Society News in Hindi: भारत में ट्रैफिक सिगनल (Traffic Signal) की लाल बत्ती पर किसी फटेहाल औरत का अपनी गोद में बच्चा लिए किसी कार की तरफ दौड़ना या किसी छोटे बच्चे के साथ विकलांग (Handicap) बूढ़े का भीख मांगना दिखाई देना आम बात है. आप को रेलवे स्टेशनों (Railway Station), मैट्रो स्टेशनों (Metro Station), पर्यटन स्थलों (Tourist Places), मंदिरों में भीख मांगते हुए कई लोग मिलेंगे और कई ऐसी जगहों पर तो रोजाना मिलेंगे जहां भीड़ ज्यादा होती है. ऐसी ही कुछ वजहों के चलते भारत में भीख (Begging) मांगना सब से गंभीर सामाजिक बुराइयों (Social Evils) में से एक है. देश में कुछ भिखारी असली हैं, जो काम करने में नाकाम हैं क्योंकि वे बूढ़े या शरीर से लाचार हैं. उन्हें बुनियादी जरूरतों के लिए पैसे की जरूरत है, इसीलिए वे भीख मांगते हैं. ऐसे कई लोग हैं जो गरीबी रेखा (Poverty line) से नीचे हैं और अपना पेट भरने के लिए भीख मांगते हैं.
कुछ मामले ऐसे हैं जिन में पूरे परिवार के सदस्य भीख मांगने में शामिल हैं. इस तरह के परिवारों के बच्चे स्कूल नहीं जाते, बल्कि भीख मांगते हैं. वे भीख इसलिए भी मांगते हैं क्योंकि उन के परिवार की एक दिन की आमदनी में पूरे परिवार को खिलाने के लिए जरूरत के मुताबिक पैसा नहीं है.
भीख मांगना एक घोटाला
भारत में भीख मांगने वालों का एक बड़ा रैकेट बन गया है. कई लोगों के लिए भीख मांगना किसी दूसरे पेशे की तरह है. वे पैसे कमाने के लिए बाहर जाते हैं. वे काम कर के नहीं बल्कि भीख मांग कर कमाना चाहते हैं.
ऐसे लोग गिरोह के साथ दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों में भीख मांग रहे हैं. इन गिरोहों के अपने नेता होते हैं. हर नेता भिखारियों के एक समूह को खास इलाका बांटता है और रोजाना की कमाई उन के बीच साझा करता है.
भिखारियों का नेता अपने पास बड़ा हिस्सा रखता है और बाकी हिस्सा भिखारियों में बांट देता है. ये भिखारी भीख मांगने में इतने लीन हो जाते हैं कि इस के अलावा और कोई काम नहीं करना चाहते हैं.
यह पता लगाना मुश्किल है कि कौन असली भिखारी है और कौन बनावटी भिखारी है क्योंकि दोनों देखने में एकजैसे ही लगते हैं. यहां तक कि उन के बच्चों को भीख मांगने और असली दिखने के लिए ठीक से ट्रेंड किया जाता है. जब हम एक जवान को उस के छोटे बच्चे को पकड़े हुए सड़कों पर भीख मांगते हुए देखते हैं तो कभीकभी उन के चेहरे को देख कर हमारे दिल पसीज जाते हैं.
ज्यादातर मामलों में बच्चे को सोते (नशे की हालत में) हुए पाया जाता है, यकीनी तौर पर यह एक घोटाला है. कई स्टिंग औपरेशनों से पता चला है कि भीख मंगवाने में बच्चों को किराए पर लिया जाता है. कभीकभी बच्चों को पूरे दिन के लिए नशा दे दिया जाता है ताकि वे बीमार लगें.
भिखारी को बहुत अच्छे ढंग से ट्रेनिंग दी जाती है ताकि जब वह भीख मांग रहा हो तो आप उन्हें पैसे देने के लिए राजी हो जाएं, खासतौर पर विदेशियों के लिए.
भिखारी देश में असामाजिक तत्त्व बन जाते हैं. वे सभी ड्रग्स का सेवन करने लगते हैं. ड्रग्स खरीदने के लिए पहले वे भीख मांगना शुरू करते हैं, फिर जब जेबखर्च धीरेधीरे बढ़ता है तो वे लूट और हत्या जैसे बड़े अपराधों में शामिल हो जाते हैं.
देश में 4 लाख से भी ज्यादा भिखारी हैं. सब से ज्यादा भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं और सब से कम भिखारी के मामले में लक्षद्वीप है. वहां महज 2 भिखारी हैं.
लोकसभा में एक लिखित सवाल का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जनसंख्या सर्वे 2011 में जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर यह जानकारी मुहैया कराई गई है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में कुल 4 लाख, 13 हजार, 670 भिखारी हैं, जिस में से 2 लाख, 21 हजार, 673 मर्द और एक लाख, 91 हजार, 997 औरतें हैं.
देशभर में पश्चिम बंगाल में भिखारियों की तादाद सब से ज्यादा 81 हजार, 224 है. इस के बाद नंबर आता है उत्तर प्रदेश का जहां 65 हजार, 835 भिखारी हैं. तीसरे नंबर पर बिहार है जहां 29 हजार, 723 भिखारी हैं. मध्य प्रदेश में 28 हजार, 695 भिखारी हैं.
पूर्वोत्तर के राज्यों में भिखारियों की तादाद असम में सब से ज्यादा है और मिजोरम में सब से कम. दक्षिण के राज्यों में सब से कम भिखारी केरल में हैं तो सब से ज्यादा भिखारी आंध्र प्रदेश में हैं.
इस आंकड़े के मुताबिक, पश्चिम बंगाल सहित असम, मणिपुर जैसे राज्यों में मर्द भिखारियों के मुकाबले औरत भिखारियों की तादाद ज्यादा है. केंद्रशासित प्रदेशों में सब से ज्यादा भिखारी दिल्ली में हैं. दिल्ली में कुल 12,187 भिखारी हैं, जबकि चंडीगढ़ में कुल 723.
क्या करना चाहिए भारत में तेजी से भिखारियों की तादाद में बढ़ोतरी हो रही है. सरकार, विभिन्न संगठन, कार्यकर्ता दावा करते हैं कि भिखारियों को खत्म करने के लिए कई उपाय किए गए हैं और कुछ हद तक कामयाब भी हुए हैं. लेकिन भीख मांगने की आदत अभी भी जारी है.
इस के लिए हमें भी कुसूरवार ठहराया जाना चाहिए क्योंकि हम भारतीयों के रूप में बहुत रूढ़िवादी और ऊपर वाले से डरने वाले हैं. हम ने अपने मन को धार्मिक सीमा में बांध रखा है. यह हमें दान करने के लिए मजबूर करता है और दान करने का सब से आसान तरीका है कि पास के मंदिर में जाएं और वहां पर भिखारियों को भीख दें. यह उन्हें निकम्मा बनाता है और आम आदमी को रिश्वत देने की आदत डालता है.
यह सेवा का काम नहीं है. भीख देना बंद करना चाहिए. भले ही चाहे ऐसा लगे कि हम बेरहम हैं, पर जब कोई छोटा बच्चा सड़क पर भीख मांगने के लिए आए तो उसे पैसा न दिया जाए. यह एक ऐसा कदम है जिस से भिखारियों को कम करने में कुछ हद तक मदद मिल सकती है.