राजस्थान के उदयपुर जिले में देवली नाम का एक छोटा सा गांव था. तकरीबन 700-800 घरों की बस्ती. वहां सभी जाति के लोग रहते थे, जो बहुत मेहनतकश थे.

उसी गांव में सूरज नाम का एक मेहनती किसान रहता था. वह अपनी पुश्तैनी 10-12 बीघा जमीन पर खेतीबारी किया करता था. उस का खेत महावली की पहाड़ी के बीच मैदान में था, जिस में वह एक कुएं से सिंचाई करता था.

सूरज 6 फुट हट्टाकट्टा नौजवान था. घर में उस की बूढ़ी मां व पत्नी संध्या रहती थी. संध्या का गोरा रंग और भरापूरा बदन लोगों के दिलों की धड़कनें तेज कर देता था.

भोर में ही सूरज खेत पर चला जाता था. खेतों में उस के पास ट्रैक्टर, ट्रौली व खेती संबंधी सभी जरूरी सामान थे, जिस से वह गन्ने की उपज की सिंचाई, निराईगुड़ाई वगैरह अकेला ही करता था.

संध्या दिन में सूरज के लिए जब खाना ले कर घर से निकलती थी, तो घाघरे से उस की गोरीगोरी पिंडलियां साफ नजर आती थीं. छाती ढकने के लिए कस कर चोली बंधी रहती थी. सिर पर सतरंगी ओढ़नी का एक पल्लू चोली में खोंसा होता था.

सिर पर एक पोटली में 8-10 मक्के की मोटीमोटी रोटियां, सरसों का साग व हाथ में दही या छाछ का बरतन लिए जब वह कमर मटका कर चलती थी, तो कई मनचले मक्खियों की तरह उस के चारों ओर मंडराने लगते थे, पर वह किसी को भी नजदीक फटकने नहीं देती थी.

पर देवली गांव में एक मुच्छड़ लट्ठबाज खुद को बड़ा तीसमारखां मानता था. वह अपनी मूंछों पर ताव दे कर खोमचे वालों, सब्जी वालों, दुकानदारों व राहगीरों को तंग कर उन का माल हड़पता था और औरतों को गंदे इशारे करता. मौका मिलने पर वह छेड़खानी भी कर देता था. उस का नाम वैसे तो भूरा राम था, पर सभी उसे भूरिया मुच्छड़ कहते थे.

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