकांउटर में मारे गये निर्दोश लोगों को लेकर उनका लंबा संघर्ष चल रहा है. इस संबंध में उनकी याचिका कोर्ट में है. 76 साल उम्र के एसआर दारापुरी औल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता है. नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने उनको गिरफ्तार किया था. 14 दिन जेल में रहने के बाद वह जेल से छूटकर वापस आये और कहा कि ‘सरकार के दमन हमारे उपर कोई असर नहीं है. हमने नागरिकता कानून का पहले भी विरोध किया था. आज भी कर रहे और आने वाले कल भी करेगे. हमने पहले भी हिंसा नहीं की आज भी नहीं कर रहे और आगे भी नहीं करेंगे. शांतिपूर्ण तरह से हम अपना विरोध दर्ज कराते रहेगे.’

पूरी तरह से अवैध थी घर में हिरासत:

76 साल के एसआर दारापुरी में सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ गुस्सा पूरे जोश में है. वह किसी नौजवान की तरह से आगे भी सरकार की नीतियों से लड़ने के लिये तैयार है. एसआर दारापुरी अपनी गिरफ्तारी के घटनाक्रम पर विस्तार से जानकारी देते हैं. वह कहते है ‘5 दिसम्बर 2019 को नागरिकता कानून के खिलाफ हजरतगंज पर बनी डाक्टर अम्बेडकर की प्रतिमा के नीचे धरना दिया गया था. वहां बहुत सारे सामाजिक संगठनो के लोग थे. वहां पर 19 जनवरी को नागरिकता कानून के विरोध की घोषणा हुई थी. बाद में इस अभियान में दूसरे राजनीतिक लोग भी जुड गये. 19 दिसम्बर को विरोध प्रदर्शन को देखते हुये मुझे अपने घर में पुलिस ने नजरबंद कर दिया था.‘

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वह बताते है ‘19 दिसम्बर की सुबह 7 बजे जब मैं अपने घर से टहलने के लिये सामने पार्क में गया तो गाजीपुर थाने के 2 पुलिस के सिपाही वहां बैठे मिले. इसकी हमें पहले से कोई जानकारी नहीं थी. जब हम वापस आये सिपाहियों से पूछा तो बोले हमें थाने से यहां डयूटी पर भेजा गया है. करीब 2 घंटे के बाद सीओ गाजीपुर और एसओ गाजीपुर यहां जीप से आये. उस समय हमें यह बताया कि आपको घर से बाहर नहीं जाना है. तब मैने घर से अपने हाउस अरैस्ट होने और नागरिकता कानून के विरोध का फोटो अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया. करीब 5 बजे हमें नागरिकता कानून के विरोध और हिंसा की खबरे मिली तो हमने अपने कुछ साथियों से पीस कमेटी बनाकर काम करने के लिये कहा. जिसमें यह तय हुआ कि शनिवार को हम लोग प्रशासन से मिलकर इस काम को अंजाम देगे.’

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पुलिस ने बंधक बनाकर रखा…

20 दिसम्बर की सुबह 11 बजे पुलिस हमारे घर आती है. सीओ और एसओ गाजीपुर हमें थाने चलने के लिये कहते है. हमने उनके पूछा कि क्या मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है ? तो वह बोले ‘नहीं आपको थाने चलना है.’ हम अपने साधारण कपड़ों में ही पुलिस की जीप में बैठकर थाने चले आये. मुझे लगा कि शाम तक वापस छोड़ देगे. हम दिन में भी गाजीपुर थाने में बैठे रहे. शाम 6 बजे करीब हमें हजरतगंज थाने चलने के लिये बोला गया. हम पुलिस के साथ हजरतगंज थाने आ गये. यहां हमने फिर अपनी गिरफ्तारी की बात पूछी तो इंसपेक्टर हजरतगंज ने कहा कि ’39 पहले हो चुके है आप 40 वें है. हमें बूढ़ा होने या पुलिस में रहने के कारण बैठने के लिये कुर्सी दे दी गई थी पर खाने के लिये कुछ नहीं दिया गया. रात करीब 11 बजे हमें रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिये रिवर बैंक कालोनी ले जाया गया. वहां मजिस्ट्रेट के सामने हमने पूरी बात बताई. पुलिस ने मुझ पर हिंसा की साजिश रचने की धारा 120 बी का मुकदमा कायम किया था. तथ्यों से पुलिस मजिस्ट्रेट को अपनी बात से सहमत नहीं कर पाई. ऐसे में  मजिस्ट्रेट ने रिमांड नहीं दी.

