हमारे देश के लोग आज भी पंडेपुजारियों के जाल में ऐसे फंसे हैं कि वे चाह कर भी उस से निकल नहीं पाते हैं. धर्म के नाम पर यहां बड़ी आसानी से लोगों को लूटा जाता है. पंडेपुजारी मंदिरों में श्रद्धालुओं की जेब हलकी करवाना अपना जन्मजात हक समझते हैं, जबकि भारत में 30 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो जानवरों को कैद कर के उन को नचा कर या दिखा कर अपनी ऐश की जिंदगी बसर कर रहे हैं. 3 साल पहले हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में बसस्टैंड के नजदीक बहुत ज्यादा भीड़ लगी हुई थी. वहां एक हट्टाकट्टा मर्द व एक औरत ट्रैक्टरनुमा गाड़ी के दाएंबाएं बैठे हुए थे, जबकि बीच में एक गाय खड़ी थी. गाय के गले में फूलमालाओं व उस के मुंह पर चंदन वगैरह का लेप उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे.

गेरुआ कपड़े पहने वह औरत व मर्द इस बात को प्रचारित कर रहे थे कि 5 पैरों वाली यह गाय लक्ष्मी देवी का अवतार है. अंधभक्तों की भीड़ उस गाय के पैर छूने व पुण्य लाभ कमाने की गरज से खूब रुपए चढ़ा रही थी. लोग वहां से ऐसे खुश हो कर लौट रहे थे, मानो उन्होंने स्वर्ग के लिए अपनी सीट एडवांस में बुक करा दी. 5 पैरों वाली उस गाय ने उस निकम्मे जोड़े को मालामाल कर दिया था. पर सारा दिन उसे खड़ा रहने की सजा भुगतनी पड़ रही थी.

शहर की ही कुछ निठल्ली अंधभक्त औरतें उस जोड़े को सुबह के नाश्ते से ले कर रात का भोजन कराती थीं. उन औरतों को यह भरम था कि ‘गऊ मैया’ के ये संरक्षक उन की जीवन नैया पार लगा देंगे.

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