‘कॉलेज रोमांस’ के ‘बग्गा’ यानी गगन अरोड़ा से जानिए नेपोटिज्म की सच्चाई

कंगना रानौट सहित कई कलाकार आए दिन नेपोटिज्म का मुद्दा उठाते रहते हैं. इन सभी का आरोप है कि बौलीवुड में नेपोटिजम इस कदर हावी है कि गैर फिल्मी परिवार से जुड़ी संतानों को बौलीवुड में प्रवेश नहीं मिलता. मगर फिल्म ‘‘स्त्री’’ में बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद गगन अरोड़ा ने वेब सीरीज ‘‘कालेज रोमांस’’ में किशोर वय बग्गा का किरदार निभाकर अभिनय के संसार में कदम रखा और महज तीन वर्ष के अंदर ‘गर्ल्स होस्टल’ व अन्य वेब सीरीज के अलावा फिल्म ‘‘उजड़ा चमन’’ में अभिनय किया.

अब गगन अरोड़ा ने अजीत पाल सिंह निर्देशित वेब सीरीज ‘‘तब्बर’’ में पंजाबी युवक हैप्पी का अति संजीदा किरदार निभाया है ,जो कि 15 अक्टूबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘सोनी लिव’’ पर स्ट्रीम हो रही है.

प्रस्तुत है गगन अरोड़ा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

 सवाल : अभिनय से आपका जुड़ना कैसे हुआ?

जवाब यूं तो मैंने कॉलेज में अभिनय करना शुरू किया था. हम नुक्कड़ नाटक और मंचीय नाटक किया करते थे. पूरे तीन वर्ष तक मैं यही करता रहा. तीसरे वर्ष के अंत तक मेरा रुझान निर्देशन की ओर अधिक हो गया और मैं फिल्म निर्माण का अध्ययन करने के लिए मुंबई चला आया. मैने मुंबई के सेंट झेवियर कालेज से फिल्म मेकिंग सीखी. उसके बाद कुछ विज्ञापन फिल्मों और फिल्म ‘‘स्त्री’’ में बतार सहायक निर्देशक काम किया. अचानक एक दिन मेरे एक साथी के कहने पर मैने ऑडीशन दिया और मुझे वेब सीरीज ‘‘कालेज रोमांस’’ में अभिनय करने का अवसर मिल गया. इसमें मैने बग्गा का किरदार निभाया और रातों रात मुझे सफलता मिल गयी. फिर मैने ‘गर्ल्स होस्टल’, ‘बेसमेंट कंपनी’ भी किया. फिल्म ‘उजड़ा चमन’ में अभिनय किया.

 

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सवाल : क्या फिल्म मेकिंग सीखते सीखते आपके दिमाग में आया कि अभिनय की बनिस्बत निर्देशन का क्षेत्र ज्यादा बेहतर है?

जवाब नहीं सर..मैने देखा कि कलाकार के पीठ पीछे निर्देशक कलाकार को बुरा कहता है और निर्देशक के पीठ पीछे कलाकार उसे बुरा कहता है.मेरे मन में सवाल उठता था कि ऐसा क्यों होता है? तो मेरी समझ में आया कि सेट पर कलाकार नखरे और स्टारपना दिखाता है, इसलिए निर्देशक उसे बुरा कहता है. जबकि निर्देशक बार बार रीटेक लेता है या कलाकार से कहता है कि उसे क्या चाहिए, इसलिए कलाकार उसे बुरा कहता है. पर फिल्म मेकिंग सीखने के पीछे निर्देशन के प्रति प्यार या अभिनय के प्रति मेरे मन में प्यार नहीं उमड़ा था. मैं तो दोनों के बीच की थिन लाइन पर चला जा रहा था. हम गैर फिल्मी परिवार से आए थे, इसलिए आंख खुली रहती थी कि हमें अभिनय में जल्दी अवसर मिलने से रहा. हमारे लिए बैकअप लेकर चलना जरुरी था. सभी कहते है कि हर दिन हजारों लोग मुंबई फिल्म नगरी में अभिनेता बनने आते हैं, सभी को सफलता नहीं मिल पाती. मेरे निर्देशन की तरफ मुड़ने की भी यही वजह थी.

