65 साल की उम्र में की शादी, कर्मकांडों में फंसा

दलित समाज  

बाबा साहब अंबेडकर और कांशीराम ने दलित समाज को कर्मकांडों से बाहर निकालने के लिए बहुतेरे उपाय किए थे. बहुजन समाज पार्टी के लोग ‘बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा’ नारा लगाते थे.

बहुजन समाज पार्टी और बामसेफ के कार्यक्रमों में दलित समाज की चेतना को जगाने के लिए तमाम उदाहरण दिए जाते थे कि मूर्तिपूजा और मंदिर जाने से कोई फायदा नहीं होने वाला.

मायावती के भाषण की एक सीडी वायरल हुई थी, जिस में वे कहती हैं कि ‘जो देवीदेवता कुत्तों से अपनी रक्षा नहीं कर पाते, वे आप की रक्षा कैसे करेंगे?’

बाद में सत्ता के लिए जब मायावती ने अगड़ी जातियों के साथ समझौते किए, तो बसपा का यह मिशन गायब हो गया. तब बसपा का नारा ‘हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा, विष्णु, महेश है’ हो गया. इस का असर दलितों की सोच पर भी पड़ा.

जो दलित समाज 80 के दशक में जिन कर्मकांडों से दूर हो रहा था, अब वही अगड़ी जातियों से बढ़चढ़ कर कर्मकांडी बनने लगा है. अपनी जिस मेहनत की कमाई को उसे अपनी पढ़ाईलिखाई और रहनसहन पर खर्च करना था, उसे वह मंदिरों, कर्मकांडों और पुजारियों पर चढ़ाने लगा.

उस के पास घर बनवाने और अच्छे कपड़े पहनने का समय भले ही न हो, पर वह पूजापाठ और मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाने के लिए पैसे और समय दोनों निकाल ले रहा है.

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अमेठी जिले के गांव खुटहना में 40 साल बिना शादी किए साथसाथ रहने वाले मोतीलाल और मोहिनी देवी को कर्मकांडों के लिए धार्मिक रीतिरिवाज से अपनी शादी करनी पड़ी, जिस में पंडित भी था और पूजा की वेदी भी थी. शादी के मंत्र भी पढ़े गए.

डरासहमा मोतीलाल

इस अनोखी की शादी की जानकारी मिलने के बाद जब यह संवाददाता लखनऊ से तकरीबन 130 किलोमीटर दूर गांव खुटहना में मोतीलाल और मोहिनी देवी से मिलने के लिए पहुंचा तो पता चला कि दुलहन मोहिनी देवी अपने बच्चों के साथ मंदिर  गई हैं. उन के घर में मौजूद लड़की कुछ भी बोलने से मना कर के दरवाजा बंद कर घर के अंदर चली गई.

मोहिनी देवी और मोतीलाल के घर के लोग इस बात से डर रहे थे कि किसी बाहरी और अनजान आदमी से बात करने से उन को कोई नुकसान हो सकता है. परिवार वालों को डर लग रहा था कि बुढ़ापे में शादी कर के उन्होंने कोई गुनाह तो नहीं कर दिया है. कहीं किसी तरह से पुलिस या कानून की कोई दिक्कत पैदा न हो जाए, इस वजह से वे बातचीत करने से मना करने लगे.

जानकारी लेने पर गांव के लोगों  ने बताया कि मोतीलाल गांव से  3 किलोमीटर दूर गोदाम पर काम करने के लिए गए हुए हैं. हम ने वहां जा कर उन से बात करने की योजना बनाई.

यह मालगोदाम जामो ब्लौक के पास था. वहीं मोतीलाल माल ढुलाई का काम करते थे. मोतीलाल को जैसे ही हमारे पहुंचने की सूचना मिली, वे छिप गए.

हम ने लोकल नेताओं और कुछ दबदबे वाले लोगों को अपने साथ लिया, तब मोतीलाल का डर कुछ कम हुआ. हमारे ऊपर उन्हें थोड़ा सा भरोसा हुआ और वे बातचीत के लिए तैयार हुए.

हमारे सामने आते ही मोतीलाल हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘साहब, शादी कर के कोई गलती कर दी क्या, जिस से आप लोग हमें तलाश कर रहे हैं?’’

जब सभी लोगों ने यह कहा कि ‘गलती की कोई बात नहीं है. ‘सरस सलिल’ देश की बड़ी पत्रिका है, उस में तुम्हारी शादी के बारे में छापा जाएगा…’ तब कहीं जा कर वे धीरेधीरे बात करने लगे.

असल में गांव में रहने वाला गरीब, कमजोर और कम पढ़ालिखा आदमी हर किसी से डरता है. उस को लगता है कि कोई उस का गलत फायदा न उठा ले. उसे कानून और अपने हकों की जानकारी नहीं होती. चार लोग जैसा कहने लगते हैं, वह वैसा करने लगता है.

मोतीलाल को जब हमारे ऊपर भरोसा हो गया, तब उन्होंने बुढ़ापे में शादी करने की पूरी वजह बताई.

