हर आदमी बड़ा होना, बड़ा बनना चाहता है. लेकिन हर आदमी बड़ा बन नहीं सकता. यदि सभी बड़े बन जाएं तो फिर कोई बड़ा नहीं रहेगा क्योंकि कोई छोटा नहीं बचेगा. आदमी जो मुकाम हासिल नहीं कर पाता है, वह उस के अवचेतन में बैठ जाता है और समयसमय पर प्रकट होता है. कोई सोते में सपने देखता है तो कोई जागते में देखता है. वैसे, जो बड़ा नहीं बन पाया उस के लिए हर जगह अवसर उपलब्ध हैं कि वह अपनेआप को दूसरों से बड़ा फील करे. एक उदाहरण ले लें, एक प्रसिद्ध गायक का कार्यक्रम शहर के औडिटोरियम में चल रहा था. हजारों की भीड़ होने से जगह की मारामारी हो रही थी. कुरसियां भीड़ से काफी कम थीं. जो पहले आ गए वे कुरसी पा गए. जो देर से आए उन्हें यहांवहां खड़ा होना पड़ा. अब जो कुरसी में बैठे थे वे इन खड़े लोगों से अपने को बड़े समझने लगे. यह भाव उन में ज्यादा झलक रहा था जिन की कुरसी के बिलकुल पास 10-15 लोग खड़े थे. वे अब कार्यक्रम कम देख रहे थे, खड़े लोगों को ज्यादा देख रहे थे. यहां अवसर था छोटे होते हुए भी अपने को बड़ा फील करने का. एकदो चवन्नी के चलन से बाहर होने के बाद भी अपनेआप को हजार रुपए के सिक्के के बराबर समझ रहे थे. बड़े होने के अवसर बड़ा न होते हुए भी हर जगह हैं.
दूसरी स्थिति लीजिए, आप भद्र पुरुष हैं. अचानक शहर से बाहर जाना पड़ा. ट्रेन में आरक्षण नहीं मिला. आप को स्लीपर में बिना आरक्षण के जाना पड़ा. ट्रेन में खचाखच भीड़ थी. कई लोग अर्थ पर थे, मतलब फर्श पर. आप जिस बर्थ पर बैठे, वह आरक्षित थी. बैठे हुए सज्जन ने पहले तो कोई प्रतिक्रिया नहीं की लेकिन बाद में पूछ बैठे कि आप का बर्थ नंबर कौन सा है. आप ने कहा कि अभी तो टीटीई का इंतजार कर रहे हैं. आप ने उसे बड़ा फील करने का अवसर प्रदान कर दिया. वह बड़ा फील कर रहा था लगातार और आप उस के रहमोकरम पर थे. आप जब कभी अर्थ पर बैठे लोगों और कभी इस को देखते तो आप को लगता कि वह आप से बड़ा है. उस के चेहरे के हावभाव से ऐसा लगता भी था. ऐसे ही स्थिति सिटी बसों में भी बनती है यदि आप को खड़ा होना पड़े और कोई बैठा हो. लेकिन यहां बड़ा होने का खयाल बहुत कम समय के लिए रहता है. जो आज सीट पर बैठा है वह कल खड़ा हो कर छोटा फील कर सकता है.
छोटा होते हुए बड़ा फील करने के बड़े अवसर हैं. आप सिनेमा देखने सपरिवार गए हैं. लाइन में लगे हैं टिकट लेने के लिए और आप के पहले वाले को टिकट मिल गया है. आप के आते ही टिकटखिड़की धड़ाम से बंद हो जाती है. अब जिसे टिकट मिल गया है उस के चेहरे पर मुसकान है. आप के चेहरे पर मायूसी. वह बड़ा फील कर रहा है. छोटा आदमी हो सकता है, फेरी लगा कर पेट भरता हो या गुब्बारे बेचता हो लेकिन इस समय उस का मुंह प्रसन्नता की हवा से गुब्बारे की तरह फूल कर कुप्पा हो गया है. आज सपरिवार वह इस हिट मूवी को देखेगा और आप टिकटरूपी खेल में हिटविकेट हो गए हैं. आप की पत्नी का भी मुख फूल कर कुप्पा हो गया है लेकिन यह नाराजगी की हवा भरने से हुआ है.