सवाल : सहायक निर्देशक के रूप में काम करने के दौरान आपने ऐसा क्या अनुभव लिया, जिससे अभिनय में आपको सहूलियत हो रही है?

जवाब मेरा अनुभव यह रहा कि कई लोगों को सेट पर कलाकार को लोगों का दुःख समझ में नहीं आता कि किसी चीज में इतना समय क्यों लग रहा है? अब अपने अनुभवो की वजह से निर्देशक मुझे जो कुछ समझाने का प्रयास करता है, वह मैं ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकता हूं. क्योकि मैं सहायक निर्देशक रहा हूं, तो मेरी समझ में आता है कि निर्देशक क्या समझाना चाहता है. इसी वजह से मैं दूसरे कलाकारों की बनिस्बत चीजों को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकता हूं. हर कलाकार में कुछ विषेशता होती है.

मसलन मुझे याद है कि जब मैं फिल्म ‘‘स्त्री’’ में बतौर सहायक निर्देशक काम कर रहा था, तब पंकज त्रिपाठी सर ने मुझसे कहा था- ‘‘तुम काम करने आए हो, काम करो. यह जो आस पास का शोशा है न, जब तुम्हारा काम अच्छा होगा तो लोग अपने आप आकर तुम्हें देंगें. ’’मुझे उनकी बात अच्छे से समझ में आ गयी. मुझे समझ में आया कि मेरा काम अपने आप बोलेगा. मुझे मांगने की जरुरत नहीं पड़ेगी. मैने तय किया कि ऐसा काम करना है, जिसकी लोग तारीफ करें. यही बात मुझे फायदा दे रही है.

सवाल : पहली वेब सीरीज कॉलेज रोमांसकरने के बाद किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली थीं?

जवाब बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली थी. यह तो रातों रात स्टार बन जाने का मसला था. रातों रात सफलता मिली थी. मैने क्या किसी ने भी इस बात की उम्मीद नहीं की थी. मजेदार बात यह थी कि इसका प्रिव्यू देखकर लोगो ने इसे सिरे से नकार दिया था. सभी का मानना था कि यह नहीं चलेगा. यह तो पैसे की बर्बादी कर दी है. लेकिन इसे जबरदस्त सफलता मिली और अब इसे एशिया का सर्वाधिक सफल वेब सीरीज माना जाता है. मुझे तो ऐसी सफलता की उम्मीद नहीं थी.

लोगों के संदेश से मेरा इंस्टाग्राम एकाउंट भर गया था. सड़क पर लोग मुझे पहचानने लगे थे. लोगों ने मेरे मम्मी पापा को बधाई संदेश भेजे. पर मेरे पिता जी ने मुझे समझाया था कि इस तरह की प्रशंसा से पागल मत बनना. यह सब क्षणिक है. यह पहला काम है. अभी लोग तुम्हारा सिर जितना चढ़ा रहे हैं, अगला काम खराब होते ही उतनी ही तेजी से नीचे भी उतार देंगें.

फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में भी तमाम लोगों ने मेरा स्वागत किया. यह सब देखकर मेरा यह भ्रम दूर हो गया कि यहां गैर फिल्मी पृष्ठभूमि के लोगों को घुसने नहीं देते. क्योंकि मुझे तो कांस्टिंग डायरेक्टर, फिल्म निर्देशक, निर्माता और कई कलाकारों ने बधाई दी. लोगों ने मुझे बुलाकर काम दिया. यही वजह है कि मैं पिछले तीन वर्ष से लगातार काम कर रहा हूं. अब मैने वेब सीरीज ‘‘तब्बर की है, जो कि 15 अक्टूबर से सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही है.

 

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सवाल : वेब सीरीज ‘‘तब्बर’’को लेकर क्या कहना चाहेंगे?

जवाब यह एक पारिवारिक मगर क्राइम थिलर वेब सीरीज है, जिसमें मैनें अपनी चाकलेटी ब्वॉय की इमेज को तोड़ने के लिए अभिनय किया है. वेब सीरीज ‘तब्बर’ में मैनें परिवार के बड़े बेटे हैप्पी का अति संजीदा किरदार निभाया है. एक तरफ घर का बड़ा बेटा होने के नाते अब घर यानी कि परिवार को आगे ले जाने की उसकी जिम्मेदारी बनती है, तो दूसरी तरफ युवा होने के नाते प्यार को लेकर भी उसकी कुछ समस्याएं हैं.

