इन तकनीको से ज्यादा समय तक याद रखें !

सर्दियों में पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना होगा, जल्द ही आपके बोर्ड परीक्षा होने वाले है , वहीं अगर आप टॉप कॉलेज में  नामांकन के लिए आयोजित होने वाले परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है, आप के लिए भी यह समय बहुत खास है, 3 महीने के उपरांत आप सभी का परीक्षा होने वाला है , तो आईए जानते है, 06 विंदुओ में  कैसे नए तकनीक के मदद से पढ़े और कम समय में अधिक टॉपिक याद रखे.

  1. अपना नोट्स खुद बनाये – आज सूचना क्रांति के इस युग में इंटरनेट ने शिक्षा को एक व्यापक स्वरूप प्रदान किया है. जिसके चलते युवाओं की पढ़ाई के तरीके में काफी बदलाव आ गया है. पहले इतिहास, भूगोल, हिंदी जैसे किसी भी विषय को विद्यार्थी पहले बार बार पढ़कर बोल-बोलकर याद किया करते थे. वहीं अब इन विषयों को विद्यार्थी एक टेक्निकल एप्रोच के साथ पढ़ते हैं. जिसमें वे चार्ट बनाकर या फिर एक पूरा पैटर्न बनाकर विषयों को समझते और याद करते हैं. जिससे न तो उन्हें विषय बोरिंग लगते हैं और वे उन्हें लंबे समय तक भी याद रख पाते हैं.

2. चार्ट पैटर्न – बैंक परीक्षाओं की तैयारी करने वाली मनीषा का कहना है कि याद करने का सबसे बेस्ट तरीका चार्ट पैटर्न है. इसमें कम शब्दों में एक पेज में सारी महत्वपूर्ण जानकारी सही सही रूप में आ जाती है. जिससे दो-तीन बार ध्यान से पढ़ने पर सारी जानकारी याद हो जाती है. मै अपने सभी छात्रों का इसका सुझाव देती हूँ . अब छात्र एग्जाम के समय इसी पैटर्न से पढ़ाई करते हैं. इससे कम समय में मैं किसी भी टॉपिक का अधिक से अधिक पोर्शन कवर कर लेती हूं.

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3. शॉर्ट फार्म से होती आसानी- बॉयो सब्जेक्ट लेकर पढ़ाई कर रहे छात्रों को अक्सर यह परेशानी होती है कि उन्हें बॉटनी, जूलॉजी और केमेस्ट्री में टॉपिक्स को याद रखने में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है. सबसे ज्यादा दिक्कत होती है पौधों और पशु-पक्षियों के वैज्ञानिक नाम और केमेस्ट्री में केमिकल रिएक्शन से जुड़ी चीजों को याद रखने में. अब इन्हें याद रखने के लिए युवाओं ने एक नया रास्ता खोज लिया है. जिसमें किसी भी प्राणी के वैज्ञानिक नाम का पहले और आखिरी अक्षर को मिलाकर एक शॉर्ट फॉर्म तैयार कर लेते हैं. जिससे वे नाम उन्हें आसानी से याद हो जाते हैं.

4. पीक्यूआरएसटी पैटर्न – पढ़ाई का सबसे बेस्ट तरीका है पीक्यूआरएसटी पैटर्न. जिसमें पी का अर्थ है प्रीव्यू मतलब पढ़ने से पहले विषय पर एक सरसरी नजर डालना. उसके पश्चात उस विषय से संबंधित क्वेश्चन तैयार करना. फिर उस टॉपिक को ध्यान से पढ़ते हुए निकाले गए प्रश्नों के उत्तर तैयार करना. इसके पश्चात तैयार उत्तरों का सेल्फ रेसीटेशन करना और अंत में याद किए हुए विषय का सेल्फ टेस्ट लेना.यह पैटर्न जहां पढ़ाई को रोचक बनाता है, वहीं इसके माध्यम से विद्यार्थी लम्बे समय तक विषय को याद रख सकते हैं. इसके लिए वह जो भी टॉपिक पढ़ रहे हैं उसे अपने आस-पास के माहौल से जोड़ते चलते है जिससे उन्हें उस विषय को याद रखने में आसानी होती है. तो वहीं थोड़ा सा भी क्लिक होने पर एग्जाम टाइम पर बेहतर ढंग से लिख पाते हैं.

5. पहले अक्षर से याद – कुछ शब्द बहुत कठिन होने है, लेकिन उन्हें भी याद रखना पड़ता है, इसके लिए आप नोट्स बनाते समय महत्वपूर्ण टॉपिक्स के पहले लेटर को कोड करते हुए एक स्पेशल वर्ड बना सकते हैं. जिससे हल्का रिवीजन करने से भी वह टॉपिक माइंड में सेट हो जाता है.