सर्दी से बचाव के लिये नहीं दिया कंबल:

रात करीब 12 बजे हमें वापस हजरतगंज थाने लाया गया. उस समय तक मुझे सर्दी लगने लगी थी. मै साधारण कपड़ों में था. मैने कंबल मांगा तो पुलिस ने नहीं दिया. मैने किसी तरह से घर फोन कर बेटे को कंबल लाने के लिये कहा तो वह डरा हुआ था. उसको यह जानकारी मिल रही थी कि जो भी ऐसे लोगों से मिलने जा रहा उसको पकड़ा जा रहा है. इस डर के बाद भी वह किसी तरह से कंबल लेकर घर से थाने आया. हमें इस दौरान खाने के लिये कुछ भी नहीं था. हमारे पास पानी की बोतल थी वही पीकर प्यास बुझा रहे थे. पुलिस ने मनगंढ़त लिखा पढ़ी कि और बताया कि रिमांड मजिस्ट्रेट मिले नहीं थे. फिर मेरी गिरफ्तारी को घर से ना दिखाकर महानगर के किसी पार्क से होना दिखाया. 21 दिसम्बर की शाम हमें जेल भेजा गया. जेल में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने हमें पेश किया गया. जेल में जाने के समय रात का 9 बज गया था. हम रात को भूखे ही सो गये. 22 दिसम्बर की सुबह हमें जेल में नाश्ता मिला.

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करीब 37 घंटे हमें पुलिस ने बिना किसी तरह के खाने के रखा. मेरा 161 का बयान नहीं कराया गया. मेरे साथ शारीरिक प्रताड़ना नहीं हुई. लेकिन मानसिक प्रताड़ना मिली और हमको दबाने के लिये हर प्रयास किया गया. जेल में हमें तमाम ऐसे लोग मिले जिनका लखनऊ में दंगा फैलाने के आरोप में पकड़ा गया था. ऐसे लोगों की शारीरिक प्रताड़ना की भी जानकारी मिली. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दंगा करने वालों से बदला लेने के बयान के बाद पुलिस बेहद क्रूर हो गई. हिंसा में पकडे गये लोगो को हजरतगंज थाने से अलग ले जाकर मारा गया. एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि इनको इतना मारो की पीठ डेढ़ इंच से कम सूजी नहीं होनी चाहिये. जेल में दिखे कई लोगों के चेहरे ऐसे सूजे थे कि वह पहचान में नहीं आ रहे थे.

जेल से लोवर कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद एसआर दारापुरी को सेशन कोर्ट से जमानत मिली. इसके बाद वह जेल से रिहा हुये तो पूरे जोश में नारे लगाते हुये बाहर आये. जेल से बाहर आने के बाद भी उनको जोश पहले जैसा ही कायम है. वह कहते है कि ‘हम लोग राजनीतिक लोग है. नागरिकता कानून का विरोध करते है. हम जैसे बहुत सारे लोग इसका विरोध कर रहे है. एसआर दारापुरी जितने दिनो जेल में थे उनकी बीमार पत्नी घर पर थी. इस बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उनसे मिलने उनके घर भी गई थी.

भाजपा, आरएसएस और पुलिस की मिलीभगत:

