लेखक- बृहस्पति कुमार पांडेय
जबकि इन उद्योगों और उद्योगपतियों को जिन किसानों से अपना उद्योग चलाने के लिए ज्यादातर कच्चा माल मिलता है, उन के खेती उत्पादों को यही उद्योगपति और इन के बिचौलिए औनेपौने दाम में खरीद कर मोटा पैसा बनाते हैं.
देश के अन्नदाता तमाम मुसीबतों को झेल कर अनाज, फलफूल, सब्जियां, दूध उत्पाद वगैरह पैदा करते हैं और जब कीमत तय करने की बारी आती है तो इस के लिए उन्हें सरकार और बिचौलियों के भरोसे रहना पड़ता है. इसी वजह से अकसर किसानों को खेती में घाटा सहना पड़ता है.
उद्योगों के लिए सरकारी नीतियों में ढील से ले कर मनमाने तरीके से कीमत तय करने तक की छूट दी गई है, वहीं इन उद्योगपतियों के रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले किसानों और खेती उत्पादों को ले कर सरकारों का नजरिया सालों से ढीलाढाला ही रहा?है. इस का नतीजा है कि उद्योगपति दिन दूना रात चौगुना माल कमाते हैं, वहीं दूसरी ओर किसान माली तंगी का शिकार हो कर खुदकुशी जैसे सख्त कदम उठाते हैं.
सरकार द्वारा हर साल पेश होने वाले सरकारी बजट में भी किसानों को ले कर बस झुनझुना ही अब तक थमाया जाता रहा है. कभी मुफ्तखोरी, तो कभी जीरो बजट खेती का सपना दिखा कर किसानों की तरक्की के बड़ेबड़े दावे सरकारों द्वारा किए जाते रहे हैं, लेकिन किसानों की माली हालत सुधरने के बजाय दिनोंदिन बदतर होती जा रही है. नतीजतन, किसान और उस के परिवारों के लोग धीरेधीरे खेती से दूर होने लगे हैं और अपनी जरूरतभर की चीजें उगाने में लगे हैं.
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अगर किसानों को ले कर सरकारों का नजरिया ऐसा ही रहा तो एक दिन भारत की एक बड़ी आबादी को खाने के लाले पड़ जाएंगे. उस दौरान सरकार और उद्योगों के पास पछताने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा.
इन उलट हालात में भी जिन किसानों ने खुद को खेती से जोड़ कर वैज्ञानिक तरीका अपनाते हुए खेती की पहल की है, उन्हें खेती के जरीए न केवल बेहतर रोजगार मिला?है, बल्कि कीमत तय करने को ले कर सरकार और बिचौलियों से छुटकारा भी मिला है.
ऐसे किसानों ने लीक से हट कर खेती की शुरुआत की तो इन किसानों ने न केवल इज्जत और शोहरत बटोरी, बल्कि खेती भी दूसरे उद्योगों की तरह बेहतर रोजगार का जरीया बन गई.
ऐसे ही एक किसान?हैं कौशल कुमार सिंह, जो बस्ती जिले के हर्रैया तहसील के ब्लौक विक्रमजोत के रहने वाले हैं. उन्होंने खुद को उलट हालात से उबारते हुए वैज्ञानिक तरीके से नकदी फसलों की खेती कर के न केवल अपनी आमदनी में इजाफा किया है, बल्कि शानोशौकत और शोहरत भी हासिल की.
केले की खेती से शुरुआत : कौशल कुमार सिंह ने कुछ साल पहले 3 एकड़ खेत में केले की जी 9 प्रजाति की रोपाई करने का फैसला लिया. उन्होंने प्रति एकड़ की दर से 1300 पौधे रोपे. इस पर कुल 90,000 से
1 लाख रुपए तक की लागत आई.
उन्होंने इस फसल में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई मात्रा में खाद और उर्वरक का इस्तेमाल किया. नतीजा यह रहा कि आसपास के दूसरे किसानों की अपेक्षा उन के केले की एक घार का न्यूनतम औसत वजन
30 किलोग्राम से ज्यादा आया. इस तरह से उन्होंने महज 1 एकड़ खेत से तकरीबन
400 क्विंटल उपज हासिल की. इस से उन्हें
4 लाख रुपए की खालिस कमाई हुई. तब से वे लगातार केले की खेती करते आ रहे हैं.
