देश के ‘अमृत महोत्सव’ समय में किस तरह जातिवाद का जहर लोगों के मन में भरा हुआ है, यह राजस्थान के नागौर जिले में दिखा. यहां के खींवसर इलाके की दांतीणा ग्राम पंचायत में गांव की अलगअलग जातियों के पंचों (दबंगों) ने पंचायत परिसर में पंचायत बुला कर गांव के दलित सरपंच श्रवण राम मेघवाल का हुक्कापानी बंद करने का फरमान सुना दिया.
दबंग इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने सरपंच श्रवण राम मेघवाल को हाथ जुड़वा कर एक पैर पर खड़े रखा और उन पर 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है. यह पंचायत 9 दिसंबर, 2023 को हुई थी. अगर इस घटना का वीडियो सामने न आया होता, तो किसी को कानोंकान खबर तक न होती. पीड़ित सरपंच श्रवण राम मेघवाल ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराते हुए बताया कि उन के परिवार का गांव में रहना मुश्किल हो गया है.
सरपंच श्रवण राम मेघवाल ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने उन्हें फोन पर कहा कि आप वर्तमान सरपंच हो. आप के भाई मूलाराम ने जीतू सिंह की हत्या की है. इस वजह से आप के खिलाफ पंचायत में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा. आप को और आप के परिवार को गांवसमाज से बहिष्कृत करेंगे और हुक्कापानी बंद करेंगे. हम पंच जो फैसला करेंगे, वही मानना होगा.
इस के उलट सरपंच श्रवण राम मेघवाल ने कहा कि उन का जीतू सिंह की हत्या से कोई लेनादेना नहीं है. अगर उन का भाई मूलाराम कुसूरवार है, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था और कोर्ट सजा देगा.
याद रहे कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले के ही बगधरी गांव में मोहनदास करमचंद गांधी के जन्मदिन पर 2 अक्तूबर, 1959 को पहली बार पंचायती राज व्यवस्था लागू की थी और साल 2023 में अगर किसी सरपंच का जाति के आधार पर हुक्कापानी बन कर दिया जाता है, तो समझ लीजिए कि यह सामाजिक बुराई अभी भी लोगों के खून में दौड़ रही है.
एक और मामला देखिए. साल 2023 के जुलाई महीने में मध्य प्रदेश में एक दलित महिला सरपंच की बेरहमी से पिटाई करने की वारदात सामने आई थी.
हुआ यों था कि मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के कोलारस जनपद पंचायत के तहत ग्राम पंचायत पहाड़ी में अनुसूचित जाति तबके की महिला सरपंच गीता जाटव को दबंगों ने कीचड़ में पटक कर बीच रास्ते में जूतेचप्पल से पीटा था. उन्हें पूरे गांव के सामने जातिसूचक गालियां दे कर बेइज्जत किया था.
वैसे, इस के बाद 3 आरोपियों धर्मवीर यादव, रामवीर यादव और मुलायम यादव के खिलाफ मारपीट और एससीएसटी ऐक्ट में केस दर्ज कर लिया गया था.
दिक्कत यह है कि दलित समाज के पक्ष में बने कड़े कानून भी इन लोगों पर हो रहे जोरजुल्म को रोकने में नाकाम हो रहे हैं. उन्हें आज भी समाज के लिए धब्बा समझा जाता है. वे देश की आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी ‘अछूत’ कहे जाते हैं.
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के साल 2020 और साल 2021 में दलितों के साथ हो रहे अपराध को ले कर बने एक डाटा के मुताबिक, एससी तबके के खिलाफ सब से ज्यादा अपराध होने वाले राज्यों की लिस्ट में पहले नंबर पर मध्य प्रदेश था, जबकि साल 2019 में दलितों के साथ सब से ज्यादा अपराध किए जाने वाले राज्यों की लिस्ट में पहले नंबर पर राजस्थान था.
‘सब का साथ सब का विकास’ नारे को उछालने वाली भाजपाई केंद्र सरकार के राज में देशभर में एससी तबके के साथ जोरजुल्म होने की वारदातें बढ़ी ही हैं. मध्य प्रदेश में साल 2021 में अनुसूचित जनजाति के साथ हुए अपराध के 2,627 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 की तुलना में 29.8 फीसदी ज्यादा थे.
राजस्थान में साल 2020 की तुलना में साल 2021 में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. वहां एक साल में कुल 2,121 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि ओडिशा में साल 2021 में 676 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 की तुलना में 7.6 फीसदी ज्यादा थे.
महाराष्ट्र में साल 2021 में 628 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 से 7.13 फीसदी ज्यादा थे. तेलंगाना में दलितों के खिलाफ हुए अपराध के मामलों की बात करें, तो साल 2021 में 512 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2020 से 5.81 फीसदी ज्यादा थे.
ये तो कुछ राज्यों के महज 2 साल के ही आंकड़े हैं, पूरे देश में कमोबेश यही हाल है. एससी तबके को किसी काम का न समझने के पीछे धर्म और पंडेपुजारियों का बहुत बड़ा रोल है. अगर वे मंदिर में दानदक्षिणा देने लायक हैं, तो पंडेपुजारियों को पसंद आते हैं, वरना तो वे हिंदू ही नहीं माने जाते हैं.
दलित औरतों को तो और ज्यादा जिल्लत सहनी पड़ती है. उन्हें तो अपनी इज्जत तक बचानी भारी पड़ जाती है या यों कहें कि दबंगों द्वारा उन की इज्जत से खेल कर इस समाज को उस की ‘औकात’ बताई जाती है.
पर असलियत में अगर कोई समाज किसी खास तबके को नीचा समझ कर उसे सताता है, उस की इज्जत से खेलता है, उस के काम करने की काबिलीयत को सिरे से नकार देता है, तो वह अपना ही नुकसान करता है.
यह अपने शरीर को खुद पीड़ा देने के समान है, क्योंकि अगर निचलों का जन्म ब्रह्मा के पैरों से हुआ है, तो जान लीजिए कि यही पैर समाज के मजबूती से खड़े रहने की बुनियाद होते हैं. बिना पैरों के तो कोई भी इनसान लुंज ही कहलाएगा न?
लिहाजा, सरकार को दलितों पर जोरजुल्म करने वालों को देश का दुश्मन मानना चाहिए और अपने इस कमेरे तबके को ऊंचा उठाने के लिए हर लिहाज से कोशिश करनी चाहिए.