एसआर दारापुरी कहते है कि नागरिकता कानून का विरोध शांतिपूर्ण था. इसको दबाने के लिये हिंसा फैलाई गई. सदफ जफर फेसबुक पर लाइव करते पुलिस से कह रही थी कि इन लोगों को पकड़ो. पुलिस ने उनको नहीं पकड़ा. थाने में लाने के बाद भी कुछ लोगों को छोड़ दिया गया. जिनके बारे में सुना गया कि वह लोग भाजपा समर्थन के कारण छोड़ दिये गये. ऐसे में साफ है कि पुलिस की मिली भगत से भाजपा और आरएसएस के लोगों ने यह काम कराया. एसआर दारापुरी लखनऊ पुलिस को खुलेआम चुनौती देते कहते है कि अगर पुलिस ने सही लोगों को पकडा है तो 19 दिसम्बर के दंगे के सारे वीडियो फुटेज सार्वजनिक करे. यह दिखाये कि जिन लोगों को पकड़ा है यह वहीं लोग है जो दंगा फैलाने में शामिल थे. पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिये. यही नहीं लखनऊ में हिंसा में मारा गया वकील नामक व्यक्ति पुलिस के रिवाल्वर की गोली से ही मरा है. यदि ऐसा नहीं है तो पुलिस वीडियो के जरिये यह क्यों नहीं दिखाती कि किसकी गोली से वह मरा है. मरने वाले का परिवार पुलिस दवाब में है. जांच होनी चाहिये.

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एसआर दारापुरी कहते हैं यह सरकार का यह दमनकारी कदम है. जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. यह तानाशाही सरकार है. यह तो खुला दमन है. योगी राज में पुलिस पूरी तरह से क्रूर और हत्यारी हो चुकी है. इस सरकार के दौरान पुलिस के एनकांउटर में 95 फीसदी मामले झूठे है. दंगे में पकडे गये लोग भी 95 फीसदी गलत है. पुलिस जब घटना के दिन वाले वीडियो जारी करेगी तो सच खुद सामने आ जायेगा. जिन लोगो को पकड़ा गया. उनपर लगे आरोप पुलिस कोर्ट में साबित नहीं कर पाई. जिससे सभी को एक एक कर कोर्ट से जमानत मिल जा रही है. पुलिस ने ऐसे लोगों पर एनएसए यानि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा कायम करने की धमकी भी दी थी. जब एनएसए लगाने के लायक सबूत नहीं मिले तो पुलिस को अपने कदम वापस खींचना पड़ा. पूरे मामले की जांच होने से सच सामने आ जायेगा.

सर्विलांस: पुलिस का मारक हथियार

मोबाइल क्रांति ने पुलिस को ऐसा हथियार दे दिया है, जिसे वह कभी खोना नहीं चाहेगी. छोटेबड़े अपराधों की गुत्थी सुलझाने में सर्विलांस का रोल बेहद अहम हो गया है. निगरानी करने और अपराधी तक पहुंचने में इस से बड़ा जरीया कोई दूसरा नहीं है.

वैसे, सर्विलांस को लोगों की निजता में सेंध मान कर विरोध का डंका भी पिटता रहा है कि कानून व सिक्योरिटी के नाम पर पुलिस कब और किस की निगरानी शुरू कर दे, इस बात को कोई नहीं जानता. लेकिन पुलिस न केवल डकैती, हत्या, लूट, अपहरण व दूसरे अपराधों को इस से सुलझाती है, बल्कि अपराधी इलैक्ट्रोनिक सुबूतों के चलते सजा से भी नहीं बच पाते हैं.

क्या है सर्विलांस

आम भाषा में मोबाइल फोन को सैल्युलर फोन व वायरलैस फोन भी कहा जाता है. यह एक इलैक्ट्रोनिक यंत्र है. अपराधियों तक इस की पहुंच आसान हो जाती है. उन की लोकेशन को ट्रेस करने में सब से अहम रोल सर्विलांस का होता है. किसी अपराधी की इलैक्ट्रोनिक तकनीक के जरीए निगरानी करना ही सर्विलांस कहा जाता है.

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80-90 के दशक तक पुलिस अपनी जांच के लिए मुखबिरों पर निर्भर रहती थी, लेकिन साल 1998 में आपसी संचार के लिए मोबाइल कंपनियों के आने के साथ ही अपराधियों ने वारदातों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. पुलिस ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए और सर्विलांस का दौर शुरू हो गया.

इस से निगरानी और अपराध की जांच का तरीका बदल गया. कई बड़ी वारदातों को सर्विलांस के जरीए आसानी से सुलझाया गया, तो यह पुलिस के लिए मारक हथियार साबित हुआ. इस के बाद पुलिस वालों को सर्विलांस के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगी.