अच्छी बात यह रही कि केले की मार्केटिंग को ले कर उन्हें जोखिम नहीं उठाना पड़ा क्योंकि केले के आढ़तियों ने घर से ही बाजार मूल्य से ज्यादा पैसा दे कर उन की फसल खरीद ली. वर्तमान में उन के यहां से एक थोक कारोबारी तकरीबन 70 क्विंटल केले की खरीदारी आराम से कर लेता है.
उन्होंने बताया कि केले की फसल में ज्यादातर फंगस का प्रकोप होता है. इस बीमारी से बचाव के लिए कार्बंडाजिम और कौपर औक्सीक्लोराइड का इस्तेमाल करते?हैं जिस से वे फसल को होने वाले नुकसान से बचा पाते हैं.
अनार ने दिलाई कामयाबी : जहां कौशल कुमार सिंह के आसपास के गांव के किसान पारंपरिक तौर पर गेहूं, धान व तिलहन की खेती करते हैं, वहीं उन्होंने अनार की उन्नत प्रजाति रोपने का फैसला किया और उन्होंने सवा बीघा खेत में अनार के पौधे रोप दिए. पौधों की रोपाई के दौरान उन्होंने पौधे से पौधे की दूरी
9 फुट और लाइन से लाइन की दूरी 9 फुट रखी.
कौशल कुमार सिंह द्वारा लगाए गए अनार के पौधे से हर साल अच्छी तादाद में फूल मिल जाते?हैं. उन्होंने बताया कि अनार की फसल के साथ सहफसल के रूप में वे सूरन की गजेंद्र प्रजाति की खेती कर रहे हैं जिस से उन्हें अच्छीखासी आमदनी होती है. साथ ही, एक फसल के खराब होने की दशा में उन्हें नुकसान न के बराबर होने की संभावना होती है.
स्ट्राबेरी उपजाने वाले पहले किसान : कौशल कुमार सिंह बस्ती जिले के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्होंने बिना पौलीहाउस या ग्रीनहाउस लगाए भरपूर मात्रा में स्ट्राबेरी की फसल उगाने में काबयाबी पाई है.
उन्होंने स्ट्राबेरी के पौधों को हरियाणा से मंगा कर अपने खेतों में रोपा. वे स्ट्राबेरी के खेत में किसी तरह के रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं करते?हैं. साथ ही, स्ट्राबेरी से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए वे मेंड़ों पर मल्चिंग कर उस पर स्ट्राबेरी की रोपाई करते?हैं. इस से खेत में अनावश्यक रूप से खरपतवार की रोकथाम अपनेआप हो जाती है और पौधों की बढ़वार व फलों का विकास भी तेजी से होता?है.
कौशल कुमार सिंह के खेतों में तैयार स्ट्राबेरी के फल बाजार में बिकने वाले स्ट्राबेरी के फलों की अपेक्षा डेढ़ से दोगुना बड़े आकार के होते हैं और स्वाद भी उन से ज्यादा अच्छा होता?है.
रिंगपिट विधि से गन्ने की बोआई : गन्ने की खेती में किसानों को ऊंची लागत और बढ़ती मेहनत के बावजूद भी उत्पादन कम मिलता है. ऐसे किसानों को उम्मीद से कम मुनाफा मिल पाता?है.
इस समस्या से निबटने के लिए किसान कौशल कुमार सिंह ने पारंपरिक तरीके से गन्ने की खेती को छोड़ रिंगपिट विधि से खेती करने का फैसला लिया. इस से उन की खेती की लागत में न केवल कमी आई है, बल्कि उत्पादन में भी अच्छाखासा इजाफा हुआ है.
उन्होंने बताया कि रिंगपिट विधि से गन्ना बोने के लिए खेत की जुताई करने की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि इस तरह के गन्ने की बोआई के लिए रिंगपिट डिगर मशीन से खेत में गड्ढे तैयार करते?हैं. इस में एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे की दूरी 120 सैंटीमीटर होती है और हरेक गड्ढा 90 सैंटीमीटर व्यास का होता?है.
इस तरह 1 एकड़ में गड्ढे तैयार करने पर तकरीबन 2500-2700 गड्ढे तैयार हो जाते?हैं. इन गड्ढों की गहराई तकरीबन 30 सैंटीमीटर से 45 सैंटीमीटर के आसपास रखी जाती है.