सवाल : इस किरदार को निभाते समय किस तरह की दिक्कतें पेश आयीं?

जवाब किरदार की गहराई को ढूढ़ने में तकलीफ हुई. यह अति संजीदा किरदार है. लंबे समय से ऐसा किरदार निभाया नहीं था. तो थिएटर के समय किरदार को लेकर जो तलाश करने, खोदने की आदत थी, वह ठप्प हो चुकी थी. उसे नए सिरे से जगाना पड़ा. इसमें लेखक हरमन वडाला व निर्देशक अजीत पाल सिंह ने मेरी काफी मदद की. कलाकारों ने भी मेरी मदद की. इसमें मुझे सुप्रिया पाठक और पवन मल्होत्रा ने काफी मदद की. उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा.

सवाल : सुप्रिया पाठक व पवन मल्होत्रा से आपने क्या सीखा?

जवाब इन दोनों कलाकारों से मेरी पहली मुलाकात ‘तब्बर’ के सेट पर ही हुई थी.उस दिन मैं बहुत डरा व घबराया हुआ था. मैं तो इन्हे फिल्म व टीवी में देखते हुए बड़ा हुआ हूं. पर दोनों ने पहले ही दिन मुझे अपने व्यवहार से एकदम सहज कर दिया. दूसरे दिन तो मैं पवन सर के गले में हाथ डालकर संवाद बोल रहा था. यह दोनो कलाकार मुझे हर दिन एक ऐसी नई सीख सिखाते थे, जो कि जिंदगी भर चलेगी.

पवन सर ने सिखाया कि ‘कुछ भी हो जाए, मगर डेडीकेशन/समर्पण भाव मत छोड़ना.’ समय की पाबंदी जरुरी है. अगर तुम समय की इज्जत नही करोगे, तो समय तुम्हारा सम्मान नहीं करेगा. ’सुप्रिया मैम ने सिखाया-‘‘ इफर्टलेस होना चाहिए. परदे पर तुम्हारा अभिनय नहीं दिखना चाहिए.

 

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सवाल : आपने वेब सीरीज करने के बाद फिल्म की. वेब सीरीज और फिल्म दोनो के अपने अलग अनुभव रहे होंगे. पर एक कलाकार के तौर पर एक फिल्म के रिलीज होने पर पहले ही दिन जो शोहरत या दर्शकों की जो प्रतिक्रिया मिलती है, क्या वैसी शोहरत वेब सीरीज से मिल पाती है?

जवाब जी मिलती है. मुझे फिल्म व वेब सीरीज दोनों का अच्छा रिस्पांस मिला. अब सोशल मीडिया का जमाना है. लोग आपके हाथ में लाकर प्रतिक्रियाएं देते हैं. आज की तारीख में माध्यम मायने नहीं रखता. अगर आप अच्छा काम करते हैं, तो लोग आपको व आपके काम को ढूंढ ही लेते हैं.आपका काम देखते हैं और फिर काम पसंद आने पर आपको बधाई भी देते हैं. जब से मैं अभिनेता बना हूं, तब से सोशल मीडिया है. उससे पहले की स्थिति के बारे में मैं कुछ नहीं जानता.

सवाल : पर आपको नहीं लगता कि अब आपको बतौर कलाकार काम भी सोशल मीडिया पर आपके फालोअर्स की संख्या बल पर मिलता है. इससे प्रतिभाषाली कलाकार को नुकसान उठाना पड़ता है?

जवाब मैं आपकी इस बात से सहमत हूं. मैने खुद इसी वजह से कई अच्छे प्रोजेक्ट खोए हैं. मैने चार राउंड के ऑडिशन दिए, फिर अंत में कहा गया कि आपके फालोवअर्स की संख्या कम है. फलां कलाकार के इतने मिलियन फालोअवर्स है, तो इस किरदार के लिए उन्हें ही चुना जा रहा है. तब बुरा लगता था. आज मैं उस मुकाम पर आ गया हूं, जहां मुझे पता है कि मेरी वजह से किसी न किसी प्रतिभाशाली कलाकार को नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन मेरी राय में इस तरह कलाकार का चयन न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता.