सर्विलांस ऐसे करता काम

किसी भी अपराध के होने पर सब से पहले पुलिस पीडि़त व संदिग्ध लोगों के मोबाइल नंबरों की मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों से काल की डिटेल निकलवाती है. इस से कई तरह की जानकारियां मिल जाती हैं यानी कब, कहां व किस से बात की गई. इस के जरीए काल या एसएमएस के समय का पता लगा लिया जाता है.

सभी मोबाइल कंपनियां ऐसा डाटा महफूज रखती हैं. इन कंपनी के मेन स्विचिंग सैंटर (एमसीए) में यह सब डाटा जमा रहता है. सिक्योरिटी संबंधी नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है. इतना ही नहीं, वारदात के वक्त कौन कहा था, इस का भी पता चल जाता है.

अगर इस से भी बात नहीं बनती है, तो पुलिस वारदात वाले इलाके के उन सभी मोबाइल नंबरों का पता लगा लेती है जो उस वक्त मोबाइल टावर के संपर्क में थे. यह जरूरी नहीं कि काल की जाए, बिना काल के भी मोबाइल की सक्रियता का पता लगाया जा सकता है.

दरअसल, नैटवर्क सबस्टेशन के मुख्य भाग पब्लिक स्विचिंग टैलीफोन नैटवर्क (पीसीटीएन) की तरंगें मोबाइल फोन पर लगातार पड़ती रहती हैं जिन के जरीए नैटवर्क की तारतम्यता बनी रहती है. वौइस चैनल लिंक का काम टावर ही करता है. ट्रांसीवर के जरीए काल का लेनादेना होता है. डाटा से पता चल जाता है कि किस वक्त कितने मोबाइल टावर के संपर्क में थे. वारदात से पहले या बाद के सक्रिय मोबाइल फोन पर खास नजर होती है.

इस के बाद संदिग्ध नंबरों की निशानदेही कर ली जाती है. यह पता किया जाता है कि नंबर को किस आदमी के एड्रैस प्रूफ पर कंपनी ने अलौट किया है. हालांकि पुलिस के लिए यह काम कई बार भूसे के ढेर से सूई निकालने के समान होता है. हजारों नंबरों में से संदिग्ध नंबरों को ढूंढ़ना आसान काम नहीं होता है. ऐक्सपर्ट इस में दिनरात एक करते हैं. नामपता निकलवा कर संबंधित लोगों से पूछताछ की जाती है.

पुलिस से बचने के लिए बहुत से अपराधी गलत नामपते पर मोबाइल सिमकार्ड खरीदते हैं. नियमों की सख्ती के बाद अब सिमकार्ड खरीदना इतना आसान नहीं रहा. सरकार ने इस के लिए सख्त गाइडलाइंस बना दी हैं.

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सर्विलांस के दूसरे चरण में पुलिस के सर्विलांस ऐक्सपर्ट की टीम संदिग्ध नंबर को ट्रेस कर उसे सर्विलांस पर लगा देती है. सर्विलांस पर लगने के बाद वह कहां आताजाता है, इस का पता पुलिस को चलता रहता है. संभावित ठिकानों और उस की गतिविधियों समेत 6 तरह के खास बिंदुओं से पुलिस अनजान नहीं होती. पुलिस उन के मोबाइल पर हर आनेजाने वाली काल सुनती है. उस की लोकेशन को आसानी से ट्रेस कर अपराधियों तक पहुंच जाती है.

इलैक्ट्रोनिक सुबूतों को झुठलाना किसी के लिए आसान भी नहीं होता. अपराधी शातिराना अंदाज दिखा कर कई बार सब्सक्राइबर आइडैंटिफाई मौड्यूल (सिमकार्ड) बदल लेते हैं, पर हर मोबाइल का अपना इंटरनैशनल मोबाइल इक्यूपमैंट आइडैंटिटी (आईएमईआई) नंबर होता है. सिमकार्ड के बदलते ही उस की इंफोर्मेशन सेवा देने वाली कंपनी तक पहुंच जाती है.

इतना ही नहीं, यह भी पता लगा लिया जाता है कि किस मोबाइल पर कब और कितने नंबरों का इस्तेमाल किया गया. सारा डाटा मिलने पर अपराधियों तक पुलिस की पहुंच हो जाती है.

