जो रिकार्ड राजेश खन्ना और अमिताभ ना तोड़ सकें, नवाजुद्दीन तोड़ेंगे

नवाजुद्दीन सिद्दीकी बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक लेकर आ रहे हैं. रिलीज होने से पहले ही फिल्म दर्शकों के बीच छाई हुई है. फिल्म की पौपुलैरिटी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके नाम एक ऐसा रिकार्ड दर्ज होने वाला है जो राजेश खन्ना और अमिताभ जैसे दिग्गजों को भी नसीब नहीं हुआ.

असल में फिल्म ठाकरे को महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में सुबह चार बजे का शो भी मिला है. दर्शकों के बीच फिल्म के क्रेज को देखते हुए फिल्म के शोज की संख्या बढ़ाई गई है जिसके कारण फिल्म का शो सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाएगा. मुंबई के वडाला इलाके के मल्टीप्लैक्स में यह सुबह सवा चार बजे के शो में रिलीज हो रही है.

हिंदी सिनेमा के इतिहास में पहली बार होगा ऐसा

जी हां, हिंदी सिनेमा के इतिहास में संभवत: यह पहली बार ऐसा होगा कि सुबह चार बजे से ही किसी फिल्म का प्रदर्शन सिनेमाघरों में शुरू हो जाएगा. इससे पहले ऐसी दिवानगी राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के लिए देखी जाती थी. उनकी कुछ फिल्में सिनेमाघरों में सुबह छ: बजे प्रदर्शित की गई हैं. पर संभवत: पहली बार किसी फिल्म को सुबह चार बजे से लगाया जाएगा. इस बात की जानकारी देख के मशहूर ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने दी है. आपको बता दें कि वडाला के अलावा महाराष्ट्र के लातूर और अन्य शहरों में भी इस तरह के शो रखे गए हैं। पहले ऐसा क्रेज अमिताभ और राजेश खन्ना को हासिल था.

इस तरह की दीवानगी रजनीकांत की फिल्मों को लेकर साउथ इंडिया में देखी जाती है. इसके बाद नवाज की इस फिल्म के लिए लोगों में ऐसा जुनून देखने को मिल रहा है.

आसान नहीं था फिल्म ‘ठाकरे’ बनाना, ये थी चुनौती

अमूमन बौलीवुड में हर बायोपिक फिल्म में उस इंसान का महिमा मंडन ही किया जाता रहा है, फिर चाहे वह संजय दत्त की बायोपिक फिल्म ‘संजू’ हो या कोई अन्य बायोपिक फिल्म. ऐसा करते समय संबंधित इंसान के स्याह पक्ष को पूरी तरह से फिल्म में नजरंदाज किया जाता रहा है.

मगर शिवसेना प्रमुख स्व. बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक फिल्म ‘ठाकरे’ के निर्देशक अभिजीत पनसे का दावा है कि बाला साहेब ठाकरे स्वंय हीरो हैं, इसलिए उन्हे उनकी हीरोइक छवि दिखाने के लिए महिमा मंडित करने की जरुरत नहीं पड़ी. वो कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि बाला साहेब को हीरोइक दिखाने की हमारे सामने कोई चुनौती नहीं थी. बल्कि फिल्म के इंटरवल से पहले के हिस्से में हमारे सामने इस बात की चुनौती थी कि उन्हे हीरोइक किस तरह न दिखाया जाए. वो तो पूरे देश के हीरो थे. हमने फिल्म में वास्तविकता का दामन नहीं छोड़ा. दो ढाई घंटे में उनकी पूरी जीवनी को दिखाना संभव नहीं है. मगर देश और महाराष्ट्र को लेकर उनके जो विचार थे, उन्हें हमने पूरी ईमानदारी और वास्तविक रूप से चित्रित किया है. हमने कुछ भी कल्पना नहीं की.’

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