मैं यह भी समझता हूं कि निर्माता या निर्देशक की यह सोच रहती है कि फालोवअर्स अधिक होंगे, तो वह कलाकार उतने अधिक दर्शक खींचकर ले आएगा. मगर मेरी राय में किसी भी कलाकार को उसकी क्राफ्ट के अलावा किसी अन्य वजह से जज किया जाना सही नहीं है.

सवाल : इस बात की गारंटी कैसे ली जा सकती है कि सोशल मीडिया का फालोवर्स आपका काम देखना चाहता है?

जवाब यह बहुत मुश्किल काम है. फिल्मकार कैसे यह सोच रहे हैं, मुझे भी नहीं पता. मैं देखता हूं कि कई कलाकारों ने तो सोशल मीडिया को ही अपना जीवन बना लिया है. उनकी अपनी कोई निजिता नहीं है. यदि वह चाय पीने जा रहे हैं,  तो लोगो को पता है कि वह चाय पीने जा रहे हैं.

मैं वैसा इंसान नहीं हूं. मुझे कुछ दूरी बनाकर रखना अच्छा लगता है. मेरी कुछ चीजें लोगों को न पता हो तो ही अच्छा है.

 

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सवाल : तो फिर आप सोशल मीडिया पर अपने फालोवअर्स कैसे बढ़ाते हैं?

जवाब सर मैं काम करता हूं. मेरा काम अच्छा है, तो मेरे सोशल मीडिया के फालोवर्स की संख्या बढ़ेगी. काम के अलावा किसी अन्य वजह से कोई मुझे फॉलो कर रहा है, तो मुझे वह जायज वजह नहीं लगती है. अगर आप सिर्फ मेरा चेहरा देखने आ रहे हैं, तो मुझसे ज्यादा सुंदर मॉडल हैं.

सवाल : इसके अलावा क्या कर रहे हैं?

जवाब माधुरी दीक्षित के साथ वेब सीरीज ‘फाइंडिंग अनामिका’ की है, जो कि दीवाली के समय नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम होगी. इसमें संजय कपूर भी हैं. इसका निर्माण धर्मा प्रोड्क्शन कर रहा है. वेब सीरीज ‘फाइंडिंग अनामिका’ की कहानी एक वैश्विक सुपरस्टार के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अचानक गायब हो जाती है.

जैसे ही पुलिस और उसके चाहने वाले उसके लापता होने की खबर मिलती है, तो जांच शुरू होती है और फिर प्रतिष्ठित अभिनेत्री के जीवन में छिपी सच्चाई और दर्दनाक झूठ का खुलासा होता है. इससे अधिक अभी बता पाना मेरे लिए संभव नहीं है. इसमें माधुरी दीक्षित के अलावा संजय कपूर और मानव कौल जैसे संजीदा एक्टर भी हैं.

‘उजड़ा चमन’ फिल्म रिव्यू, जैसा नाम वैसा हाल

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः मंगत कुमार पाठक

निर्देशकः अभिषेक पाठक

कलाकारः सनी सिंह,मानवी गगरू,सौरभ शुक्ला,ग्रुशा कपूर,ऐश्वर्या सखूजा, करिश्मा शर्मा,अतुल कुमार

अवधिः दो घंटे

हीन ग्रथि से उबरने के साथ साथ इंसान की असली सुंदरता उसके लुक शारीरिक बनावट पर नही बल्कि उसके अंतर्मन में निहित होती है,उसके स्वभाव में होती है. इस मुद्दे पर एक हीन ग्रथि के शिकार  तीस वर्षीय प्रोफेसर, जिसके सिर पर बहुत कम बाल है,की कहानी को हास्य के साथ पेश करने वाली फिल्म ‘‘उजड़ा चमन’’ फिल्मकार अभिषेक पाठक लेकर आए हैं. मगर वह बुरी तरह से असफल रहे हैं.फिल्म दस मिनट के लिए भी दर्शक को बांधकर नहीं रखती.

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कहानीः

2017 की सफल कन्नड़ फिल्म ‘‘ओंडू मोट्टेया कठे’’ की हिंदी रीमेक ‘उजड़ा चमन‘ की कहानी दिल्ली युनिवर्सिटी के हंसराज कौलेज में लेक्चरर प्रोफेसर के रूप में कार्यरत 30 वर्षीय चमन कोहली (सनी सिंह) की दुःखद दास्तान है, जो कि सिर पर बहुत कम बाल यानी कि गंजा होने के कारण हर किसी के हंसी का पात्र बनते हैं.