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6. स्पाइडर नोट टेक्निक – जब किसी विशालकाय टॉपिक के नोट्स बनाने होते हैं तो छात्र इस पैटर्न का उपयोग करते हैं. विद्यार्थी सोशलॉजी व हिस्ट्री के नोट्स तैयार करने में ज्यादातर इसका प्रयोग किया करते हैं, जिसके अंतर्गत वह किसी पाइंट को केंद्र में रखकर उससे संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दुओं की एक श्रेणी तैयार कर लेते हैं, जिससे उस टॉपिक से संबंधित सारे महत्वपूर्ण बिन्दु दिमाग में बैठने के साथ ही शॉर्ट नोट्स के रूप में तैयार हो जाते हैं.

डाक्टर के बजाय चपरासी क्यों बनना चाहते हैं युवा

2017 में मध्य प्रदेश और 2018 में उत्तर प्रदेश के बाद इस साल खबर गुजरात से आई है कि गुजरात हाईकोर्ट और निचली अदालतों में वर्ग-4 यानी चपरासी की नौकरी के लिए 7 डाक्टर और 450 इंजीनियरों सहित 543 ग्रेजुएट और 119 पोस्टग्रेजुएट चुने गए. इस खबर के आते ही पहली आम प्रतिक्रिया यह हुई कि क्या जमाना आ गया है जो खासे पढ़ेलिखे युवा, जिन में डाक्टर भी शामिल हैं, चपरासी जैसी छोटी नौकरी करने के लिए मजबूर हो चले हैं. यह तो निहायत ही शर्म की बात है.

गौरतलब है कि चपरासी के पदों के लिए कोई 45 हजार ग्रेजुएट्स सहित 5,727 पोस्टग्रेजुएट और बीई पास लगभग 5 हजार युवाओं ने भी आवेदन दिया था. निश्चितरूप से यह गैरमामूली आंकड़ा है, लेकिन सोचने वालों ने एकतरफा सोचा कि देश की और शिक्षा व्यवस्था की हालत इतनी बुरी हो चली है कि कल तक चपरासी की जिस पोस्ट के लिए 5वीं, 8वीं और 10वीं पास युवा ही आवेदन देते थे, अब उस के लिए उच्चशिक्षित युवा भी शर्मोलिहाज छोड़ कर यह छोटी नौकरी करने को तैयार हैं. सो, ऐसी पढ़ाईलिखाई का फायदा क्या.

शर्म की असल वजह

जाने क्यों लोगों ने यह नहीं सोचा कि जो 7 डाक्टर इस पोस्ट के लिए चुने गए उन्होंने डाक्टरी करना गवारा क्यों नहीं किया. वे चाहते तो किसी भी कसबे या गांव में क्लीनिक या डिस्पैंसरी खोल कर प्रैक्टिस शुरू कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसी तरह इंजीनियरों के लिए भी प्राइवेट कंपनियों में 20-25 हजार रुपए महीने वाली नौकरियों का टोटा बेरोजगारी बढ़ने के बाद भी नहीं है, लेकिन उन्होंने सरकारी चपरासी बनना मंजूर किया तो बजाय शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा के गिरते स्तर को कोसने के, इन युवाओं की मानसिकता पर भी विचार किया जाना चाहिए.

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दरअसल, बात शर्म की इस लिहाज से है कि इन उच्चशिक्षित युवाओं ने अपनी सहूलियत और सरकारी नौकरी के फायदे देखे कि यह नौकरी गारंटेड है जिस में एक बार घुस जाने के बाद आसानी से उन्हें निकाला नहीं जा सकता. तनख्वाह भी ठीकठाक है और ट्रांसफर का भी ?ां?ाट नहीं है. अलावा इस के, सरकारी नौकरी में मौज ही मौज है जिस में पैसे काम करने के कम, काम न करने के ज्यादा मिलते हैं. रिटायरमैंट के बाद खासी पैंशन भी मिलती है और छुट्टियों की भी कोई कमी नहीं रहती. घूस की तो सरकारी नौकरी में जैसे बरसात होती है और इतनी होती है कि चपरासी भी करोड़पति बन जाता है.

इन युवाओं ने यह भी नहीं सोचा कि उन के हाथ में तकनीकी डिगरी है और अपनी शिक्षा का इस्तेमाल वे किसी भी जरिए से देश की तरक्की के लिए कर सकते हैं. निश्चित रूप से इन युवाओं में स्वाभिमान नाम की कोई चीज या जज्बा नहीं है जो उन्होंने सदस्यों को चायपानी देने वाली, फाइलें ढोने वाली और ?ाड़ ूपोंछा करने वाली नौकरी चुनी.

देश में खासे पढ़ेलिखे युवाओं की भरमार है लेकिन डिगरी के बाद वे कहते क्या हैं, इस पर गौर किया जाना भी जरूरी है. इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी के इस युग में करोड़ों युवा प्राइवेट कंपनियों में कम पगार पर नौकरी कर रहे हैं जो कतई शर्म की बात नहीं क्योंकि वे युवा दिनरात मेहनत कर अभावों में रह कर कुछ करगुजरने का जज्बा रखते हैं और जैसेतैसे खुद का स्वाभिमान व अस्तित्व दोनों बनाए हुए हैं.

