‘‘हुजूर, हम को भी अपने साथ ले चलिए. 3 दिनों से कुछ नहीं खाया है. हम को भी बाहर निकालिए... 3 दिनों से बाढ़ के पानी में फंसे हुए हैं... सबकुछ तबाह हो गया है... खानेपीने का सामान था, पर अचानक आई बाढ़ में सबकुछ डूब गया हुजूर... भूख के चलते जान निकल रही है... पैर पकड़ते हैं आप के हुजूर... हम को भी निकाल लीजिए...’’

‘‘ऐसे ही थोड़े ले जाएंगे... 20-20 रुपया हर आदमी का लगेगा... तभी ले जाएंगे. हम लोगों को भी खर्चापानी चाहिए कि नहीं...’’

नाव पर सवार एक नौजवान, जिस के हाथ में स्मार्टफोन और कान में ईयर फोन था, चेहरेमोहरे से तेजतर्रार लग रहा था. उस ने नाव वाले के इस रवैए का विरोध किया और बोला, ‘‘भैया, आप ऐसा नहीं कर सकते हैं. पैसे लेने का नियम नहीं है. बाढ़ आई है. प्रशासन की तरफ से सुविधाएं मुफ्त दी जा रही हैं.

‘‘डीएम साहब ने कहा है कि लोगों को बाढ़ प्रभावित इलाकों से महफूज जगह पहुंचाने के लिए नाव के साथ नाव चालकों की टीम लगाई गई है, फिर आप लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं? लोग यहां मर रहे हैं और आप उन की मजबूरी का फायदा उठाने में लगे हैं.’’

‘‘देखो बाबू, फालतू की बात मत करो... पैसा नहीं है तो बोलो कि नहीं है. अगली ट्रिप में दे देना, ज्यादा नियमकानून मत झाड़ो.’’

‘‘हम लोग शिकायत करेंगे. आप ऐसा नहीं कर सकते हैं. अभी मैं ‘हैल्पलाइन’ नंबर पर फोन मिलाता हूं,’’ कहते हुए उस नौजवान ने फोन निकाला और ‘हैल्पलाइन’ का नंबर ढूंढ़ने लगा. कई बार फोन डायल किया, पर फोन लगा ही नहीं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...