सत्यप्रकाश उर्फ राजू श्रीवास्तव ने भले ही मिमिक्री और अनोखे अंदाज में पेश किए गए चुटकुलों से लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली थी, लेकिन हकीकत यह है कि वह बेहद शर्मीले स्वभाव के व्यक्ति थे. इस का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि वह अपनी भाभी की बहन शिखा को प्यार करते थे. लेकिन यह बात कहने में उन्होंने 12 साल लगा दिए. बाद में शिखा से उन का विवाह हुआ तो…
स्टैंडअप कौमेडी के बाद राजू श्रीवास्तव काम के सिलसिले में 10 अगस्त, 2022 को दिल्ली में थे. वह हर दिन की तरह होटल में ट्रेडमिल पर वर्कआउट कर रहे थे. यह 58 वर्षीय राजू की दिनचर्या में शामिल था. उन्हें खुद को फिट और चुस्तदुरुस्त बनाए रखना था.
कोरोना दौर के जाते ही स्टेज शो से ले कर शूटिंग का सिलसिला अपनी गति पर आ चुका था. सिनेमा के नए पुराने सितारों की तरह राजू भी अपनी रौ आ चुके थे.
पुराने जोश के साथ सक्रिय हो जाने की चाहत नए सिरे से मन में जोश भर रही थी. कुछ शोज करने लगे थे. उन में और नएपन के साथ ताजगी लाना चाहते थे. रोजमर्रा की सामान्य जिंदगी से ले कर खास लोगों तक पर वह पैनी नजर टिकाए थे. पता नहीं किधर से हास्य का कोई आइडिया मौलिकता के साथ दिमाग में समा जाए.
इस के विपरीत उम्र का अपना ही असर था, लेकिन राजू श्रीवास्तव का अपना अलग ही अंदाज था. अपनी कानपुरिया मस्ती, गजोधर की हस्ती और महंगाई के दौर में सस्ती हुई जा रही इंसान की जिंदगी उन के जेहन में उमड़घुमड़ रही थी. यानी उम्र के रिटायर होने वाले पड़ाव पर ज्यादा जरूरत थी फिल्म इंडस्ट्री में बने रहना.
सुबह का वक्त था. राजू ने अभी वाकिंग के ट्रेडमिल पर चलना शुरू ही किया था. धीरेधीरे उस की रफ्तार बढ़ाते जा रहे थे. उन के आसपास की युवतियां और युवक तुरंत अपनी रफ्तार तेज कर दौड़ने लगे थे. राजू ने एक नजर उन पर डाली और थोड़ी स्पीड बढ़ा दी, लेकिन यह क्या उन के पैर लड़खड़ा गए. वह गिर पड़े.
संयोग से वह ट्रेडमिल से नीचे गिरे. पास में ही निगरानी करता जिम का कर्मचारी दौड़ कर राजू के पास आया और उन्हें उठाते हुए बोला, ‘‘राजू भाई, संभल कर… अभी स्पीड नहीं बढ़ानी थी.’’ किंतु वह कुछ बोल नहीं पा रहे थे. गरदन एक ओर झुकी जा रही थी.
‘‘आप ठीक हैं न राजू भाई?’’ इस का भी कोई जवाब नहीं मिला. तब कर्मचारी समझ गया मामला गड़बड़ है. वह बेहोश हो गए थे.
होटलकर्मी ने तुरंत एंबुलैंस बुलवाई और फौरन दिल्ली एम्स (आल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल साइंसेस) में भरती करवा दिया. सूचना मिलने पर उन के घर वाले भी अस्पताल पहुंच गए.
हौस्पिटलाइज होते ही उन्हें एम्म में वेंटिलेटर पर रखा गया और उन के परिजनों को बताया कि उन के ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया है. यानी उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.
इलाज के दौरान डाक्टरों ने 2 स्टेंट लगाए. इस के बाद 13 अगस्त को एमआरआई में राजू श्रीवास्तव के सिर की एक नस दबी होने की बात भी बताई गई.
