जनाब, आजकल हमारा मूड बड़ा उखड़ाउखड़ा रहता है. अब माना कि हमारी जरा सी तोंद निकल आई है या जरा पान के शौक में दीवार पर भूल से थूक ही दिया हो, तब भी किसी को क्या हक कि हमें पिछड़ा, 19वीं सदी का सरकारी बाबू कह कर हमारी तौहीन कर दे. खामखां हमारी इमेज तोंदवाले, मुच्छड़, पान से रंगे दांतों वाले, घड़ीघड़ी दांत खुरचते, खींसें निपोर कर हर काम में दांत से जीभ काटते किसी ढपोरशंखी सी बना दी गई है. भई, यह तो सरासर गलतबयानी है.

अब हम अपने कामों या नाकामियों में काफी मौडर्न हो गए हैं, अपनी फितरत हम ने बड़ी स्मार्ट बना ली है और ढर्रों में भी हम ने मौडर्न जान फूंक दी है. अब अमेरिका वाले डोनाल्ड ट्रंप को ही ले लीजिए, कुएं के अंदर का ट्रंप सूटबूट में कितना रोबीला गबरू जवान लगता है. देख कर कौन कहे कि साहब, जाति, प्रजाति व धर्म को ले कर जनाब इतने कूपमंडूक होंगे. उन्हें सिर्फ गोरे नजर आते हैं. भूरे, पीले, काले, दाढ़ी वाले, टोपी वाले दुश्मन हैं उन के लिए. फिर भी क्या अदा है, क्या रुतबा है, क्या स्टाइल है. स्टाइल और अदा के जलवे ने उन की ढपोरशंखी चुल्लूवाली मानसिकता को कैसा नायाब हीरो वाला ट्रंप सूट पहना कर खड़ा कर दिया है कि दुनिया को अच्छाखासा कंफ्यूजन हो रहा है कि महारथी की फितरत का विरोध करें या इंतजार ही कर लें कि और किनकिन बेहतरीन तरीकों से वे पिछड़ेपन को पेश कर सकते हैं.

भई, वे ठहरे अमेरिका वाले ट्रंप, तो हम ठहरे भारत सरकार के सरकारी अफसर मुलाजिम, क्या हम कम हैं. सरकार यों ही इतना हमें नहीं देती. गाड़ी देती है, बंगला देती है, अर्दलीचपरासी देती है. और तो और, काम लेने को तरहतरह के नियमों के चाबुक भी देती है.

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