बीवी काली हो या गोरी, यह एक बहस का मुद्दा न हो कर खोज की बात होनी चाहिए, ऐसा खयाल मेरे एक करीबी दोस्त का है. उस की पिछले दिनों नईनई शादी हुई थी. जब भी वह इस मुद्दे पर बात करता है, काली रंगत की जरूरत से ज्यादा वकालत करता है.

एक बार मैं ने कहा, ‘‘यार, तुम भी कमाल के आदमी हो. सारी दुनिया गोरे रंग पर फिदा है और तुम हो कि कालीकलूटी पर जान छिड़कते हो.’’

इस पर वह दोस्त बोला, ‘‘भाई मेरे, काले रंग के कितने फायदे हैं, क्या तुम्हें मालूम है? काली बीवी पाना या ढूंढ़ कर लाना हमारे परिवार में सदियों से चला आ रहा है.

‘‘जब मेरी शादी की बात चली थी, तो पिताजी ने मुझे लड़की देखने के लिए मना कर दिया था. वह जानते थे कि मैं काली को नकार दूंगा.

‘‘शादी से एक महीना पहले ही मुझे काली लड़की की खूबियां सुनाना शुरू कर दिया गया. इस का नतीजा यह हुआ कि मुझे गोरे रंग से नफरत होने लगी.’’

मैं सोचने लगा कि कहीं यह दोस्त पागल तो नहीं हो गया है. ऐसे खयालों वाले कहीं दोचार और मिल जाएं, तो खूबसूरती का सामान बनाने वालों का दिवाला ही निकल जाएगा.

मैं बोला, ‘‘देख यार, काली बीवी को ब्याह कर घर लाने के बावजूद तुम्हें कोई फायदा तो हुआ नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि अपना ऐब छिपाने के लिए डींगें हांके जा रहे हो?’’

मेरी बात पर वह दोस्त अपना सीना फुला कर बोला, ‘‘देखो भाई, सब से बड़ा फायदा तो यह है कि रोजरोज के फेस पाउडर, क्रीम वगैरह का झंझट ही खत्म हो गया है. नहाने के लिए किसी खास किस्म के साबुन की जरूरत ही नहीं पड़ती. वह तो कपड़े धोने के साबुन से कपड़ों के साथसाथ खुद को भी धो डालती है. काली रंगत पर कोई भी साड़ी मैच नहीं करती, इसलिए हम जो भी साड़ी खरीद कर ला देते हैं, वह चुपचाप पहन लेती है.

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