उस के बाद तो सोशल मीडिया से ले कर टीवी चैनलों में उन के बीमार होने की खबर फैल गई. जिस ने भी सुना स्तब्ध रह गया. लगा जैसे उन के होंठों से हंसी छिन गई हो. कुछ दिन पहले ही तो उन्हें लाफ्टर चैलेंज के मंच पर देखा गया था. उन की कौमेडी पर शेखर सुमन और अर्चना पूरन सिंह ठहाके लगा रहे थे. मंच पर राजू और शंभु शिखर कौमेडी की जबरदस्त तुकबंदी के साथ तड़का लगा रहे थे.
यह कोई नहीं जानता था कि जिस लाफ्टर चैलेंज के मंच से उन्हें बंपर छप्परफाड़ पहचान मिली थी, वही उन का आखिरी मंच साबित होगा. राजू के एम्स (दिल्ली) में भरती होते ही देश भर में उन के चाहने वाले जल्द स्वस्थ होने की दुआएं करने लगे, राजू के परिवार वाले और उन के फैंस रोज ये उम्मीद करते थे कि जल्द ही राजू ठीक हो जाएंगे और फिर से लोगों को खूब हंसाएंगे. लेकिन सच्चाई उस के उलट थी.
कारण, उन की हालत में सुधार होने की संभावना बहुत कम दिख रही थी. डाक्टरों ने आखिरकार परिजनों को यह कहते हुए जवाब दे दिया कि उन के ब्रेन तक औक्सीजन नहीं पहुंच रही है.
यानी कि डाक्टरों ने उन्हें शुरू में ही ब्रेन डेड घोषित कर दिया था. बीच में उन्हें तेज बुखार भी आया था, शरीर में इंफेक्शन होने की बात भी सामने आई थी. तरहतरह की जांच प्रक्रिया शुरू हुई. डाक्टरों ने उन के सिर का सीटी स्कैन करवाया तो दिमाग के एक हिस्से में सूजन पाई गई.
जांच रिपोर्ट के अनुसार अभी डाक्टरों के बीच विचारविमर्श चल ही रहा था कि 15 दिन बाद उन के घर के एक सदस्य से जानकारी मिली कि उन्होंने अपना एक पैर मोड़ा था.
डाक्टर ने इस संदर्भ में विचार किया तो पाया कि उन्हें होश नहीं आया था और उन के ब्रेन से भी किसी तरह की हलचल नहीं मिल रही थी.
राजू की इस से पहले 7 साल पहले हुई हार्ट समस्या के बाद एंजियोप्लास्टी की गई थी, जिस में हार्ट के एक बड़े हिस्से में 100 फीसदी ब्लौकेज मिला था.
कुल मिला कर राजू श्रीवास्तव के निधन की वजह ब्रेन में औक्सीजन का नहीं पहुंचना, कई अंगों का काम बंद करना बताया गया.
डाक्टरों के लिए मल्टीपल और्गन फेल्योर समस्या वाले मरीज को दुरुस्त करने में कई तरह की उलझनों के दौर से गुजरना होता है. यानी जब शरीर के 2 से ज्यादा अंग काम करना बंद कर देते हैं तो ऐसे अधिकतर मामले जानलेवा साबित होते हैं. राजू श्रीवास्तव के केस में भी यही हुआ.
जीवन मृत्यु से जूझते हुए गजोधर भैया राजू श्रीवास्तव अंतत: 21 सितंबर को सुबह 10.20 बजे सारी दुनिया को रुला गए. उन का 41 दिनों बाद निधन हो गया और वह अपने पीछे भरेपूरे परिवार को अलविदा कह गए.
डाक्टर ने मौत का कारण कार्डियक हार्ट अटैक बताया. हालांकि वह इस तरह की समस्या से 2 बार पहले भी गुजर चुके थे. इस बार आया उन का तीसरा हार्ट अटैक था. यानी कि राजू श्रीवास्तव को हार्ट से जुड़ी समस्या पहले से रही है. यह जानते हुए भी वह इसे ले कर शोज में कभी असहज नहीं दिखे.
