सोशल मीडिया एक्टर नहीं बनाता- देव सिंह

भोजपुरी फिल्मों में नैगेटिव रोल निभा कर कुछ गिनेचुने चेहरों ने ही पहचान बनाने में कामयाबी पाई है. इन्हीं ऐक्टरों में एक नाम है देव सिंह का. मिमिक्री से अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत करने वाले देव सिंह के फिल्मों में आने के पीछे की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है, जितनी किसी मसाला फिल्म की कहानी होती है.

एक मुलाकात में उन के फिल्मी सफर को ले कर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश:

आप के फिल्मों में आने की कहानी बहुत दिलचस्प रही है. क्या अपने चाहने वालों से इसे सा झा करना चाहेंगे?

मैं उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का रहने वाला हूं, लेकिन मेरा पालनपोषण पश्चिम बंगाल के आसनसोल में हुआ है. मेरे पिताजी वहां कोयले की खान में काम करते थे. बचपन में मेरा ऐक्टिंग की तरफ कोई रुझान नहीं था, लेकिन ग्रेजुएशन के दौरान अचानक मुझे ऐक्टिंग का शौक लग गया था.

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दरअसल, एक बार मैं आरकैस्ट्रा देखने गया था. मैं वहां सब से पीछे खड़ा था. लेकिन तभी मेरे मन से आवाज आई कि मैं यहां नहीं वहां स्टेज पर रहूं और लोग मुझे देखें. बस, उसी रात से नाम कमाने की भूख ने जन्म ले लिया और ऐक्टिंग की तरफ मेरा रुझान होता गया.

दरअसल, बाद में टेलीविजन पर एक शो देख कर मिमिक्री करने लगा, जो मेरे दोस्तों को बहुत पसंद आई. स्टेज पर आने के शौक को पूरा करने के लिए मैं एक आरकैस्ट्रा टीम में गया. वहां मुझे अमिताभ बच्चन के 38 डायलौग याद कर के बोलने के लिए कहा गया, जिन्हें मैं ने 2 घंटे में ही याद कर लिया था.

एक दोस्त की सलाह पर मैं दिल्ली आ गया. यहां से शुरू हुई जद्दोजेहद कर के एक एक्टर बनने की कहानी. दिल्ली में एक थिएटर ज्वौइन किया, जहां 3 महीने तक पोस्टकार्ड लिखने व चाय पिलाने और ब्रोशर बांटने का काम किया.

अचानक मेरे एक दोस्त ने कहा कि मुंबई जा कर जीरो लैवल से शुरुआत करो. इस के बाद मैं एक्टर बनने की चाहत ले कर सीधा मुंबई पहुंच गया, जहां लोगों ने मेरे भोलेपन का जम कर फायदा उठाया. लोग मेरे ही पैसे खा कर मुझे गलत बोलते थे, जिस की वजह से मैं धीरेधीरे डिप्रैशन में चला गया.

उस डिप्रैशन से निकलने के लिए मैं ने 3,000 रुपए की तनख्वाह पर सेल्समैन की नौकरी भी की. अभी नौकरी किए महीनाभर भी नहीं हुआ था कि मेरी मां की मौत हो गई. मैं निराश हो कर अपने गांव सहतवार आ गया और यहां मैं ने एक कपड़े की दुकान खोल ली.

लेकिन मेरा मन एक्टिंग में लगा रहता था, इसलिए मैं फिर से मुंबई आ गया. इस बार मुझे छोटेमोटे काम मिलने शुरू हो गए थे. फिर मेरी जद्दोजेहद रंग लाई और मुझे भोजपुरी की पहली फिल्म ‘दीवाना’ में काम मिला.

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इस फिल्म में मेरा बस एक ही सीन था, लेकिन उस एक सीन ने यह बताया कि कोई भी काम छोटा नहीं होता, बस सच्ची लगन होनी चाहिए. यही वह समय था, जहां से मेरे लिए फिल्मों के दरवाजे खुल गए.

भोजपुरी के दूसरे कई कामयाब कलाकारों की तरह क्या आप ने भी छोटे परदे पर काम किया है?