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65 साल का दूल्हा और 60 साल की दुलहन

गौरीगंज विधानसभा की जामो ग्राम पंचायत के गांव खुटहना में ही मोतीलाल रहते हैं. सुलतानपुरलखनऊ हाईवे से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर जामो ब्लौक और थाना बना है.

जामो में रहने वालों की दिक्कत यह है कि यहां से न तो अमेठी जिला हैडक्वार्टर जाने के लिए कोई सीधी सरकारी बस चलती है और न ही प्रदेश की राजधानी लखनऊ जाने के लिए बस जाती है.

जामो से जब गौरीगंज जाने वाली सड़क पर चलते हैं, तो 3 किलोमीटर के बाद खुटहना गांव आता है. यहां सभी घर दलितों के पासी जाति से हैं. वहीं के मोतीलाल अचानक सुर्खियों में आ गए.

सुर्खियों की वजह यह थी कि  65 साल के मोतीलाल ने 40 साल एकसाथ रहने के बाद 60 साल की मोहिनी देवी से धार्मिक रीतिरिवाज, ढोलबाजे और बरात ले कर शादी की.

मोहिनी देवी ने रंगबिरंगी साड़ी पहनी थी. मोतीलाल ने भी पाजामा और कमीज पहनी थी. बरात में दूल्हा बने मोतीलाल ने दूसरे बरातियों के साथ डांस भी किया.

बरात मोतीलाल के घर से निकल कर उन के ही घर जानी थी, जो गांव  की संकरी गलियों से होते हुए वापस मोतीलाल के घर पहुंच गई, जहां पूजापाठ कर के और एकदूसरे को फूलों की माला पहना कर बुढ़ापे में शादी की रस्म निभाई.

मोतीलाल और मोहिनी देवी की कहानी रोचक है. तकरीबन 45 साल पहले मोतीलाल की शादी अपनी ही जाति की श्यामा से हुई थी.

शादी के 2 साल के बाद ही श्यामा की मौत हो गई. दोनों के कोई बच्चा नहीं था. मोतीलाल अकेले पड़ गए थे.

मोतीलाल का पड़ोस के गांव मकदूमपुर आनाजाना होता था. वहां  की रहने वाली मोहिनी देवी के साथ उन की जानपहचान हुई. मोहिनी भी गरीब परिवार की थीं. उन के मातापिता से बात कर के मोतीलाल मोहिनी देवी को अपने साथ ले कर गांव आ गए.

उन दोनों के घरपरिवार को कोई दिक्कत नहीं थी. लिहाजा, वे बिना किसी शादी के कर्मकांड के साथ रहने लगे. उन्हें कभी इस बात की जरूरत ही महसूस नहीं हुई कि वे रीतिरिवाज वाली शादी करें. वे दोनों ही मेहनत करते हुए अपनी जिंदगी गुजारने लगे.

यहां दोनों के पास रहने के लिए झोंपड़ीनुमा घर था. समय के साथसाथ दोनों के 4 बच्चे हो गए. उन में 2 लड़के सुनील कुमार और संदीप कुमार और  2 लड़कियां सीमा और मीरा हैं.

मोतीलाल ने पूरी कोशिश की कि बच्चे पढ़लिख जाएं. पर बच्चे केवल  8वीं जमात से 10वीं जमात तक ही पढ़ सके. मोतीलाल ने सब से पहले अपनी दोनों बेटियों की शादी कर दी. दोनों लड़के भी मेहनतमजदूरी करने लगे.

इस के बाद भी मोतीलाल और उन की पत्नी मोहिनी देवी मेहनतमजदूरी करते हैं, जिस में उन का समय भी कटता है और पैसे भी मिलते हैं.

40 साल एकसाथ रहने के बाद भी मोहिनी देवी और मोतीलाल के संबंधों को धार्मिक मंजूरी नहीं मिली थी. मोहिनी देवी और मोतीलाल दोनों ही अनपढ़ थे. मोतीलाल तो बोझा ढोने की मजदूरी करते थे और मोहिनी देवी खेतीकिसानी के काम में मजदूरी कर के जो समय बचता था, उस में मंदिर जा कर देवी भवानी के दर्शन करतीं और वहां कथाप्रवचन सुनतीं. धर्म के इन प्रवचनों में शादी की अहमियत को बताया जाता था.

मोहिनी देवी को बताया गया कि ‘बिना शादी किए घर के बेटेबेटियों की शादी में होने वाली पूजापाठ का फल नहीं मिलता है. मरने के बाद घरपरिवार का दिया पानी भी नहीं मिलता, इसलिए शादी करना जरूरी हो गया. बिना शादी के हमारे संबंध पवित्र नहीं माने जा रहे थे.’

बिना शादी के किसी को अपनी पत्नी बना कर रखने में औरत को ‘उढरी’ कहा जाता है. मोहिनी देवी को अब लग रहा था कि ‘उढरी’ कहलाना अच्छा नहीं होता है.