उन्हें पहली बार मुंबई में एक शो के दौरान 10 साल पहले सीने में दर्द की शिकायत आई थी. तब हार्ट की समस्या को ले कर उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भरती कराया गया था. तब वह जल्द स्वस्थ हो गए थे. उन दिनों उन का करिअर चरम पर था. शोज और शूटिंग के अलावा प्रैस कौन्फ्रैंस की व्यस्तता बनी रहती थी.
बताते हैं कि वह मिले मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे. इस कारण मानसिक दबाव में भी रहते थे. इस का असर सेहत पर पड़ना स्वाभाविक था.
काम के बोझ और व्यस्तता के बारे में राजू श्रीवास्तव की बेटी अंतरा श्रीवास्तव ने बताया कि पापा काम के लिए सिलसिले में अकसर दिल्ली और देशभर के अन्य शहरों में जाते रहते थे. वह हर दिन जिम में वर्कआउट करते थे. यह उन का डेली का रुटीन था.
नतीजा हुआ कि ठीक 3 साल बाद दोबारा उन्हें दिल की समस्या आई थी. यह समस्या पहली बार की समस्या की वजह से ही थी. तब उन्हें मुंबई के लीलावती अस्पताल में भरती करवाया गया. तब डाक्टरों की तरफ से कई हिदायतें दी गई थीं, जो रहनसहन, खानपान से ले कर हैवी वर्कआउट तक की थीं.
राजू श्रीवास्तव अपने पीछे परिवार में पत्नी शिखा श्रीवास्तव, बेटी अंतरा, बेटा आयुष्मान, बडे़ भाई सी.पी. श्रीवास्तव, छोटे भाई दीपू श्रीवास्तव, भतीजे मयंक और मृदुल को बिलखता छोड़ गए. उन से जुड़े कई किस्से हैं, जो एक संघर्ष और कुछ पाने की जिद एवं महत्त्वाकांक्षा को दर्शाते हैं.
कानपुर में 25 दिसंबर, 1953 को जन्म लेने वाले राजू श्रीवास्तव का वास्तविक नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव था. वह सरस्वती श्रीवास्तव और रमेशचंद्र श्रीवास्तव की 3 संतानों में से एक थे.
लोग उन्हें प्यार से राजू भैया कह कर बुलाते थे. उन्होंने कौमेडी के लिए एक काल्पनिक नाम गजोधर गढ़ लिया था. इस कारण लोग उन को गजोधर भैया भी कहने लगे.
उन का जीवन काफी उतारचढ़ाव से भरा हुआ है, जिस में कानपुर, मुंबई और दिल्ली से जुड़ी संघर्ष की दास्तान की लंबी फेहरिस्त है. सफलता उन्हें आसानी से नहीं मिली. इस के लिए उन्हें चंदन की तरह खुद को घिसना पड़ा.
वैसे राजू को मिमिक्री करने की कला अपने पिता कवि रमेशचंद्र श्रीवास्तव से विरासत में मिली थी. वह बचपन से ही अलगअलग फिल्म कलाकारों और प्रसिद्ध व्यक्तियों की मिमिक्री किया करते थे. राजू के पिता गांव के छोटेछोटे कार्यक्रमों में लोगों की मिमिक्रियां किया करते थे.
रमेशचंद्र श्रीवास्तव मशहूर कवि थे, जिन्हें बलाई काका के नाम से जाना जाता है. उन्हें देख कर राजू बड़े हुए थे. उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि आगे अपना करिअर कौमेडी में ही बनाना है. राजू को बचपन से ही मिमिक्री और कौमेडी करने का बहुत शौक था. इसलिए वह काम की तलाश में 1982 में मुंबई आ गए.
जब तक कोई बड़ा और अच्छा काम नहीं मिला, तब तक मुंबई में आटोरिक्शा भी चलाया. लेकिन बाद में राजू की किस्मत पलटी और उन्हें टीवी पर सब से पहला ब्रेक ‘शक्तिमान’ नामक टीवी धारावाहिक में मिल गया. इस के बाद राजू ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अपने जीवन में बहुत सारे स्टेज और कौमेडी शो किए.