उनके विद्यार्थी भी कक्षा में उन्हें ‘उजड़ा चमन’ कह कर मजाक उड़ाते हैं. इसी समस्या के चलते उनकी शादी नहीं हो रही है, इससे चमन के पिता (अतुल कुमार   )और माता (ग्रुशा कपूर ) बहुत परेशान हैं. यह परेशानी तब और अधिक बढ़ जाती है जब एक ज्योतिषी गुरू जी (सौरभ शुक्ला) भविष्यवाणी कर देते हैं कि यदि 31 की उम्र से पहले चमन की शादी न हुई, तो वह संन्यासी हो जाएंगे. इसलिए चमन शादी के लिए लड़की तलाशने के लिए कई जुगाड़ लगाते हैं.

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टिंडर पर दोस्ती करना शुरू करते हैं. दूसरों की शादी में जाकर लड़कियों के आगे पीछे मंडराते हैं. अपने गंजेपन को छिपाने के लिए विग लगाने से लेकर ट्रांसप्लांट तक की सोचते हैं, लेकिन बात नहीं बनती. अचानक टिंडर के कारण उनकी मुलाकात एक मोटी लड़की अप्सरा (मानवी गगरू) से होती है. पर जब दोनों सामने आते हैं, तो कहानी किस तरह हिचकोले लेती है, वह तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा.

लेखनः

फिल्मकार ने एक बेहतरीन विषय को चुना,मगर पटकथा व संवाद लेखक दानिश खान ‘बाल नहीं, तो लड़की नहीं‘ पर ही दो घंटे तक इस तरह चिपके रहे कि दर्शक कहने लगा ‘कहां फंसाओ नाथ. ’इंटरवल से पहले गंजेपन के चलते मजाक के ही दृश्य हैं,जो कि जबरन ठूंसे गए नजर आते है.

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हंसराज हंस कालेज के अंदर के दृश्य,खासकर प्रिंसिपल के आफिस के अंदर का दृश्य इस कदर अविश्वसनीय और फूहड़ लगता है कि आम दर्शक को भी लेखक की सोच पर तरस आने लगता है. लेखक चमन के किरदार को भी सही ढंग से नहीं गढ़ पाए. वह कभी सभ्य व संवेदनाशील लगते हैं, तो कभी बहुत गंदे नजर आते हैं. पिता व पुत्र के बीच के रिश्ते व संवाद भी फूहड़ता की सारी सीमाएं तोड़ते हैं. चमन के पिता ‘लड़का प्योर है’ व ‘वर्जिन है’ कई बार दोहराते हैं.जिसके कोई मायने नहीं.

निर्देशनः

कुछ वर्ष पहले अभिषेक पाठक ने पानी पर एक बेहतरीन डाक्यूमेंटरी फिल्म बनायी थी,जिसके लिए उन्हे पुरस्कृत भी किया गया था.उस वक्त वह एक संजीदा निर्देशक रूप में उभरे थे. मगर ‘उजड़ा चमन’देखकर यह अहसास नही होता उन्ही अभिषेक पाठक ने इसका निर्देशन किया है. निर्देशन में भी खामियां हैं. निर्देशकीय व लेखक की कमजोरी के चलते पूरी फिल्म में हीनग्रंथि की बात उभरकर आती ही नही है.

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अभिनयः

सनी सिंह की यह पहली फिल्म नहीं है. मगर पूरी फिल्म में वह एकदम सपाट चेहरा लिए ऐसे इंसान नजर आते हैं, जिसके अंदर किसी तरह की कोई भावना नही होती. वह इस फिल्म में सोलो हीरो बनकर आए हैं, पर वह इसका फायदा उठाते हुए बेहतरीन अदाकारी दिखाने  का मौका खो बैठे. जबकि छोटे किरदार में मानवी गगरू अपनी छाप छोड़ जाती हैं. अतुल कुमार, ग्रुशा कपूर, गौरव अरोड़ा, करिश्मा शर्मा, ऐश्वर्या सखूजा, शारिब हाशमी ने ठीक ठाक काम किया है.

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