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शादीशुदा बनी मोहिनी देवी

40 साल पहले जब मोतीलाल मोहिनी देवी को अपने गांव ले कर आए थे, तो उन के पास शादी में खर्च करने लायक पैसा नहीं था. अपनी बिरादरी को खिलाने के लिए भी पैसे नहीं थे. ऐसे में वे बिना शादी किए ही मोहिनी देवी के साथ रहने लगे थे.

दलित जाति में बिना शादी के साथ रहने वाली औरत को ‘उढरी’ कहा जाता है. दलित जातियों की पंचायतों में नियम था कि अगर बिना शादी के कोई किसी औरत के साथ रह रहा है, तो पंचायत के चौधरी और पंचों को ‘भात’ खिलाना जरूरी होता था.

‘भात’ एक तरह की दावत होती है. जब तक ‘भात’ नहीं खिलाया जाता था, तब तक ‘उढरी’ औरत को शादीशुदा  नहीं माना जाता था. उस के बच्चों को  भी सामाजिक और धार्मिक मंजूरी नहीं मिलती थी. सामाजिक और धार्मिक मंजूरी के अलगअलग मतलब होते हैं. सामाजिक मंजूरी न मिलने के चलते उन के बच्चों के शादीब्याह नहीं हो सकते थे. बिरादरी के लोग उन को दावत में नहीं बुलाते थे.

धार्मिक मंजूरी में यह माना जाता है कि बच्चों के द्वारा किए गए क्रियाकर्म का पुण्य मातापिता को नहीं मिलता था. बहुत सारी दलित चेतना के बाद भी दलितों की रूढि़वादी सोच में अंतर नहीं आया है. आज भी वे धर्म के प्रभाव में हैं. ऐसी ही बातों के प्रभाव में आ  कर मोहिनी देवी ने मोतीलाल से कहा, ‘‘हमें भी शादी कर लेनी चाहिए, तभी हमें कर्मकांडों का हक मिल सकेगा और हमें ‘उढरी’ भी कोई नहीं कह सकेगा.’’

‘श्राद्ध’ और ‘पिंडदान’ का डर

मोहिनी देवी की बात का समर्थन उन के बच्चों ने भी दिया. इस के बाद घरपरिवार के लोगों ने मिल कर शादी का आयोजन किया.

यह शादी कराने वाले तेजराम पांडेय बताते हैं, ‘‘मोतीलाल ने मोहिनी देवी से धार्मिक रीतिरिवाज से शादी नहीं की  थी. धर्म कहता है कि ‘उढरी’ के लड़के मातापिता के मरने के बाद जब उन का श्राद्ध करते हैं, पिंडदान करते हैं, तो वह उन को नहीं मिलता है, जिस से उन को मोक्ष नहीं मिलता. इस बात की जानकारी होने पर अब यह शादी की जा रही है.’’

मरने के बाद होने वाले कर्मकांडों  में श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. समाज में कर्मकांडों को इस तरह से महिमामंडित किया जा रहा है कि  40 साल एकसाथ रहने के बाद मोतीलाल और मोहिनी देवी को शादी का कर्मकांड करना पड़ा. इस से पूरे समाज को यह संदेश देने का काम किया गया कि बिना शादी के साथ रहने को धार्मिक मंजूरी नहीं है. शादी के सहारे धार्मिक कर्मकांडों को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है.

मोहिनी देवी के मन में इस बात को ठूंसठूंस कर भर दिया गया कि जब तक कर्मकांड वाली शादी नहीं होगी, तब तक शादी मानी नहीं जाएगी. शादी करने के बाद ही मोहिनी देवी को पत्नी का दर्जा मिल सका. इस के पहले उन्हें ‘उढरी’ ही माना जा रहा था.

मोतीलाल और मोहिनी देवी पर कर्मकांड का इतना दबाव पड़ा कि उन्हें धार्मिक हिसाब से शादी करनी पड़ी. यह शादी तमाम तरह की रूढि़वादी सोच को उजागर करती है.

अमेठी जिले में तमाम धार्मिक स्थान हैं. पीपरपुर गांव में महर्षि पिप्पलाद का पौराणिक आश्रम है. सिंहपुर ब्लौक में मां अहरवा भवानी, मुसाफिरखाना में मां हिंगलाज देवी धाम, गौरीगंज में मां दुर्गाभवानी देवी, अमेठी में मां कालिकन देवी धाम सती महारानी मंदिर भी हैं.

इन जगहों पर मेले भी लगते हैं. तमाम तरह की मान्यताएं भी हैं. अपनी मन्नत पूरी करने के लिए दलित औरतें यहां बड़ी तादाद में आती हैं. धार्मिक कहानियों के प्रभाव में वे कर्मकांडों के कहे अनुसार चलने लगती हैं.

यहां के दलित बहुत सारी कोशिशों के बाद भी आगे नहीं बढ़ सके हैं. वे अगड़ी जातियों के पीछे ही चलते रहे हैं. चुनाव लड़ने वाली पार्टी कोई भी रही हो, यहां से जीतने वाले नेता हमेशा ही अगड़ी जातियों के रहते हैं.

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