मोबाइल कंपनियां इस काम में पुलिस को भरपूर सहयोग करती हैं. भारत सरकार द्वारा इस संबंध में सभी मोबाइल कंपनियों को नियमावली दी गई?है. पुलिस को चकमा देने के लिए अपराधी इस में भी हथकंडे अपनाते हैं. वे सिमकार्ड के साथ मोबाइल भी बदलते रहते हैं.

सर्विलांस अपराध और अपराधी दोनों पर ही लगाम लगाता है. मोबाइल फोन चोरी होने की दशा में आईएमईआई नंबर के जरीए ही पुलिस मोबाइल को खोजती है. यह एक ऐसी पहचान है, जिसे किसी भी दशा में मिटाया नहीं जा सकता.

बच नहीं पाते अपराधी

देश के बड़े मामलों की बात करें, तो संसद पर आतंकी हमला, शिवानी भटनागर हत्याकांड व फिरौती के लिए किए गए अपहरण के बड़े मामलों में पुलिस सर्विलांस के जरीए ही खुलासे व गिरफ्तारियां करने में कामयाब रही.

शिवानी भटनागर हत्याकांड में काल डिटेल के आधार पर पुलिस आरोपियों तक पहुंची. संसद हमले में जांच एजेंसी ने पाया कि आतंकवादियों का प्लान पहले से बनाया हुआ था.

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सर्विलांस की उपयोगिता को नकारने वाला कोई नहीं है. पुलिस के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं है. ट्रेनिंग के दौरान पुलिस वालों को अब ट्रेनिंग सैंटरों में ऐसी तमाम तकनीकों का पाठ भी पढ़ाया जाता है.

मोबाइल के जरीए होने वाले अपराध में अपराधियों के खिलाफ अदालत में सुबूत पेश करना आसान होता है. उन्हें झुठलाना आसान नहीं होता है.

संसद हमले में फैसला देते हुए कोर्ट ने आतंकवादियों से संबंधित मोबाइल फोन के आईएमईआई नंबर व काल डिटेल को अहम सुबूत माना था. सुबूतों के तौर पर मोबाइल व सिमकार्ड की फोरैंसिक ऐक्सपर्ट से जांच भी कराती है, ताकि सुबूत मजबूत हो सकें.

सीमित है अधिकार

ग्लोबल वैब इंडैक्स के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 88.6 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास मोबाइल हैं. 70 फीसदी से ज्यादा आबादी मोबाइल उपभोक्ता हैं.

ये आंकड़े साल 2014 के हैं. यह तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. वर्तमान दौर में 10 में से 3 लोगों के पास मोबाइल फोन हैं.

लेकिन किसी के व्यापारिक हितों, निजी जिंदगी में ताकझांक व राजनीतिक दुश्मनी के चलते मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लेना तकनीक के साथसाथ अधिकारों का गलत इस्तेमाल है. पकड़े जाने पर ऐसे पुलिस वालों को सजा देने का नियम है. इस के लिए बने ऐक्ट व संविधान के अनुच्छेद पुलिस को इस की इजाजत नहीं देते.

पुलिस को देश के किसी भी नागरिक का मोबाइल टेप करने का अधिकार नहीं होता. इंटरनल सिक्योरिटी ऐक्ट, पोस्ट ऐंड टैलीग्राफ ऐक्ट और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के जरीए आपराधिक गतिविधियों में लिप्त लोगों के नंबर पुलिस सर्विलांस पर ले सकती है. इस के लिए भी आला अफसरों व शासन की इजाजत लिया जाना अनिवार्य होता है. मोबाइल फोन सेवादाता कंपनी को लिखित प्रस्ताव देना होता है और उचित कारण भी बताया जाता है.

मोबाइल कंपनियां इस के बाद जरूरी डाटा मुहैया कराने के साथ ही उपभोक्ता के मोबाइल के सिगनल पुलिस के मोबाइल पर डायवर्ट कर देती हैं. एक बार नंबर के सर्विलांस पर लगने के बाद न सिर्फ रोजाना की उस की लोकेशन मिल जाती है, बल्कि उस के मोबाइल पर आनेजाने वाली काल को सुनने के साथ टेप भी किया जा सकता है.

