आज के समय में ज्यादातर शहरी पतिपत्नी कामकाजी होते हैं. ऐसे में घरों में काम करने वाली बाई का रोल अहम हो जाता है. अगर एक दिन भी वह नहीं आती है, तो पूरा घर अस्तव्यस्त हो जाता है. एक ताजा सर्वे के मुताबिक, मुंबई शहर में कामकाजी लोगों के घर उन की कामवाली बाई के भरोसे ही चलते हैं और अगर एक दिन भी वह छुट्टी ले लेती है, तो घर में मानो तूफान आ जाता है. सवाल यह है कि जो इनसान हमारे घर के लिए इतना अहम है, क्या हमारे समाज में उसे वह इज्जत मिल पाती है, जिस का वह हकदार है?

आमतौर पर घरों में काम करने वाली बाइयों के प्रति समाज का नजरिया अच्छा नहीं रहता, क्योंकि अगर घर में से कुछ इधरउधर हो गया, तो इस का सब से पहला शक बाई पर ही जाता है. इस के अलावा घर के मर्दों की भी कामुक निगाहें उन्हें ताड़ती रहती हैं और अगर बाई कम उम्र की है, तो उस की मुसीबतें और ज्यादा बढ़ जाती हैं.

सीमा 34 साल की है. 4 साल पहले उस का पति एक हादसे में मारा गया था. उस की एक 14 साल की बेटी और 10 साल का बेटा है.

एक घर का जिक्र करते हुए सीमा बताती है, ‘‘जिस घर में मैं काम करती थी, उन की बेटी मुझ से एक साल बड़ी थी. एक दिन आंटी बाहर गई थीं. घर में सिर्फ अंकलजी, उन की बीमार मां और बेटी थी. मैं रसोइघर में जा कर बरतन धोने लगी. अंकलजी ने अपनी बेटी को किसी काम से बाहर भेज दिया.

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