उन्होंने यह भी बताया कि वे गन्ने की बोआई के पहले गड्ढों में 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 60 ग्राम एनपीके, 40 ग्राम यूरिया और 5 ग्राम फोरेट या फुराडान डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं. इस तरह प्रति एकड़ तकरीबन 100 क्विंटल गोबर की खाद की जरूरत पड़ती?है.
उर्वरक के रूप में 150 किलोग्राम एनपीके, 104 किलोग्राम यूरिया और
12 किलोग्राम फुराडौन का इस्तेमाल करते?हैं.
इस के बाद वे गन्ने के 2 से 3 आंख वाले काटे गए टुकड़ों को 0.2 फीसदी बाविस्टीन के घोल में 20 मिनट तक डुबो कर उपचारित करते?हैं और बोआई के लिए खोदे गए गन्ने के टुकड़े साइकिल के पहिए की तीलियों की तरह गोलाई में बो देते हैं.
इस तरह उन को प्रति एकड़ खेत के लिए तकरीबन 55 से 60 क्विंटल गन्ना बीज की जरूरत पड़ती है. गड्ढों में गन्ने की बोआई के बाद ऊपर से मिट्टी की परत डाल कर ढक देते?हैं. इस तरह से बोए गए गन्ने का जमाव भी अच्छा होता?है.
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रिंगपिट विधि से गन्ने की बोआई से सिंचाई, उर्वरक देना, पत्तियों की?छंटाई और कटाई आसान हो जाती?है और उपज भी अच्छी मिलती है.
उन्होंने बताया कि सामान्य विधि से गन्ने की बोआई करने पर महज 300-400 क्विंटल उपज मिलती थी. लेकिन रिंगपिंट विधि से गन्ना बोने से उपज दोगुनी मिलने लगी है.
अगर समय से रिंगपिट विधि से बोआई की जाए और संस्तुत मात्रा में खादउर्वरक का इस्तेमाल किया जाए तो यह उत्पादन 1,000 क्विंटल प्रति एकड़ तक मिल सकता है.
खेती में जरूरी संसाधनों का इस्तेमाल?: कौशल कुमार सिंह खेती में काम आने वाले सभी तरह के आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल करते हैं. वे खेती के लिए छोटेबड़े सभी यंत्र खरीद रहे?हैं. वर्तमान में उन के पास ट्रैक्टर, ट्रौली और उस में उपयोग आने वाले यंत्र जैसे रोटावेटर, रिंगपिट डिगर, कल्टीवेटर जैसे तमाम यंत्र हैं.
जंगली पशुओं से फसल बचाने के पुख्ता इंतजाम?: कौशल कुमार सिंह ने अपनी बोई गई फसल को जंगली पशुओं से बचाने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हुए हैं.
उन्होंने केला, अनार, सूरन, स्ट्राबेरी वगैरह फसलों की सुरक्षा के लिए कंटीले तारों से पूरे खेत की फेसिंग कराई है. उन के?द्वारा की
गई व्यावसायिक फसल की सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के चलते फसल को कोई नुकसान नहीं
पहुंचता है.
कौशल कुमार सिंह वर्तमान में अनार, केला, स्ट्राबेरी, गन्ना, सूरन के साथ ही साथ आलू, टमाटर, मटर, गेहूं, धान की फसलें वगैरह भी लेते हैं. इन फसलों से उन्हें भरपूर उपज मिलती है. डिजिटल और उन्नत तकनीक के चलते उन्हें किसी तरह की मार्केटिंग की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.
कौशल कुमार सिंह को बस्ती जिले में आम आदमी से ले कर नेता, जनप्रतिनिधि व सरकारी महकमों के अधिकारीकर्मचारी भी इज्जत व सम्मान देते हैं.
कौशल कुमार सिंह का कहना है कि किसानों को पारंपरिक तरीकों के साथसाथ आधुनिक तरीकों को अपनाते हुए खेती करनी होगी. उन्नत तकनीक के जरीए ही किसान फसल उत्पादन बढ़ाने के साथ जोखिम और मार्केटिंग की समस्या से छुटकारा पा सकता है.
वे कहते हैं कि किसानों को खेती के आधुनिक तरीके अपनाने होंगे तभी खेती से परिवार के लोगों की सामान्य जरूरतें पूरी की जा सकें.
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उन के मुताबिक, किसान उन्नत तकनीक के जरीए न केवल खुद को दीनहीन स्थिति से उबार सकता?है, बल्कि इज्जत और सम्मान भी पा सकता है. ठ्ठ