निगरानी रखना भी जरूरी

आतंक और अपराध से दोदो हाथ करते देश में सरकार का सैंट्रल मौंनिटरिंग सिस्टम, खुफिया एजेंसियां, सुरक्षा एजेंसियां व पुलिस की विभिन्न यूनिट ला ऐंड और्डर व सुरक्षा के चलते शक होने पर निगरानी करती रहती हैं. उन्हें चंद औपचारिकताओं के बाद यह अधिकार है.

सुरक्षा और गोपनीयता के मद्देनजर इस तकनीक को विस्तृत रूप से और आंकड़ों को उजागर नहीं किया जा सकता. एजेंसियों के ऐसा करते रहने से कई बार बड़ी वारदातों के साथ देश भी खतरों से बचता है.

एक इलैक्ट्रोनिक जासूस हमारे इर्दगिर्द होता है. कई बार पुलिस वाले अपने पद का गलत इस्तेमाल कर किसी के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ ही फोन टैप कर लेते हैं. इस तरह के चंद मामले सामने आने के बाद अब यह इतना आसान नहीं है. अब उचित कारण बता कर इस की इजाजत बड़े अफसरों से लेनी होती है. गंभीर मामलों में सरकार इस की इजाजत देती है. प्राइवेसी के मद्देनजर सख्त गाइडलाइंस हैं.

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हाईटैक होगी देश की पुलिस

भारतीय पुलिस को ज्यादा से ज्यादा हाईटैक बनाने की कोशिशें लगातार जारी हैं. देश में क्राइम कंट्रोल टैकिंग नैटवर्क सिस्टम (सीसीटीएनएस) लागू करने की योजना है. इस सिस्टम के सक्रिय होते ही अपराधियों को पकड़ना पुलिस के लिए और भी ज्यादा आसान हो जाएगा.

इस योजना के जरीए देश के सभी थाने इंटरनैट के जरीए आपस में जुड़ जाएंगे. किसी अपराधी का पूरा प्रोफाइल औनलाइन मिलने के साथ ही उस की गतिविधियों पर तीखी नजर रखने ब्योरा आपस में लिया व दिया जा सकेगा.

कुछ राज्यों में यह योजना शुरू भी हो चुकी है. उत्तराखंड के सभी थाने सीसीटीएनएस से लैस हैं. उत्तर प्रदेश में भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाने लगा है.

अफसरों की राय

ला ऐंड और्डर व राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकारी तंत्र को सक्रिय रहना ही पड़ता है. तकनीक के विकास में हम दावे से कह सकते हैं कि पुलिस हाईटैक हो चुकी है. सर्विलांस पुलिस के लिए निश्चित ही अब एक बड़ा हथियार है.

-जीएन गोस्वामी, पूर्व आईजी उत्तराखंड पुलिस.

संचार क्रांति के दौर में अपराधियों से लड़ने के लिए तकनीकी रूप से और अधिक मजबूत करने के लिए पुलिस वालों को लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है.

पुलिस का काम हर हाल में जनता की सुरक्षा करना है. किसी तरह से नियमों का उल्लंघन न हो, इस बात का भी खास खयाल रखा जाता है.

-रमित शर्मा, आईजी उत्तर प्रदेश पुलिस.

हम गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस के मुताबिक ही काम करते हैं. समयसमय पर इस बाबत विभाग को निर्देश भी मिलते रहते हैं. गंभीर मामलों में उचित जांचपड़ताल कर के पुलिस को सहयोग किया जाता है. सर्विलांस की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती.

-आशीष घोष, अफसर, बीएसएनएल.

किसी शख्स को लगता है कि पुलिस व मोबाइल कंपनी द्वारा उस के निजी अधिकारों का हनन हो रहा है, तो वह कानूनी लड़ाई लड़ सकता है. सर्विलांस की पुष्टि होने पर वह शख्स कोर्ट के अलावा मानवाधिकार आयोग भी जा सकता है.

-राजेश कुमार दुबे, वकील इलाहाबाद हाईकोर्ट.

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