एक फिल्म ने मेरी जिंदगी बदल दी – अभय वर्मा

इम्तिहानों में फेल होने के बाद मायूस हो चुके पानीपत, हरियाणा के अभय वर्मा संजय लीला भंसाली की फिल्म  ‘रामलीला: गोलियों की रासलीला’ देखने पहुंच गए. इस फिल्म को देख कर उन्हें ऐक्टर बनने की प्रेरणा मिली.

 

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इस के बाद अभय वर्मा मुंबई पहुंचे, जद्दोजेहद की और महज 5 साल के अंतराल में उन्होंने अमिताभ बच्चन, आमिर खान व आलिया भट्ट के साथ विज्ञापन फिल्में कीं, तो वहीं मनोज बाजपेयी के साथ वैब सीरीज ‘द फैमिलीमैन’ भी की.

अभय वर्मा वैब सीरीज ‘मरजी’ में भी नजर आ चुके हैं. इतना ही नहीं, वे संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म ‘मन बैरागी’ भी कर चुके हैं. वे फिल्म ‘सफेद’ को ले कर भी चर्चा में रहे हैं. इस फिल्म में उन्होंने किन्नर का किरदार निभाया है.

पेश हैं, अभय वर्मा से हुई बातचीत के खास अंश :

आप ने कब सोचा कि फिल्मों में काम किया जाए?

मेरी तो शुरुआत नाकामी से हुई. मैं 2 इम्तिहान में फेल होने के बाद परेशान था, तब अपना गम भूलने के लिए पानीपत में ही संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘रामलीला : गोलियों की रासलीला’ देखने पहुंच गया था. इस फिल्म को देखते हुए मुझे खुशी और सुकून मिला.

मैं थिएटर के अंदर फेलियर के तौर पर गया था, पर जब वहां से बाहर निकला तो विनर था. मैं 2 घंटे में इतना ऐंटरटेन और खुश हो गया था कि मेरे दिमाग में आया कि मुझे भी यही करना चाहिए और लोगों में खुशियां बांटनी चाहिए.

जब आप ने अपने मातापिता को इस फैसले के बारे में बताया, तब उन्होंने क्या कहा था?

उन्होंने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि तू ने जो राह चुनी है, वह आसान नही है. पर जो काम आप दिल से करना चाहें, वही काम करना चाहिए, क्योंकि उसी में आप खुश रह सकते हैं.

क्या आप को लगता है कि सिनेमा से समाज में बदलाव आता है?

बिलकुल आता है. आप के सामने जो यह 25 साल का पानीपत जैसे छोटे शहर का लड़का बैठा हुआ है, वह सब से बड़ा उदाहरण है कि सिनेमा जिंदगियां बदलता है.

जब आप ने अपने सपने को पूरा करने के लिए मुंबई में भागदौड़ शुरू की, तो किस तरह के अनुभव हुए?

जब मैं मुंबई आया, तो मुझे बहुत अच्छे और बहुत बुरे लोग मिले. यहां मुझे ढेर सारे लोग ऐसे मिले, जो मुझे बढ़ावा देने के बजाय मेरा हौसला गिरा रहे थे. कई लोगों ने मुझ से सवाल किया कि मुझे इंगलिश अच्छी क्यों नहीं आती. यहां पर ज्यादातर लोगों ने मेरे सपनों की रोशनी को कम करने की कोशिश की.

पर मैं तो यह मान कर चलता हूं कि दुनिया में अच्छेबुरे हर तरह के लोग होते हैं. लोगों की दुत्कार और रिजैक्शन से मेरे अंदर बहुत बदलाव आया है. यही मेरी सब से बड़ी पूंजी है.

क्या यह मान लिया जाए कि आज के समय में कास्टिंग एजेंसियां कलाकार की क्रिएटिविटी में बाधा बनती हैं?

बाधा तो नहीं कहूंगा, क्योंकि वे लोग भी बेचारे काम करते हैं. उन के पास तो हर दिन हजारों लोग अपने सपने ले कर पहुंचते हैं, जिन में से गिनती के लोगों के सपने पूरे हो पाते हैं.

 

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मैं तो उन लोगों का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मुझे आडिशन का मौका दिया, क्योंकि वही हमारा ‘गेटवे औफ इंडिया, होता है. हम गेटवे औफ इंडिया पैदल आते हैं और उस के बाहर समुद्र है, जिस में हम कूद जाते हैं.

यह गेटवे औफ इंडिया ही हमारा कास्टिंग डायरैक्टर है, इसलिए मेरे अंदर दिल से कास्टिंग डायरैक्टर के प्रति इज्जत है.

आप को अपना पहला ब्रेक कब मिला था?

ईमानदारी से कहूं, तो मुंबई आना ही मेरे लिए सब से बड़ा ब्रेक था. लोग हमेशा जद्दोजेहद और कामयाबी को ले कर कन्फ्यूज होते रहते हैं. ये दोनों अलगअलग चीजें होती हैं.

मेरे लिए जद्दोजेहद उस वक्त थी, जब मैं मुंबई में नहीं, बल्कि पानीपत में था और अपने सपने को ले कर एक कदम नहीं चल पा रहा था.

अब तक आप ने क्याक्या काम किया है?

मैं ने अमिताभ बच्चन, आमिर खान, आलिया भट्ट, मनोज बाजपेयी, संजय लीला भंसाली जैसे दिग्गजों के साथ काम किया और इन के साथ काम करते हुए बहुतकुछ सीखा है. मैं ने ‘मरजी’, ‘द फैमिलीमैन’ में काम किया है. मुझे दर्शकों का भरपूर प्यार मिला है. दर्शकों का प्यार ही कलाकार की सब से बड़ी कमाई होती है.

फिल्म ‘सफेद’ से जुड़ने की कोई खास वजह?

कहानी और अपना किरदार पढ़ कर पहले तो मैं डर गया था. मुझे किन्नर का किरदार जो निभाना था. फिर मेरे मन में खयाल आया कि अभय वर्मा ने जिस सपने को देखते हुए पानीपत से मुंबई तक का जो सफर तय किया है, तो क्या वह डरने के लिए आया है? बस, फिर मैं ने इस फिल्म को करने की हामी भर दी.

आप ने संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म ‘मन बैरागी’ की थी. उस के क्या अनुभव रहे?

संजय लीला भंसाली के साथ काम करना हर कलाकार का एक सपना होता है. पहली मुलाकात में उन्होंने मेरे माथे और नाक पर हाथ रख कर कहा था कि अदाकारी सिर्फ आंखों से होती है. उन की यह सीख मैं ने उसी दिन से गांठ बांध रखी है.

आप नया क्या कर रहे हैं?

मैं 2 फिल्में कर रहा हूं. एक फिल्म ‘ऐ वतन मेरे वतन’ है, जिस में आजादी के दौर के सभी नायकों को ले कर कहानी बनी है. दूसरी फिल्म के बारे में अभी कुछ नहीं बता सकता.

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