तकरीबन हर चुनाव में ‘रोजगार के मौके’ एक अहम मुद्दा होता है. नेता चुनाव प्रचार के दौरान नौजवानों को रोजगार देने और रोजगार के मौके देने का वादा करते हैं. यह बात और है कि चुनावी मौसम के खत्म होते ही नेताओं के वादों का सैलाब बरसाती नदी की तरह सूख जाता है.

राकेश मेरे पड़ोस में ही रहता था. स्कूल भेजा गया, पर पढ़ाई पूरी न कर पाया. अब जिस देश में बड़ेबड़े डिगरीधारी घर बैठे हैं, वहां राकेश को नौकरी मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता. जबरदस्ती पिता की राशन की दुकान पर बैठा दिया गया, लेकिन राकेश का दिल न लग पाया आटादाल बेचने में और इस वजह से इतना बड़ा नुकसान हो गया कि दुकान ही बंद हो गई और बेटे के साथ बाप भी बेरोजगार हो गया.

वह तो भला हो दादा का जो सरकारी स्कूल में पढ़ाते थे, इसलिए आटा दाल बेचना तो बंद हो गया लेकिन घर में आटा दाल की कमी न हुई.

अब लड़का घर बैठा था लेकिन दादी को परपोते का मुंह देखे बिना इस दुनिया से जाना मंजूर नहीं था तो राकेश की शादी करा दी गई. कुछ सालों में ही वह 2 बच्चों का बाप बन गया और ‘मरती हुई दादी’ अभी तक खैर से हैं.

राकेश की जिंदगी में सबकुछ था सिवा रोजगार के. कई चुनावी मौसम आएगए लेकिन रोजगार का कोई मौका न आया. कई साल बेमतलब की खाक छानने के बाद उस ने खुद ही रोजगार के मौके तलाश लिए और ‘हिंदुत्व की रक्षा’ का बीड़ा उठा लिया. राकेश धर्म के रखवालों की नजर में आ गया और एक हिंदूवादी संगठन का सदस्य हो गया.

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