कई सालों के बाद मुझे विदेश जाने का मौका मिला था. जाहिर है कि बाहर भी देशी आदतें दिलोदिमाग पर छाई हुई थीं. अपने देश की मिट्टी की बात ही निराली है और उस से ज्यादा निराले इस मिट्टी के लोग. हमारा तो कतराकतरा इस से बना हुआ है. देश की मिट्टी और यहां के लोगों को खूब याद किया.
आप कहेंगे कि इस में खास बात क्या है. आदमी घरपरिवार, राज्य, गांवखेड़े, कसबेशहर, देश से दूर जाएगा, तो इन की याद तो आएगी ही. वैसे ही जैसे पत्नी से दूर जाओ, तो उस की याद आती ही है.
यह बात अलग है कि पतिपत्नी साथसाथ ज्यादा देर बिना खटपट के रह नहीं सकते हैं. उस समय तो ऐसा लगता है कि कुंआरे रह कर अलग ही रहते, तो अच्छा रहता. यह हम अपनी नहीं आप की बात कर रहे हैं. हमारी तो शादीशुदा जिंदगी बहुत सुखी है. वैसे, हर आम पति यही सोचता है, आप भी और मैं भी. अब परदेश में देश की याद कैसेकैसे आई, यह थोड़ा सुन लें, तो आप के परदेश जाने पर काम आएगा.
परदेश में 15 दिन बीत गए थे. हमें यूरोप में एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला, जो सड़क पर कहीं खड़े हो कर देशी ढंग से हलका हो रहा हो. कहां अपने देश में हर गलीनुक्कड़ में ऐसे लोगों के चाहे जब दर्शन हो जाते थे और यहां एक अदद आदमी का टोटा पड़ा था.
हम ने सोचा कि सच में भारत ऐसे ही ‘विश्व गुरु’ नहीं कहलाता है. ये देश भले ही अपने को धनी समझते हों, लेकिन कई मामलों में कितने दरिद्रनारायण हैं. यहां हमारे वहां जैसा एक भी आदमी नहीं है.