ऐसा नहीं है कि उन युवाओं ने एक बेहतर जिंदगी के ख्वाब नहीं बुने होंगे लेकिन उन्हें कतई सरकारी नौकरी न मिलने का गिलाशिकवा नहीं. उलटे, इस बात का फख्र है कि वे कंपनियों के जरिए देश के लिए कुछ कर रहे हैं.

इस बारे में इस प्रतिनिधि ने भोपाल के कुछ युवाओं से चर्चा की तो हैरत वाली बात यह सामने आई कि मध्य प्रदेश के लाखों युवाओं ने चपरासी तो दूर, शिक्षक, क्लर्क और पटवारी जैसी मलाईदार सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन ही नहीं किया. उन के मुताबिक, इस से उन की पढ़ाई का मकसद पूरा नहीं हो रहा था.

एक नामी आईटी कंपनी में मुंबई में नौकरी कर रही 26 वर्षीय गुंजन का कहना है कि उस के मातापिता चाहते थे कि वह भोपाल के आसपास के किसी गांव में संविदा शिक्षक बन जाए. लेकिन गुंजन का सपना कंप्यूटर साइंस में कुछ करगुजरने का था, इसलिए उस ने विनम्रतापूर्वक मम्मीपापा को दिल की बात बता दी कि अगर यही करना था तो बीटैक में लाखों रुपए क्यों खर्च किए, बीए ही कर लेने देते.

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यही रोना भोपाल के अभिषेक का है कि पापा चाहते थे कि वह एमटैक करने के बाद कोई छोटीमोटी सरकारी नौकरी कर ले जिस से घर के आसपास भी रहे और फोकट की तनख्वाह भी मिलती रहे. लेकिन उन की बात न मानते हुए अभिषेक ने प्राइवेट सैक्टर चुना और अब नोएडा स्थित एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में अच्छे पद और पगार पर काम कर रहा है.

गुंजन और अभिषेक के पास भले ही सरकारी नौकरी न हो लेकिन एक संतुष्टि जरूर है कि वे ऐसी जगह काम कर रहे हैं जहां नौकरी में मेहनत करनी पड़ती है और उन का किया देश की तरक्की में मददगार साबित होता है. सरकारी नौकरी मिल भी जाती तो उस में सिवा कुरसी तोड़ने और चापलूसी करने के कुछ और नहीं होता.

लेकिन इन का क्या

गुजरात की खबर पढ़ कर जिन लोगों को अफसोस हुआ था उन्हें यह सम?ाना बहुत जरूरी है कि गुजरात के 7 डाक्टर्स और हजारों इंजीनियर्स के निकम्मेपन और बेवकूफी पर शर्म करनी चाहिए.

इन लोगों ने मलाईदार रास्ता चुना जिस में अपार सुविधाएं और मुफ्त का पैसा ज्यादा है. घूस भी है और काम कुछ करना नहीं है. डाक्टर्स चाहते तो बहुत कम लागत में प्रैक्टिस शुरू कर सकते थे, इस से उन्हें अच्छाखासा पैसा भी मिलता और मरीजों को सहूलियत भी रहती. देश डाक्टरों की कमी से जू?ा रहा है गांवदेहातों के लोग चिकित्सकों के अभाव में बीमारियों से मारे जा रहे हैं और हमारे होनहार युवा डाक्टर सरकारी चपरासी बनने को प्राथमिकता दे रहे हैं.

क्यों इन युवाओं ने किसी प्राइवेट कंपनी में चपरासी की नौकरी स्वीकार नहीं कर ली, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि इन की मंशा मोटी पगार वाली सरकारी चपरासी की नौकरी करने की थी. यही बात इंजीनियरों पर लागू होती है जिन्हें किसी बड़े शहर में 30-40 हजार रुपए महीने की नौकरी भार लगती है, इसलिए ये लोग इतनी ही सैलरी वाली सरकारी चपरासी वाली नौकरी करने के लिए तैयार हो गए. हर साल इन्क्रिमैंट और साल में 2 बार महंगाईभत्ता सरकारी नौकरी में मिलता ही है जिस से चपरासियों को भी रिटायर होतेहोते 70 हजार रुपए प्रतिमाह तक सैलरी मिलने लगती है.

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गुंजन और अभिषेक जैसे देशभर के लाखों युवाओं के मुकाबले ये युवा वाकई किसी काम के नहीं, इसलिए ये सरकारी चपरासी पद के लिए ही उपयुक्त थे. इन्हीं युवाओं की वजह से देश पिछड़ रहा है जो अच्छी डिगरी ले कर कपप्लेट धोने को तैयार हैं लेकिन किसी प्रोजैक्ट इनोवेशन या नया क्रिएटिव कुछ करने के नाम पर इन के हाथपैर कांपने लगते हैं, क्योंकि ये काम और मेहनत करना ही नहीं चाहते.  इस लिहाज से तो बात वाकई शर्म की है.

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