सौभाग्य से उन्हें एन. चंद्रा के बड़े बैनर की फिल्म ‘तेजाब’ में छोटी सी भूमिका भी मिल गई. वे अनिल कपूर के दोस्त बने थे. हालांकि उन को उस में पहचानना आसान नहीं होगा.
उस के बाद अगले साल ही राजश्री प्रोडक्शंस की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ में देखा गया था. उस में वह सलमान खान और भाग्यश्री के साथ नेगेटिव रोल में थे.
राजू श्रीवास्तव के जीवन से जुड़ी कई बातें हैं, जिस में उन का प्रेम प्रसंग भी है. वह इतने शर्मीले थे कि जिस से प्यार किया उसे प्रपोज करने में 12 साल लगा दिए.
वह अपने बड़े भाई की बारात में फतेहपुर (यूपी) गए थे. वहां उन्होंने एक लड़की शिखा को देखा तो उसे देखते ही रह गए. लेकिन शर्मीले होने के कारण उस से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. शादी के मौके पर राजू की एकतरफा लवस्टोरी शुरू हो गई थी. वह उन के दिल की गहराई में उतर गई थी, लेकिन प्यार का इजहार नहीं कर पाए थे.
उन की खुशी का ठिकाना तब नहीं रहा, जब उन्हें पता चला कि शिखा उन के भाई की होने वाली पत्नी की कजिन है और शादी में इटावा से आई थी. इस के बाद राजू ने थोड़ी राहत की सांस ली, क्योंकि उन्हें यकीन हो गया कि शिखा को पाना अब ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.
शादी तक तो राजू ने अपनी आंखों को तसल्ली दी, लेकिन शिखा से मिलने की तड़प ने राजू के मन में उन्हें अगला कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया.
ऐसे में वह नईनवेली भाभी के घर जाने लगे, ताकि इसी बहाने से शिखा से मिलने का रास्ता निकाल सके. इस में उन्हें सफलता मिली. उन का शिखा से मिलने का इंतजार खत्म हो गया. जल्द ही उन के बीच पत्राचार के जरिए बातों का सिलसिला भी शुरू हो गया.
राजू जब अपनी किस्मत आजमाने मुंबई आए, तब वह शिखा को नहीं भूल पाए थे. इस दौरान भी राजू और शिखा एक दूसरे को लेटर लिखा करते थे. एक इंटरव्यू में राजू ने इस बात का खुलासा किया था कि शिखा भी कहीं न कहीं उन्हें पसंद करती थीं, क्योंकि जो भी शादी के रिश्ते उन के लिए आते थे वो उन्हें मना कर दिया करती थीं.
राजू अंदर से गहरे और शर्मीले स्वभाव के थे. इस कारण उन का प्रेम 12 सालों तक कागजों पर ही एकदूसरे की तारीफों में चलता रहा. वह तो शुक्र है कि राजू के घर वालों ने उन के दिल की बात जान कर शिखा के घर रिश्ता भेज दिया. और फिर साल 1993 में राजू कानपुर से इटावा शिखा के घर अपनी बारात ले कर पहुंच गए. इसी बीच राजू श्रीवास्तव अपने करिअर पर भी ध्यान दे रहे थे.
साल 1993 में शादी करने के बाद राजू-शिखा के परिवार में 2 बच्चे आ गए. बेटी अंतरा और बेटा आयुष्मान. राजू की बेटी अंतरा सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहती हैं और वह एक असिस्टेंट डायेक्टर हैं. साल 2006 में राजू की बेटी अंतरा को बाल वीरता पुरस्कार मिला था.
इस बारे में राजू ने ही खुलासा किया था कि वह जब एक शो के लिए विदेश गए थे, तब उन के कानपुर वाले घर में बदमाश घुस गए थे. वहीं अंतरा ने बदमाशों से लड़ते हुए 2 बदमाशों को पुलिस के हवाले करवा दिया था.
राजू श्रीवास्तव अगर आम आदमी के कौमेडियन थे तो वह छोटे परदे का एक बड़ा स्टार भी थे. उन को लोग तब से सुनते रहे हैं, जब टीवी चैनल, सीडी, डीवीडी, सोशल मीडिया और यूट्यूब नहीं था. उन दिनों रेडियो के बाद सिर्फ दूरदर्शन ही मनोरंजन का साधन था. सिर्फ आडियो कैसेट आया था. बात 1980 के दशक की है. उन का पहला कौमेडी आडियो कैसेट ‘हंसना मना है’ आया था. इसे टी सीरीज ने निकाला था.
