अपने दफ्तर से लौटते समय आज शाम को जब रामेश्वर को किसी औरत ने नाम ले कर आवाज लगाई, तो उस के दोनों तेज दौड़ने वाले पैर जैसे जमीन से चिपक कर ही रह गए थे. रामेश्वर जिस तेजी के साथ सड़क से चिपक गया था, उस से कहीं तेजी से उस की सीधी दिशा में देखने वाली गरदन पीछे की तरफ मुड़ी और गरदन के मुड़ते ही जब रामेश्वर की दोनों आंखें उस आवाज देने वाली पर टिकीं, तो वह सन्न रह गया.

रामेश्वर सोच में पड़ गया कि आज सालों बाद मिलने वाले अपने इस अतीत को देख कर वह मुसकराए या फिर बिना कुछ कहे आगे की तरफ निकल जाए. वह चंद लमहों में अपने से ही ढेर सारे सवालजवाब कर बैठा था. जब रामेश्वर की जबान ने उस का साथ देने से साफ इनकार कर दिया, तो खामोशी तोड़ते हुए वह औरत पूछने लगी, ‘‘रामेश्वर, भूल गए क्या? तुम तो कहते थे कि मैं तुम्हें ख्वाबों में भी नहीं भूल सकता.’’

‘‘सच कहता था. मैं ने एकदम सच कहा था. कौन भूला है तुम्हें? क्या तुम्हें ऐसा लगा कि मैं तुम्हें भूल गया हूं? ‘‘मुझे आज भी तुम्हारा नाम याद है. कभी तुम ने साथ जिंदगी जीने की कसमें खाई थीं. इतना ही नहीं, तुम से मिलने की खुशी से ले कर तुम से बिछड़ने तक के सफर में जो भी हुआ, सब याद है.

‘‘आज भी तुम्हारी एक आवाज ने मेरे दौड़ते पैरों को रोक दिया, जबकि इस भागतेदौड़ते शहर की तेज जिंदगी में लोग अपने अंदर तक की आवाज को नहीं सुन पाते.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...