यही तत्काल के आरक्षण की लाइन में भी होता है. आप सुबह 6 बजे से जा कर लाइन में लग गए हैं. आप के पहले 4 बजे से ही कई लोग लगे हैं. 8 बजे खिड़की छपाक से खुलती है, काम शुरू हो गया है. कैसे पता चला? रेलवे के चरमराते हुए डौट मैट्रिक्स प्रिंटर की कर्णभेदी ध्वनि लय में सुनाई दे रही है.
लाइन में सब बराबर हैं रिकशे वाला, आटो वाला, फेरी वाला, बाबू, अधिकारी, व्यापारी, प्रोफैशनल. लेकिन आप के नंबर आने के पहले 4 आदमी और हैं. आप व पीछे के सभी हाथ मलते रह गए जब छपाक से खुली खिड़की धड़ाम से बंद हो गई. ऐसी कि लगा कि धड़कन न बंद हो जाए. अब जो आदमी आरक्षण करवा कर जा रहा था, वह आप जैसे छोटे रह गए लोगों के सामने अपने को बड़ा समझेगा ही. आप बड़े बाप की औलाद हो, कार से कालेज आते हो. आप के कालेज का आज रिजल्ट आया है. आप सैकंड ग्रेड में आए हैं जबकि रामरतन मोची का साइकिल में आने वाला लड़का फर्स्ट ग्रेड में है. अब उस का समय है बड़ा फील करने का.
बड़ा फील करने का अवसर तो किसी होटल बुक करते समय भी उपलब्ध है. सीजन है, होटल्स बुक हैं. पर्यटकों से भरे पड़े हैं. आप भी पहुंच गए हैं. होटलों के चक्कर काट रहे हैं. कहीं कमरा नहीं मिला. 7वीं होटल में आए हैं. एक ही कमरा बचा है. एक अनार और 4 बीमार, 3 और लोग कमरे को खोजते आ गए हैं. एक ज्यादा व्यावहारिक निकला. ऐसे मौके पर उस ने बिना कमरे को देखे ही हां कर बुक कर दिया. अब आप तीनों छोटों के सामने वह अंदर ही अंदर मुसकराता हुआ बड़ा फील कर रहा है.
भगवानों की दुकानों में भी लोग अपने को बड़ा फील करते हैं या करवाते हैं. कहने को यहां सब बराबर होने चाहिए लेकिन कई लोग खुद दुकानदार पंडों को पैसा दे कर उन से वीआईपी पास बनवा लेते हैं और लाइन से हट कर सीधे पूजा के प्रोडक्ट के सामने पतली गली से पहुंच जाते हैं. श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखते ही रह जाती है और ये अपने को बड़ा फील करने लगते हैं. बड़ा फील करने के अवसर हर जगह हैं. बड़ा बनना बड़ा कठिन है, बड़ा फील करना बड़ा आसान है. बस, मौका मिलना चाहिए. ठीक है समय ने आप को अभी तक छोटा ही रखा है. लेकिन बड़ा फील करने, थोड़ी देर के लिए बड़ा बन जाने के अवसर पगपग पर हैं.
वैसे भी, इस देश में आम आदमी छोटा ही रह जाता है ताउम्र. यहां बड़ा माना जाता है उस को जिस के पास धनदौलत हो, भले ही वह घोटालेबाजी से, कालाबाजारी से या सरकारी धन में पलीता लगा कर की गई कमाई हो. और यहां बड़ा बनने के अवसर अधिकारी, ठेकेदार, नेता व दलालों को ज्यादा मिलते हैं. तो फिर, बड़ा फील करने के जितने अवसर मिलते हैं उन को एंजौय करने में ही समझदारी है.

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