उस में उन के चुटकुले भरे थे, जो राजू ने आवाज बदलबदल कर सुनाए थे. इस की लोकप्रियता के बारे में राजू ने एक इंटरव्यू में गजब का वाकया सुनाया था.
‘‘मैं उस जमाने का आदमी हूं, जब डीवीडी, सीडी ये सब नहीं था. पेन ड्राइव तो था नहीं बेचारा. उस समय हमारे आडियो कैसेट रिलीज होते थे, जो फंस जाते थे तो उन में पेंसिल डाल कर ठीक करना होता था.’’
उस दौरान उस से जुड़ी कई मजेदार घटनाएं थीं. लोग उन का नाम जानते थे, लेकिन पहचानते नहीं थे. उन का एक मजेदार वाकया कुछ यूं था— एक बार राजू अपने शहर में रिक्शे से कहीं जा रहे थे. रिक्शेवाला उन का कैसेट बजा रहा था और उस के चुटकुले सुनता हुआ मजे से रिक्शा चला रहा था. उस जमाने की खासियत ये थी कि जो हिट हो गया, लोग उस के पीछे ही पड़ जाते थे.
रिक्शे वाले को पता नहीं था कि उस के रिक्शे पर बैठा दुबलापतला सा साधारण युवक वही है, जिस के वह चुटकुले सुन रहा है. तब राजू श्रीवास्तव को एक शरारत सूझी उन्होंने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘ये क्या सुन रहे हो यार, कुछ अच्छा लगाओ.’’
इस पर रिक्शे वाला बोल पड़ा, ‘‘अरे नहीं भैया, कोई श्रीवास्तव है, बहुत हंसाता है.’’
उस के बाद तो राजू की तो मानो बोलती ही बंद हो गई.
इसी तरह राजू ने एक और किस्सा साझा किया था, ‘एक बार की बात है कि हम ट्रेन में अपने एक किरदार मनोहर के अंदाज में किसी को शोले की कहानी सुना रहे थे. ऊपर की बर्थ पर एक चाचा सो रहे थे, हमें सुन कर वो नीचे उतरे और बोले कि ऐसा है, तुम ये जो कर रहे हो, इस को और ढंग से करो. इस में थोड़ी और मेहनत कर के इस को जो है…कि कैसेट बनवाओ. बंबई (अब मुंबई) जाओ, वहां गुलशन कुमार का स्टूडियो है. तुम वहां सुनाओ अपना ये…तुम्हारा भी कैसेट आएगा. एक श्रीवास्तव का कैसेट निकला है, उस से आइडिया ले लो.’
राजू श्रीवास्तव कौमेडी कलाकार बनने के ढेर सारे सपने ले कर साल 1982 में मुंबई तो पहुंच गए थे, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि सिनेमा में कौमेडी कलाकारों का दौर जौनी वाकर से शुरू हो कर जौनी लीवर पर आ कर खत्म होने की स्थिति में था. जो कुछ बचा था उस में भौंडापन, अश्लीलता के द्विअर्थी संवाद और सिर्फ चुटकुलेबाजी ही था.
वैसे तो उन्होंने कौमेडी अपने पिता कवि रमेशचंद्र श्रीवास्तव से सीखी थी, लेकिन उन्हें बड़े स्टेज पर मौका कानपुर के ही एक अंकल ने दिया था. काव्य पाठ का एक कार्यक्रम चल रहा था. मंच कुछ समय के लिए खाली हो गया था. सामने बैठे दर्शक शोर मचाने लगे थे. तभी संचालक ने कानपुर के किदवई नगर निवासी सत्यप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ राजू श्रीवास्तव से चुटकुला सुनाने की गुजारिश की.