छोटा परदा किसी को भी कलाकार बनाने के लिए पहली क्लास है. कलर्स चैनल के सीरियल ‘भाग्य विधाता’ में मेरे किरदार को खूब पसंद किया गया था.

इस के अलावा ‘सीआईडी’, ‘अदालत’, ‘महाराणा प्रताप’, ‘जयजय बजरंग बली’, ‘शपथ’, ‘महिमा शनि देव की’, ‘इम्तिहान’, ‘सावधान इंडिया’ के कई ऐपिसोड में भी मैं ने काम किया है.

कोई नैगेटिव रोल निभाने के दौरान क्या कभी आप के मन में नैगेटिव खयाल भी आते हैं?

मैं फिल्मों में नैगेटिव किरदार में जितना दबंग और खतरनाक नजर आता हूं, असल जिंदगी में उतना ही सहज और मिलनसार हूं. ऐसे में किरदार से बाहर निकलने के बाद कभी भी नैगेटिव खयाल नहीं आते हैं.

आजकल नैगेटिव किरदार से निकल कर कई कलाकार कौमेडी और सीरियस किरदार करते हुए भी नजर आ रहे हैं. इस की क्या वजह है?

कोई भी कलाकार तभी पूरा होता है, जब वह सभी तरह के रोल में खुद को ढाल ले. जहां तक मेरा सवाल है, तो मैं भी वही कर रहा हूं.

आप की हिंदी फिल्म ‘किरकेट’ रिलीज होने वाली है. इस की कहानी कैसी है?

यह फिल्म बिहार में क्रिकेट पर हावी राजनीति पर बनी है. बिहार में क्रिकेट को ‘किरकेट’ कहा जाता है. इस फिल्म में मेरे साथ क्रिकेटर व सांसद रहे कीर्ति आजाद लीड रोल में हैं. फिल्म ‘किरकेट’ में मेरा किरदार एक विकेटकीपर का है. इस रोल के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी थी.

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आप के इस ऊंचाई तक पहुंचने में किस साथी कलाकार का अहम रोल रहा है?

मेरे फिल्मी करियर को आगे बढ़ाने में विशाल तिवारी और अवधेश मिश्र का प्रमुख योगदान रहा है. उन्होंने हर कदम पर मेरी मदद की है. इस के अलावा मैं ने जिन लोगों के साथ काम किया है, मैं उन का भी शुक्रगुजार हूं.

आप अपने किरदार में दम लाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं?

मेरी कोशिश रहती है कि मैं जिस किरदार को कर रहा हूं, उसे पूरी तरह से जी लूं. मैं ने फिल्म ‘विजेता’ के लिए अपने वजन को 14 किलो तक कम किया था, ताकि मैं धावक लगूं. फिल्म ‘छलिया’ के लिए थोड़े मसल्स बढ़ाए, ताकि कड़क दारोगा दिखूं.

आज की नई पीढ़ी सोशल मीडिया पर वीडियो बना कर ऐक्टर बनने का सपना देखती है. इस को ले कर आप का क्या नजरिया है?

सोशल मीडिया से संघर्ष कर के ऐक्टर नहीं बना जा सकता है. अगर ऐसा हो तो घरघर में ऐक्टर ही पैदा होने लगेंगे. ऐक्टर बनने के लिए कड़ी मेहनत और ऐक्टिंग की बारीकियों को सीखने की जरूरत होती है.

सुना है, आप अपनी फिटनैस को ले कर बहुत संजीदा रहते हैं?

आप ने बिलकुल सही सुना है. मैं अपने शरीर पर बहुत ध्यान देता हूं. हर दिन मैं जिम जाता हूं. अगर शूटिंग के लिए किसी छोटे शहर में भी रहता हूं तब वहां भी जिम ढूंढ़ लेता हूं. जहां मुझे जिम नहीं मिल पाता है, उस दिन मैं 4 से 5 किलोमीटर की दौड़ लगाता हूं.

आप अपने चाहने वालों से क्या कहना चाहेंगे?

मेरा यही मानना है कि कभी  झूठ न बोलें, कर्जदार न बनें, किसी की शिकायत या चुगली न करें. इन चीजों से दूर रहना आप की कामयाबी में मील का पत्थर साबित हो सकता है.

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