रात के 12 बज रहे थे. राजा अभी तक घर वापस नहीं लौटा था. रानो के 6 साल के विवाहित जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था कि राजा के घर आने में इतनी देर हुई. रानो ने अपने 5 वर्षीय पुत्र अरमान को सुला दिया और पति के लौटने का बेसब्री से इंतजार करने लगी. बारबार फोन की तरफ उस का हाथ बढ़ जाता पर राजा की हिदायत याद आते ही वह अपने को नियंत्रित कर लेती. इंतजार करतेकरते जब वह थक गई तो मन कई तरह की आशंकाओं से घिर गया. आखिर बेचैन हो कर उस ने बेकरी में फोन लगा ही लिया.

उस तरफ से सुखदेव की आवाज आई, ‘‘सवेरेसवेरे ही राजा कहीं चला गया. किसी को बता कर भी नहीं गया. हम भी उस का इंतजार कर रहे हैं. बेकरी बंद करने का समय हो गया है.’’

यह सुनते ही रानो सन्न रह गई. उस ने धीरे से पूछा,  ‘‘अकेले गए हैं या किसी के साथ?’’

‘‘बीबीजी, आज सवेरे कु छ विचित्र सा घटा. एक ग्राहक राजा को देख कर ऐसे चौंका जैसे पुराना परिचित हो और उस से भी विचित्र बात तो यह लगी कि उस ने राजा को  ‘रज्जाक’ नाम से पुकारा,’’ वह बोला.

कुछ रुक कर सुखदेव आगे धीरे से रहस्यमय ढंग से बोला, ‘‘रज्जाक, संबोधन पर राजा ने ऐसे पलट कर देखा जैसे वह वाकई में रज्जाक हैं, राजा नहीं. उसी के साथ गए हैं, आते ही होंगे. आप चिंता मत करो. जानपहचान वाला लगता था. बातोंबातों में समय का ध्यान नहीं रहा होगा.’’

आतंकित हो उठी रानो. पूरी बात सुने बिना ही फोन रख दिया. आगे सुनने की उस में हिम्मत नहीं थी. वह सुखद वर्तमान में अपने दुखद अतीत को भूल चुकी थी. डर से मन ही मन बोली कि कहीं वह  ‘इतवारी’ तो नहीं जिस ने राजा को अपने आतंकवादी गिरोह में मिलाने का असफल प्रयास किया था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...