अनाउंसमेंट करने वाले अंकल ने कहा कि अब चंद चुटकुले सुनाने राजू आ रहे हैं. बस फिर क्या था उस दिन के बाद सत्यप्रकाश का नाम स्टेज पर राजू श्रीवास्तव बन गया.
राजू ने एक इंटरव्यू में मुंबई का एक वाकया बताया था कि वो आटो में सफर कर रहे लोगों को चुटकुले सुनाते थे. बदले में उन्हें किराए के साथ टिप भी मिल जाती थी. ऐसे ही एक दिन उन के आटो में बैठी एक सवारी ने उन्हें स्टैंडअप कौमेडी के बारे में जानकारी दी.
जिस के बाद उन्होंने स्टेज पर कौमिक परफारमेंस देना शुरू किया, हालांकि पहला शो मिलने में भी उन्हें लंबा समय लग गया. बताते हैं कि तब फीस के तौर पर 50 रुपए मिलते थे. वह मंच आर्केस्ट्रा का होता था. स्ट्रगल के दिनों में उन्होंने बर्थडे पार्टीज में जा कर 50 रुपए के लिए भी कौमेडी की थीं. आर्केस्टा में काम करते हुए उन्हें मात्र 100 रुपए ही मिल पाते थे.
कुछ समय बाद फिल्में मिलनी शुरू हो गई थीं, लेकिन उन का रोल काफी छोटा और नहीं पहचाना जाने वाला ही था. बड़े परदे पर पहली बार फिल्म ‘तेजाब’ में अनिल कपूर के साथ दिखे, जिस में उन की भूमिका एक्स्ट्रा कलाकार की थी.
फिर सलमान खान के साथ ‘मैं ने प्यार किया’ में नजर आए. उस में भी उन्हें छोटा सा सीन मिला था और वे एक ट्रक क्लीनर की भूमिका में थे. किंतु 1993 में उन्हें ‘बाजीगर’ में थोड़ी और बड़ी भूमिका मिली. जिस में वे शिल्पा शेट्टी के साथ कालेज के एक स्टूडेंट थे.
फिल्म का एक महत्त्वपूर्ण सीन था, जिस में शिल्पा शेट्टी एक पार्टी में नाच रही होती हैं और शाहरुख को कांच के पार से आवाज देती हैं. उस सीन में राजू भी देखे गए थे.
इस तरह 90 के दशक से ले कर साल 2003 तक राजू ने तमाम फिल्मों में छोटेछोटे किरदार ही निभाए. जिस में ऋतिक रोशन और करीना कपूर की ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ भी शामिल थी. तब तक उन्हें लाइव शो के जरिए पहचाना जाने लगा था.
वह कानपुर, मुंबई, दिल्ली समेत दूसरे शहरों में लाइव शोज के लिए बुलाए जाने लगे थे. लोग उन से लालू प्रसाद यादव और अमिताभ बच्चन की मिमिक्री सुनने की मांग करते थे. फिल्म ‘शोले’ के सांबा बन कर जब गब्बर को नसीहत देते थे, तब लोग अपनी हंसी रोके नहीं रोक पाते थे.
उन्हीं दिनों दूरदर्शन ने अपना एक एंटरटेनमेंट का चैनल डीडी मैट्रो शुरू किया था, जिस में सीरियल, टेलीफिल्में, इंटरव्यू और कौमेडी के शोज आते थे. वहां 1993 में उन्हें एक शो ‘टी टाइम मनोरंजन’ में मौका मिल गया था. तब कौमेडी के दौर में नया प्रयोग इंप्रोवाइजेशनल कौमेडी शुरू हुआ था, जिस में 3 कौमेडियन को एक डिब्बे में रखे कई तरह के तमाम नाटक से संबंधित बक्से प्रौप रखे होते थे और उन के इस्तेमाल से 3 कौमेडियंस को बगैर किसी तैयार के कौमेडी सीन बनाना होता था. यहीं से राजू श्रीवास्तव की अलग पहचान बन गई थी.
