देश में तीन तलाक के मुद्दे पर सियासी और सामाजिक माहौल गरमाया हुआ है. मजहबी कट्टरपंथी मुसलिम पर्सनल ला में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध कर रहे हैं जबकि हिंदूवादी संगठन और केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने को आमादा दिख रही है. यह ठीक है कि मुसलमानों में तलाक को ले कर मुसलिम महिलाएं बहुत त्रस्त हैं. केवल 3 बार तलाक कह कर औरत को छोड़ दिया जाता है. इस मामले में हिंदू संगठनों को खुश होने की जरूरत नहीं है. देश में हिंदुओं में भी तलाक के मामले बढ़ते जा रहे हैं. वह भी ऐसे में जब सगाई से ले कर फेरे तक धर्म के रीतिरिवाजों द्वारा आस्थापूर्ण तरीके से विवाह संपन्न कराए जाते हैं.

हम सुनते आए हैं कि जोडि़यां आसमान से बन कर आती हैं. सच तो यह है कि जोडि़यां टूटती धरती पर हैं. तलाक का रोग अब धीरेधीरे भारत में भी फैलता जा रहा है. हालांकि पश्चिमी देशों की तुलना में तलाक के मामले अभी भी यहां बहुत कम हैं. भारत में तलाक के ज्यादातर मामले बड़े शहरों कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, लखनऊ आदि में नजर आए हैं. पिछले एक दशक में कोलकाता में तलाक के मामले लगभग 350 प्रतिशत बढ़े हैं. मुंबई और लखनऊ में तो पिछले 5 वर्षों में यह 200 प्रतिशत बढ़ा है. तलाक के बढ़ते मामलों को देखते हुए बेंगलुरु में 2013 में 3 नए फैमिली कोर्ट खोलने पड़े थे. शादी के 5 साल के अंदर ही तलाक चाहने वाले ज्यादातर युवाओं के तलाक के हजारों मामले कचहरी में लंबित पड़े हैं.

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