उस के कुछ समय बाद 1998 में ‘शक्तिमान’ दूरदर्शन पर दिखने वाला देश का सब से पापुलर शो बन गया था. उस में उन की भूमिका रिपोर्टर धुरंधर सिंह की थी. राजू को लोग तब देशभर में पहचानने लगे थे. उस के बाद जैसे ही केबल टीवी और चौबीसों घंटे न्यूज और डेली सोप ओपेरा का दौर आया उस का फायदा राजू को भी मिला. उन दिनों शेखर सुमन टीवी कौमेडी का एक बड़ा नाम थे.
स्टार वन पर 2005 में नए अंदाज में कौमेडी टैलेंट शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ आया था. उस में राजू के अलावा सुनील पाल, अहसान कुरैशी, नवीन प्रभाकर, भगवंत मान और पराग कंसारा देखे गए. शेखर सुमन और नवजोत सिंह सिद्धू इस शो के जज थे.
इस शो ने न सिर्फ कौमेडी को ग्लैमर दिया, बल्कि कौमेडी को फिल्मों में महज ‘कौमिक रिलीफ’ वाले सींस से निकाल कर इंडिया में एक मेनस्ट्रीम आर्ट फौर्म के रूप में स्थापित कर दिया.
इस शो में कौमेडियन न केवल एक किरदार थे, बल्कि वही अपने सीन के एक कहानीकार भी थे. उन्हें कहानियां गढ़नी थीं, उसे अनोखे अंदाज में पेश करना था और खड़े हो कर अभिनय भी करना था.
राजू ने वहीं एक किरदार ‘गजोधर भैया’ गढ़ लिया था. गजोधर एक अधेड़ ग्रामीण पुरुष था, जिसे दुनियादारी की समझ नहीं थी. शहरी चीजें उसे अचंभे से भर देती थीं. और राजू उस के भोलेपन से ही कौमेडी निकालते थे.
कानपुर से सटे शहर उन्नाव के पास के बीघापुर गांव में राजू की ननिहाल है. स्कूल की गरमी की छुट्टियां वहीं बीतती थीं. वहां जो सज्जन बाल काटते थे उन का नाम गजोधर था. वे अब नहीं रहे. लेकिन उन्होंने इतने किस्सेकहानियां सुनाई थीं कि वह राजू के जहन में रह गए. इसलिए राजू जब भी कोई कौमेडी का किस्सा सुनाते थे, तब वह उन्हीं का नाम इस्तेमाल करते थे.
गजोधर के अलावा राजू के अधिकतर पात्रों के नाम ग्रामीण और कस्बाई परिवेश से आने वाले लोगों के ही थे. जैसे पप्पू, गुड्डू, पुत्तन, संगठा और मनोहर.
राजू की कौमेडी का अंदाज छोटीछोटी बातों को ध्यान से जहन में बिठाना और उन में से हास्य पैदा करना था. उन के गढ़े हुए पात्रों से हास्य इसीलिए उपजता था, क्योंकि वैसे पात्र हर मिडिल क्लास परिवार में रहे.
उदाहरण के तौर पर राजू का शादी वाला कौमेडी सीन काफी लोकप्रिय रहा. उस में एक दुलहन होती है. उस की छोटी बहन को बिजली चले जाने पर मेकअप खराब होने का डर है. एक अकड़ू मामा हैं, जो ताने देने का काम करते हैं. एक मां है जो बारबार पूछ रही है कि बारातियों के इंतजाम में कोई कमी तो नहीं रह गई. एक पिता है, जो बेटी की विदाई पर आंसू रोकने का असफल प्रयास कर रहा है और एक भाई है जो काम कर के इतना थक चुका है कि उसे विदाई का गम महसूस ही नहीं होने पा रहा है.
इसी तरह ‘बूढ़ा हो गया गब्बर’ की भी मांग होती रहती थी. हालांकि करिअर की शुरुआत में अमिताभ बच्चन की नकल किया करते थे. समय के साथ उन्हें महसूस हुआ कि केवल मिमिक्री करने से काम नहीं चलेगा. और फिर उन्होंने कहानी आधारित औब्जरवेशनल ह्यूमर वाली कौमेडी पर काम किया.
इस का फायदा यह हुआ कि उन्हें फिल्म वालों के फोन आने लगे. कई फिल्में औफर की गईं. तब उन्होंने एक और निर्णय लिया कि कौमेडी की कला को छोड़ फिल्मों की तरफ मुड़ना ठीक नहीं होगा. तब तक कौमेडियन के नाम से कई शो बनने लगे थे. ‘कौमेडी सर्कस’ में वह लगातार आए.
दूसरे रियलिटी शो में भी राजू ने अपनी धाक जमाई. जैसे 2009 में वह ‘बिग बौस’ में दिखे. यहां तक कि 2013-14 में वे अपनी पत्नी के साथ कपल डांस शो ‘नच बलिए’ में दिखे. कुल मिला कर 2007-2017 के बीच राजू तमाम शोज में आए.
उन की सफलता का सब से बड़ा प्रमाण 2011 में तब आया, जब सीबीएसई की 8वीं कक्षा की किताब में उन की जीवनकथा शामिल की गई. ‘गजोधर मेरा दोस्त’ टाइटल से छपे इस चैप्टर की खबर जब उन्हें मिली, तब उन्हें यकीन ही नहीं हुआ. उस के बाद राजू ने एक अंगरेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘मुझे लगता है ये पहली दफा है जब किसी कौमेडियन को इस तरह का गौरव प्राप्त हुआ है. मुझे लगता है कि महमूद साहब और जौनी लीवर को तो कब का किताबों में शामिल कर लिया जाना चाहिए था. पर चलो, ये सिलसिला शुरू तो हुआ.’
बहरहाल, राजू श्रीवास्तव की पहचान साफ सुथरी और परिवार के साथ देखने वाली कौमेडी की रही है. इस की वह वकालत किया करते थे.
इंटरनेट पर आज करोड़ों व्यूज पाने वाले स्टैंडअप आर्टिस्ट किसी भी तरह की सेंसरशिप से मुक्त हैं. इस बारे में राजू ने ही कहा था, ‘मैं ने अपने ऊपर सेंसर लगा रखा है कि मैं जब भी कौमेडी पेश करूं तो ये सोच कर करूं कि मेरे सामने मेरे परिवार वाले बैठे हैं. डबल मीनिंग जोक्स बहुत चलते हैं. आप पैसे भी कमा लेंगे ऐसे जोक सुना कर, लेकिन समाज में इज्जत नहीं मिलेगी.’
ज्यादातर लोगों को भले ही राजू श्रीवास्तव की पहली छवि ‘ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ में नजर आई हो, लेकिन राजू ने टीवी पर आने से पहले किशोर कुमार और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ वर्ल्ड टूर कर लिया था.
राजू श्रीवास्तव बताते हैं, ‘भीड़ और उन का रिस्पौंस तो मैं पहले ही देख चुका था, लेकिन लाफ्टर चैलेंज के बाद वो कई गुना बढ़ गया था.’
वर्ष 2019 में राजू ने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया था. और उस पर खासे एक्टिव रहे. टीवी पर वो जिस भी शो में वो एंट्री लेते, कभी भागते हुए आते तो कभी नाचते हुए. टीवी पर चलने वाला ‘पेट सफा’ का मशहूर विज्ञापन अब केवल एक याद बन कर रह जाएगा.
2005 के दौर में राजू को उन के गोल्डन पीरियड में टीवी पर देखने वाली पीढ़ी उन्हें एक ऐसे हंसोड़ के रूप में याद रखेगी, जो स्टेज पर हमेशा हंसते हुए घुसता था और अपने जोक्स पर खुद ही ताली बजा कर हंस देता था.
राजू श्रीवास्तव का झुकाव राजनीति की तरफ भी हुआ था. जाते हुए 2014 में अखिलेश यादव की पार्टी की तरफ से उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला, मगर वह उस पार्टी को छोड़ कर 11 मार्च, 2014 को भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ गए. बाद में स्वच्छ भारत अभियान की मुहिम को संभालने के लिए प्रधानमंत्री ने उन का नाम नामांकित किया था.
राजू श्रीवास्तव यानी गजोधर भैया भले ही हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन अपने चुटकुलों की वजह से वह लोगों के दिलों में हमेशा बने रहेंगे.